प्रेम और घृणा

प्रेम और घृणा दोनों ही बंधन हैं
जो बाँध देते हैं हमें एक दूसरे से
परंतु……..
प्रेम में स्वतंत्रता है, घृणा में है जकड़न
प्रेम में विस्तार है, घृणा में है संकुचन

प्रेम में आदर है, घृणा में है अवहेलना
प्रेम में सराहना है, घृणा में है आलोचना

प्रेम में क्षमा है, घृणा में है प्रतिशोध
प्रेम में समर्पण है, घृणा में है विरोध

प्रेम में उत्थान है, घृणा में है पतन
प्रेम में प्रशंसा है, घृणा में है जलन

प्रेम में सृजन है, घृणा में है संहार
प्रेम में स्वीकार भाव है, घृणा में है तिरस्कार

प्रेम से चेतना का विकास, या घृणा से चेतना का ह्रास
कौन सा मार्ग चुनते हैं हम, दोनों ही विकल्प रहते हैं पास

प्रेम और घृणा की उत्पत्ति हमारे अपने ही भीतर है
ऊर्ध्व गति या अधोगति अपनी हमारे ही चयन पर निर्भर है…

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-अदिति अरोरा

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