वशीकरण
पल भर में बदल जाते हैं मौसम चेहरे पर
क्षण भर में ले आता है मुस्कान वह अधरों पर
है आधिपत्य आजकल सर्वश्रेष्ठ सिंहासन पर
गर्व से विराजमान है सभी के फोन पर
इधर-उधर खड़े हो सेल्फी लेते हुए
दिखते हैं लोग आजकल अकेले भी मुसकुराते हुए
ऐसे महानुभाव भी जो प्रायः त्योरियाँ चढ़ाए रहते हैं
वे भी कैमरे के जादू से वशीभूत हो मुसकुरा देते हैं
दर्द और उदासी को हम अंदर छिपाकर
कैमरे के सामने से निकलते हैं मुसकुराकर
जब जानते हैं हम कि मुसकुराते हुए अच्छे लगते हैं
फिर क्यों नहीं खुल कर प्राकृतिक हँसी हँसते हैं
कैमरे के समक्ष क्षणिक कृत्रिम मुस्कान
क्यों बनती जा रही है हमारी पहचान
क्या याद है? कब खुलकर मुसकुराए थे
या कब उन्मुक्त हँसी के ठहाके लगाए थे
होते जा रहे हैं दूर माँ प्रकृति से हम
बाँधते जा रहे हैं स्वयं को कृत्रिमता से हम
ईश्वर की अद्भुत कृति ये दो नयन बादाम से
हैं अधिक सक्षम इस मानव निर्मित कैमरे से
जादू की छड़ी को कुछ देर रखकर जेब में
मुसकुराते हैं देखकर आज इन आँखों में
मानती हूँ कि तस्वीर इंस्टाग्राम पर ना डाल पाएंगे
पर आँखों के कैमरे से सीधा हृदय में बस जाएंगे
कैमरे के वशीकरण से थोड़ा बाहर आते हैं
प्रकृति के मध्य चलिए प्राकृतिक हो जाते हैं
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-अदिति अरोरा
