परिवर्तन
हे बुद्धिमान मानव!
थोड़ा ठहर…
अपने चारों ओर देख,
प्रकृति के साथ एकरूप हो
देख सब कुछ निरंतर बदल रहा है
कुछ भी स्थायी नहीं है
जो स्थाई है, वह है बस परिवर्तन
देख तो ….
दिन और रात बदल रहे हैं
मौसम बदल रहे हैं
वृक्ष अपनी पुरानी पत्तियाँ उतार
नवीन हो रहे हैं
अंतरिक्ष में तारागण
अपनी स्थिति बदल रहे हैं
नदियों का जल निरंतर बदल रहा है
वर्ष बदल रहे हैं, युग बदल रहे हैं
जो नहीं बदल रहा वह बस एक तू है
प्रति वर्ष नव वर्ष का स्वागत करता है
पर तू वही
अपने उसी अहंकार, क्रोध, घृणा,
ईर्ष्या, लालच से भरा
जरा अपने को बदल कर देख
तुझे नित्य नव वर्ष लगेगा
हर दिन तेरा एक उत्सव होगा
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-अदिति अरोरा