चलो मुलुक
खमेंद्रा कमल कुमार
हम भी सोचा कि ई कौन झंझट में फस गवा। दुई चार पेनी पैसा बचा है, जनाइ बुढ़ापा में यहो डूब जई। ई सब मुसीबत के जड़ है बब्बन। बब्बन हमार मझिलका के सबसे छोटकना लड़का है। वैसे तो कुटुंब परिवार काफी बड़ा है हमार, लेकिन नाती-पोता में ई सबसे दुलारा है। यही कोई बीस-उन्नीस के होई, किसानी वाला हाथ-गोड़, चोक दिमाग, और जीब पूरा कैंची। मौका मिली तो कान काट लई। यूनिवर्सिटी में कुछ पढ़े है। बोले भंडारी बनी। तांबिया के पहिला लड़का है जेकर सोच इतना नियारा है। भंडारी बनी! कभी ई गाँव से निकलब तब देखब ओकर यूनिवर्सिटी। ई जिंदगी तो खेत और गन्ना कमाते निकल गए।
हमार छोटकना भैया, लखन हरदम बोले, “रामप्यारे भैया तो गाँव से निकलिस नई।” बात भी राइट है। हम साल में दुई दफे टाउन जाइत है। दिवाली और एक बड़ा दिन पे। और कभी जरूरत पड़ा तो अस्पताल। बाकी समय कमला के मैया खरीद-बीन कर लेत रही। अब ऊ नहीं है, तो कमला लेनदेन करे है।
अब तक तो हमार नाम, हमार गाँव, और परिवार के बारे में थोड़ा बहुत पता चल गए होई। हमार उमर तो हममे ऊँ खुद ही नई पता। अस्सी नब्बे के बीच में होई जनाए। काफी दिन जी लिया हम। हमार सामने हमसे छोटे परलोक सिधार गईन। अब हम तुम लोग से का बताई। अरे बताए जात रहा कुछ, और बताय लगा कुछ और। ई बुढ़ापा भी एक बीमारी है। अच्छा सुनो।
बब्बन हर सुक के अपन संगतियन के संगे तीन-चार पाकिट निगोना लेके आवे। जानो गाँव के सब निठल्ले हमरे यहाँ बैठिये। कमला के बहुत अच्छा लगे। मुफ्त में मिल जाए निगोना पियेके और का मागो। चली निगोना दुई-तीन बजे तक। कभी कभी हमऔ थोड़ा देरी लौंडन के संगे लौंडा बन जाई। उनके तमाशा बात सुनो। बीच-बीच में छटकई दो पुराना मजाकिया। तमासा में लड़कन बोलिए, “आजा टू मच” !
बाकी नाती पोता तो बहुत हमसे नई ललियावे। लेकिन बब्बन आये तो पहिले हमार घरवा में हल जाए। एक दिन तो ककहई लेके हमार मूड़ झाड़े लगा। मोच्वा भी ठीक करिस। फिर धीरे से मुस्की मारत-मारत बोले, “आजा, जवानी में काफी अंडबंड काम करा तुम न?”
उठावा लाठी और धरा ओके गड़िया पे, “अजवा मिला है लंठई बात करेके।”
बब्बन हस्से लगा और खटिया पे पलटी मार के बइठगे। बहुत सोच के हममे ऊँ फिर छेड़ीस, “ देखो अजवा ! हमई आगी लगाब तुम्मार चिता में, सब जमीन जगह हमरे नाम कर दो जल्दी से।”
हम मनई-मन सोचा, “तोहर बाप कटी ऊँगली पे मूते नई, हम तोके जमीन दई। बिलाडी सुआईन”!
जमीन के कारण तो मझिलका अलग होएगे रहा। रोज-रोज के कचाहिन से फाईदा अलग-अलग रहो। पहिले सब भैया यही रहत रहिन। बड़का जमीन रहा। धीरे-धीरे अलग होते गइन और जमीन छोटा होतेगे। अब तोजमीन में कुछ फाईदा नई है। कमला नौकरानी नई करी तो घर नइ चली।
घर, जमीन, जगहा नई, दिमाग मांगो चोक रहो। ई मामला में, हमार बब्बन के दिमाग छप्पन छुडी। पिछले बड़ा दिन पे, हमसे बोले कुछ पैसा दे दो। मीठा पानी, बरेड, और मीठा बिस्किट खरीदी। बड़ा दिन के हउसला में दे दिया बीस डोला। दोगला लौंडा, खरीद लाइस टिन वाला रम दारो। हमके भी दीस। एक ठंडा वाला पिया तू मजा लगा। लौनडन के साथे घीचा एक और। फिर खावा खस्सी के सुरवा ,भात और सोय गवा। दूसरा दिन पता चला कि बब्बन और उसके संगती पी के टटीयाए गइन।
सुख के रोज फिर बैठकी भय। बब्बन एक रंग-बिरंगा परचा हाथ मा लाइस।
“इंडिया से बॉलीवुड शो है सिविक सेंटर पे। पसिफिका इंडिया। आजा बिहान तैयार रहेना, चलियो!’
“हँ हाँ! काहे नई? हमरे मुलुक के लोग है, कवाली, भजन गाइये, हम भी सुन लइब। और हाँ, सिविक सेंटर भी देख लइब। आज तक ओकर भीतर नई गवा!”
दूसरा दिन हौसला में जगा। सूरज इतना गरमाए गए, हममे ऊँ कोई जगाईस काहे नई। बरयारा के दातुन कूच के, अच्छा से नहावा। बड़की लाईके दिहिस गरम गरम मकई के रोटी और पपीता के तरकारी। मजा ले के खावा।आपण घरवा में गवा। संदूक खोला और निकाला एक चटक सट और खाखी पईजामा।
“बड़की, ओए बड़की, हमार सट पईजामा थोड़ा सीधा कर देना।”
“बप्पा, बड़ा अस्पताल जात हो का?” हमसे पूछिस।
“अरे नइ, आज तो हम तमासा देखे जाइत है। बब्बन हमके लेके जाई,” हम तनमनाईके जावब दिया।
संझा के बेलो बड़की सट पईजामा लाइक दिहिस।
“हम जानित है तुम बब्बन के साथे शोव देखे जावत हो। ऊ तू लफाड़ी है, पता नई कब लौटी। चलो अच्छा से खाना खाओ, गोली दबई खाओ, पता नइ कुछ खाय के मिली की नईवहाँ पे। तुम्मार चस्मा कहा है? और हाँ! जूता हम चमकाई दिया है,” ई तमाम बात बोल के परपराते निकल गयी।
बहुत ख्याल रखे है हमार। कमला से जायदा तो पतो हम्मे देखे है। जाते जाते बोले,” सट के जेबवा में पांच डोला पईसा है, कुछ खाए लेना।” हमार आखी में मोती फूट गए जब एकर बात सुना।
खाए- पीके धीरे से सुरों करा सपरे के। सट, पईजामा, पेटी, मूजा, और जूता पहिन के खटिया पे बइठ गवा। बार में नरियल तेल लगावा। सुन्दर से बार झाड़ा। महाकौवा पुता। हम अच्छा से सपर के निकला और जायेके मचान पे बइठा।
गदबेरिया होए नक्चान रहा। सूरज नारंगी रक्म हवा में टंगा रहा। पुरवहिया मंद मंद चला। जनाइ पानी बरसी का? तनिक दूर एक केरिया गारदा उड़ावत चला आवे। हम जान गवा, ई कनवा पुरनमल के लौंडा है। हडबडान रहे, कोई दिन पुलवा के पास अला खंदक में गिरी।हममे का, मरे जिये! खली आज देख लई मुलुक वालन के, का जाने कोई परिवार निकल जाये।
धड़धड़ाते केरिया अंगना में आइके रुकिस। पुरनमल अपन लड़कवा के नवा बेन निकाल के दीस है। महाजन है, अज्जू भी वही लाइन के है, पूरा बनिया। उगरी में चाभी घुमावत अज्जू बेन में से निकला जएसे श्री किसन।
“सेट है आजा, रेडी की नइ?”
“हम तो चार बजे से रेडी है। तुम लोगन कहा रहो बोय?”, हम थोड़ा गरम से पूछा।
“अरे, तुम जानो, सनिच्चर के मांगे थोड़ा ठंडा ठंडा चिल्ड वाला। है कि नई ,” खिखियक बोलिस।
चूँन बनाइन है! ई लफाड़ी लौंडा नई सुधरिये। दुई तीन पीछे बैठीन रहिन। मुर्गी रकम फडफडाए के उतरिन। छोट-छोट पतरा-पतरा हाथ गोड़, आज कल के लौंडन के गार्डिया में मॉस नई चड़े। पता नइ का खावे। का होई हमलोगन के कौम के। बात तो एसे करिए जएसे गबनवा के नाती। चले के डगर मगर, पादे के बड़का!
“अच्छा आजा, तुम आगे बइठो, चलो लौंडे,” बब्बन बइठाइस सब के।
हम बइठा आगे, अज्जू के साथे। तनिक देर में हवा से बात करे लगा सवारी। अस्तिले से हम कस के पल्ला पकड़ा। अज्जू देख देख हममे ऊँ हसे। बीच बीच में हम दोनों तलनुआ मार लई। अज्जू है चगाड़ लौंडा।
लगभग आधा घंटा में लम्बासा टाउन के चमक धमक देखन। जब सिविक सेंटर पहुँचा तब देखा रंग बिरंगा बत्ती। तमाम अदमी-औरत लड़कन-बच्चन जमा रहिन वहाँ। इतना मनई तो हम विद्यासागर के मट्टी वाला दिन देखा रहा। विद्यासागर! हम लोगन के कौम के बहादुर जवान। रोंवा खड़ा होई जावे उसके बलिदान के बात सुन के। पता नई आज कल के पीड़ी विद्यासागर के बारे में जाने है की नई।
यही सब बात सोचत रहा और बब्बन हममे ऊँ तघट तघट सबसे आगे वाला कुर्सी पे बइठारिस, “यहाँ से अच्छा देखाई, आराम से बइठो।”
इतना बोल के गायब होईगे। अकेले बइठा, लाठी हाथ में ले लिया। सब तरफ ताका। गाना बजाना वाला बहुत चीज धरान रहा। ढोल, झीका और पटा नइ का का। तम्बूड़ा ना देखावे। भूल गईन का। मार गोली, हममे का, जों चीज गाइए, सुन लइब।
ई सब बात हमार मन में चलत रहा तब तलक देखा एक अदमी हमार तरफ छाती ताने चला आवे। हमार दिल घबराए लगा। कोई मामला है का। जल्दी से इधर उधर ताका। तब तलक बब्बन जिन के रकम हमार बगल में खड़ा होईगे।
ऊ मनई आइके सीधा हमार हाथ पकड़ लीस। हमार दिल चले लगा।
“नमस्कार, नमस्कार, आप कैसे हो?” इतना बोल के खूब हाथ मिलाइस।
“राम राम बाबू ,” हमौ हौसला में राम जुहाई करा।
खूब अच्छा से ताका उसके। ई हमार कोई कुटुंब परिवार है का। देखे में साहेब जइसे सफा, धाड़ी मोच अच्छा से बनाये रहा, बार तो का बताई, पूरा फिल्मी। हाथ नरम नरम, और कपड़ा तो का बताई, सूट बूट और कोट। कोई साहेब लगे। लेकिन ई है कौन जोन हमसे मिले आइस है।
तब तलक बब्बन बोलिस, “आजा, शर्मा जी से मिलो। शर्मा जी भारतीय दूतावास के बड़ा बोस है।”
इतना बड़ा अदमी। भारत से आइस। हमसे हाथ मिलाइस। हमार दिल गदगदाये गय। मीठा मीठा बात कर के हाल चाल लीस, उमर पूछिस, लड़कन के नाम बतावा। थोड़े पल में बड़ा घुल मिल गए। बड़ा मिलनसार अदमी है। खली एक बात हमार दिमाग में पल्ला नइ पड़ा। ऊ हमसे पूछिस “आजा, आप भी हिलत-डुलत, आदत -पादत आए हो का?”
हमौ कटीला जवाब दिया, “बाबू हिलात-डुलत तो आवा है, लेकिन तुके कौन बताइस हम पादत आवा है? अज्जू के बात बिस्वास नई करना बाबू,” हम ओके समझावा।
बाबू ठठा मार के हसीस। फिर हमसे थोड़ा मुस्कुराई के पूछिस “आजा इंडिया चलोगे?”
जनाए दिललगगी करे है। बड़ा बाबू है, हसी मजाक के माहोल बनावे है। झोक दिया आपन तरफ से, “हां हां, कहे नई बाबू, जहाजी मिली तू चल दइब, सात समुन्दर पार, आपन मुलुक, आपन देश।”
बब्बन के ई बात बहुत भाहिस। तुरंत तीन में तेरह जोड़ दिस, ”शर्मा जी, क्या ऐसा हो सकता है?”
बड़ा बाबू मूड़ हिलाइ के बोलिस , “क्यों नहीं, बहुत ही आसन है। आपको सूवा एम्बेसी आना है। फिर डिक्लेअर करना है कि आप के माता पिता गिरमिट के दौरान भारत से आए थे। एक पी.अइ.ओ. कार्ड बना लो। फिर जब चाहे तब इंडिया जाओ, वीसा की ज़रूरत भी नहीं। और हां, चाहे घर, चाहे मोटर गाड़ी, बिज़नस जमाना हो, अब कुछ दिक्कत नहीं है।
बब्बन और खोज खबर लीस। इतने में एक और मनई हमार तरफ अस्तिले अस्तिले चलते आइस। साधारण रूप मगर ओकर चहेरा पे कुछ अजीब रौनक रहा। आते मान राम जुहाई करिस। शर्मा जी ओके देख के बहुत प्रसन्न भय। ह्माऔ से परिचय कराइस।
“इनसे मिलो, प्रोफेसर सुब्रमणि, यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं। बड़े जाने माने लेखक हैं। ये नहीं रहेंगे तो आपकी मातृभाषा डूब सकती है। इनकी नयी किताब आने वाली है।”
इतना प्रसंनसा भय लेकिन लेखक बाबू के चेहरा पे कोई रकम घमंड नई देखान। बस तनिक मुस्कुरान। मनई मन हममे ऊँ बहुत खुशी लगा। एक जटिल अदमी बचा है जोन हमलोगन के भाषा जागृत रखी। आज कल तो का बताई, ई लौंडे इंग्लिश -पिंग्लिश के चक्कर में है।
दोनों सज्जन धीरे से औरन से मिले चले गइन। हम असीरबाद दिया। एक बात लेखक बाबू के बारे में थोड़ा खटका। अपन हथेली जेबवा में से निकालिस नई। मागत रहा देखे ऊ कमाल करे वाला हाथ, लेकिन फिर कभी।
प्रोग्राम सुरु भय। थोड़ा-मोड़ा भासन, मान-सम्मान, माला पहीनाहिन शर्मा जी और लेखक बाबू के। फिर चला गानाबजाना, मजाकिया, नाच और नौटंकी। हमर तो आँखी खुले के खुले रहिगे। इतना सुन्दर -सुन्दर गोरा मनई लोग, बाप रे बा अइसे नाचे जइसे साकिस में। हमार पूरा मन लुभाई लीन। जब शोव खत्म भय तब हमलोग निकला।
अतवार के सबेरे। सुहाना मौसम और मंध मंध पुरवैया चले। आम के फूल के महक हवा में गुलमिलाएगे। लिया हम अमरुद के दातुन और सुरु करा कूचे। सबेरे -सबेरे खाली गोड़ अंगना में चले के एक अलग मजा है। खूटा पे लाली बंधी रही। गाबिन है। ऊ हममे ऊँ देखे और हम ऊके देखत रहा। ऊ पगुर करत रही और हम दातुन। बुढ़ापा में समय बहुत मिले लेकिन समय कहा है। हमार पास कितना समय बचा है? पता नइ, लेकिन यमराज तो एक दिन हमार हाथ थामी।
कल हम लेखक बाबू से मिला।
जिंदगी में कुछ करिस है। हम का करा? तेरा रोज में अदमी हममे ऊँ भूल जाइये!
जल्दी से बड़की के पास गवा, “बड़की, ओ बड़की! फोन लगाओ, बब्बन से बोलो आजा बुलावे है।”
तनिक देरी में बब्बन हाफत आइस , “का भय बड़की अम्मा? आजा बीमार है का।”
“नई नई, एसन कुछ नई भए। तोसे एक बात करेके है।” थोड़ा सोचान बब्बन।
तब हम अस्तिले में पूछा, “तुम शर्मा जी से मुलुक आवे- जावे अला बात कल करा ना?”
“हाँ!” बब्बन हकारी बरिस।
“आज एक इच्छा हमार मनवा में आइस। हम मंगित है आपन मुलुक के दरसन करे। तू चलियो हमार संगे?”
बब्बन सोचे हम दिल्लगी करीत है। हँस के पूछिस, “और पईसा? बहुत खरचा है आना-जाना।”
“तुम नई चिंता करो। हमार पास है बीस हज़ार तक। इतना बस है ना?” हम पूछा।
“इतना बहुत है, चलो आजा भारत मुलुक के यात्रा!” मारिस कईला।
हम भी खिलखिलाए के बोला, “चलो! मुलुक के यात्रा कर आई।”
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