बकरी
देखिए–
मेरे देश की व्यवस्था
कितनी लाचार हो गई,
मेजिस्ट्रेट का बग़ीचा चरने के जुर्म में–
एक बकरी गिरफ़्तार हो गई।
ऐसे में सख़्त एवं लिखि त एफ़ आई आर हो गई,
मालिक पर धारा ४४७ और ४२७ लगी,
फिर उस पर सज़ा क़रार हो गई।
दिल्ली में जेडीयु के सांसद के दो कटहल चोरी हुए,
केस दर्ज हुआ और
फ़िंगर प्रिंट्स लेने के हुक्म जारी हुए।
बि हार के मंत्री की सात भैंसे चुराई गईं,
पुलिस की फ़ुर्ती देखिए जनाब–
चौबीस घंटे में
बरामद करके लाई गईं।
किसी मंत्री का चोरी हुआ कुत्ता,
तो किसी का बकरा,
एक मंत्रीजी को
अपनी बारह मुर्गियों का ग़ायब होना अखरा।
क़िस्सा नाटकीय, कितना रोचक, उतना हास्यप्रद,
जिस पर देश में सिर्फ़ विवादस्पद।
लेकिन–
अभाग्य आम आदमी का, जहाँ–
बच्चि यों, नाबालिग़ों –
कहने को पूजनीय कन्याओं के बलात्कार
न दर्ज कि ये जाते हैं, न सुनवाई होती है,
बेक़सूर मृतकों के केस न लड़े जाते हैं,
न भरपाई होती है।
शर्मनाक और दयनीय दशा हो गई है,
कैसी घटिया मेरे देश की व्यवस्था हो गई है।
हाँ ! वो बकरी ज़रूर गिरफ़्तार होती,
फिर तो सज़ा की भी हक़दार होती,
अगर उसके साथ बलात्कार न हुआ होता,
और वो – न्याय प्रक्रिया और
आज की व्यवस्था के
बुद्धि विवेक के आसपास जमा कचरा चर गई होती,
अतः कटहरे में –
“बकरी हाज़िर हो” के बाद
काश! उसकी भी सुनवाई होती।
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-कुल दीप
