आप की ख़ासियत

आप की ख़ासियत आप ही आप हो।
ख़ुद ही फ़ीता हो ख़ुद का औ ख़ुद माप हो॥

हो भला कोई कैसे बड़ा आपसे
आप तो हो बड़े ख़ुद के भी बाप से।
अपने उस्ताद के आप उस्ताद हो,
मिल सकी जो न ग़ालिब को वो दाद हो॥
खाज हो, खुजली हो ख़ूनी अंदाज़ हो
तुक्कड़ी फ़ालतू पूरे लफ़्फ़ाज़ हो॥

अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू बनते रहो
दिल मे बुर्जे ख़लीफ़ा से तनते रहो।
बात साबित सही अपनी करते रहो
यूँ ही ठेंगे पै दुनिया को धरते रहो॥
ख़ौफ़ होवे कोई आपको क्यों भला
आप फ़तवा हो पंचायती खाप हो॥

मुफ़्तख़ोरी में आता है तुमको मज़ा।
कामचोरी में आता है तुमको मज़ा॥
घूसख़ोरी में आता है तुमको मज़ा।
सीनाज़ोरी में आता है तुमको मज़ा॥
फिर भी मिलती नहीं कोई तुमको सज़ा
तुम बदल डालते हो सियासी फ़िज़ा॥

जुर्म की तुम हमेशा चलाते ख़िजा।
ख़ून मुफ़लिस का प्यारी तुम्हारी गिजा॥
खाल खद्दर को तुमने बनाया गजब।
कोयला चारा चीनी उड़ाया है सब॥
हर अदालत में फिर भी दिखे साफ़ हो
तुम ही हाकिम हुकुम तुम ही इंसाफ़ हो॥

इस जहाँ में है जीने का क्या क़ायदा
कितना जन्नत में मोमीन है फ़ायदा।
कौन काफ़िर जहन्नुम में जायेगा कौन
आपको सब पता कितना पायेगा कौन॥
आसमाँ से जो उतरी वो इमदाद हो।
या फ़रिश्तों के दिल की ही फ़रियाद हो॥

कहते अल्लाह की ख़ुद को औलाद हो।
ख़ुदकुशी को बना देते जेहाद हो॥
हूर तोहफ़े में क्यों बाँटते हो उन्हें
दिल से चाहत थी फ़िरदौस की बस जिन्हें॥
आप ही चित अजी पट भी ख़ुद आप हो।
आप ही पुण्य हो आप ही पाप हो॥

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– संदीप त्यागी ’दीप’

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