
कील
मैं यदि जूता होता
तो होता तुम्हारे पाँव में
परंतु मैं जूता नहीं
कील हूँ
शुक्र मनाओ
मैं नहीं हूँ
उस जूते में
जो है तुम्हारे पाँव में!
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– निखिल कौशिक
हिंदी का वैश्विक मंच
मैं यदि जूता होता
तो होता तुम्हारे पाँव में
परंतु मैं जूता नहीं
कील हूँ
शुक्र मनाओ
मैं नहीं हूँ
उस जूते में
जो है तुम्हारे पाँव में!
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– निखिल कौशिक
बहुत बधाई निखिल जी एवं अजय त्रिपाठी जी को ।
दोनों ही मेरे पसंदीदा कवि हैं