
मक्खी
मक्खी जब उड़ जाती है
तो कहाँ जाती है
कहाँ जाती है
अपने घर जाती है
अपने घर जाती है
पर, बीच रस्ते में उसे गुड़ की याद आती है
उसे गुड़ की याद आती है;
और वो लौट आती है
अपनी सखियों के संग भिन-भिनाती है
गुड़ चाटती है, मोटी हो जाती है
फिर उड़ नहीं पाती है
गुड़ से चिपके चिपके मर जाती है
मक्खी बेचारी; घर कहाँ जाती है …
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-निखिल कौशिक