Category: निखिल कौशिक

सुनिए – (कविता)

सुनिए कोई सुने तो मैं सुनाऊँवो सब कुछ जो सुनाने वाला हैपर आजकल हर कोईकेवल सुना रहा हैसुन नहीं रहा है कोईआम आदमी आजकलव्यस्त हैसुधारने मेंकौन सुधर रहा है उसके…

मक्खी – (कविता)

मक्खी मक्खी जब उड़ जाती हैतो कहाँ जाती हैकहाँ जाती हैअपने घर जाती हैअपने घर जाती हैपर, बीच रस्ते में उसे गुड़ की याद आती हैउसे गुड़ की याद आती…

कील – (कविता)

कील मैं यदि जूता होतातो होता तुम्हारे पाँव मेंपरंतु मैं जूता नहींकील हूँशुक्र मनाओमैं नहीं हूँउस जूते मेंजो है तुम्हारे पाँव में! ***** – निखिल कौशिक

 बादल- धरती – (कविता)

बादल- धरती बादल हैऔर पेड़ भीधरती हैऔर पाँव भी हैधरती परकहाँ बरसेगाऔर कौन सा बादलकब टूटेगाऔर कौन सा फलफटेगी धरतीअचानकऔर किस पाँव तलेकौन जाने! ***** – निखिल कौशिक

जान पहचान – (कविता)

जान पहचान मैं बहुत लोगो को जानता हूँजिनमे से अधिकांश लोग भी बहुत लोगों को जानते हैंकुछ जानते हैं दर्जनों कोकुछ पहचानते हैं सैंकड़ो कोइस तरह हज़ार, लाख करोड़ लोगों…

इतने – (कविता)

इतने इतने- इतने सारे लोगइतना- इतना कुछ कर सकते हैंपरंतुइतना- इतना भी नहीं करतेकी सुन सकें इतनी- इतनी सी बाततभी तोइतने- इतने हो सकते हैंपर इतने- इतने से होकर रह…

स्वप्न – (कविता)

स्वप्न स्वप्न आते हैंकबूतरों की तरहमन की मुंडेर पर बैठ जाते हैंफड्फड़ाते हैंकलम जाल कैद कर पाये जब तकउड़ जाते हैंफिर आते हैं कभीकभी नहीं भी आते हैंऔर जितने आते…

भारत – (कविता)

भारत मैं भारत हूँ जो आज सुनोवही भारत था बरसों पहलेबरसों से भी बरसों पहलेसदियों से भी सदियों पहले लेते हो तुम क्या टोह मेरीबस चंद बरसों की उम्र बताकभी…

भारत का काला धन – (कविता)

भारत का काला धन परदेस में जमा हैभारत का धनभारत का काला धनसोना- चाँदी- रुपया- आना- पैसा- पाईऔर मेरे जैसे कुछ एन आर आईयही है भारत का धन – भारत…

कोई लहर – (कविता)

कोई लहर समुन्द्र की कौन सी लहरहमें ले जायेगी किनारेकौन सा किनाराहमें थाम लेगामट्टी का कौन सा हिस्सा हमेंजकड लेगाहम नहीं जानतेन ही जानना चाहते हैंक्योंकि जान नहीं पायेंगेबस यही…

निखिल कौशिक की कविताएँ – (कविता)

निखिल कौशिक की कविताएँ 1- सुख है जीवनदुख है जीवनतू हैं जीवनमैं हूँ जीवनकहाँ है जीवनयहाँ है जीवनवहाँ है जीवनरहने दे इसकोयहीं है जीवन 2- मेरी आवाजमेरी जेब से आती…

कोई लहर – (कविता)

कोई लहर समुन्द्र की कौन सी लहरहमें ले जाएगी किनारेकौन सा किनाराहमें थाम लेगामट्टी का कौन-सा हिस्सा हमेंजकड़ लेगाहम नहीं जानतेन ही जानना चाहते हैंक्योंकि जान नहीं पाएंगेबस यही चाहते…

समझदार लोग – (कविता)

समझदार लोग लोग हैं लोगलोग हैं समझदारसमझदार लोग उठाते हैं आवाजेंउठ रही हैं हर तरफ से आवाजेंपर उठ नहीं रहे हैं लोगजो उठा रहे हैं आवाजेंक्योंकि लोग हैं समझदारऔर समझदार…

जमने वाली बर्फ – (कहानी)

जमने वाली बर्फ -निखिल कौशिक लंदन से लगभग 210 मील उत्तरी पूर्व-ब्रिटेन के जिस छोटे से शहर में मैं रहता हूँ, यहाँ बहुत बर्फ तो नहीं पड़ती पर जब पड़ती…

निखिल कौशिक – (परिचय)

निखिल कौशिक जन्म : 1950, पुरानी दिल्ली में, दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से MBBS करने के उपरांत 1977 से यूके में, 1981 में FRCS की उपाधि के उपरांत…

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