जीवन संग्राम

जीवन बड़ा संग्राम है
कभी जीत है कभी हार है
कभी सुख यहाँ कभी दुःख यहाँ
कोई डूबा तो कोई पार है
इस बार की तुम हार का
इतना ना मातम करो
पंख आशा के लगा
साहस करो तुम भी उड़ो

तुम धरा पर, पाँव कोमल
धूल-धुसरित हैं तुम्हारे
मन है चंचल स्वप्न में
तोड़े है नभ से चाँद तारे
प्रयास के अभाव में
स्वप्न ना धूमिल करो
पंख आशा के लगा
साहस करो तुम भी उड़ो

है मौत निश्चित जान लो
ये प्रेमिका है जन्म की
जबसे हुआ है जन्म उसको
लगन इस से मिलन की
तो मृत्यु के इस भय से तुम
जीवन को ना सीमित करो
पंख आशा के लगा
साहस करो तुम भी उड़ो

सूनी गलियाँ रात काली
घोर सन्नाटा यहाँ
बाँहों में जो थाम ले
ऐसा ना कोई है यहाँ
काल जब विपरीत हो
हौसला ज़िंदा रखो
पंख आशा के लगा
साहस करो तुम भी उड़ो

जीवन डगर दुर्गम सही
घबराओ मत आगे बढ़ो
ना अंधेरे से डरो
चलते रहो चलते रहो
इस रात का सूरज
उदय होगा यक़ीं इतना करो
पंख आशा के लगा
साहस करो तुम भी उड़ो

*****

– अजय त्रिपाठी

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