सम्पूर्ण होना कल्पना है
सम्पूर्ण होना कल्पना है
इक अधूरा ख़्वाब है
सच तो ये है हम सभी
आधे-अधूरे लोग हैं
पूरे की बस चाह में
हैं भागते रहते सदा
थक चुके हैं हम सभी
आधे-अधूरे लोग हैं
जो पास है उस से विमुख
जो दूर उसकी लालसा
त्याग-बेड़ी, प्रेम-बंधन
कामना बस कामना
राहें हमारी खो गयी हैं
हम भटकते लोग हैं
सच तो ये है हम सभी
आधे-अधूरे लोग हैं
जो साथ हैं, साथी नहीं
जो पास है काफ़ी नहीं
अपनी ख़ुशी से क्या ख़ुशी
कोई ख़ुशी काफ़ी नहीं
ग़म दूसरों के देख कर
ख़ुशियाँ मनाते लोग हैं
सच तो ये है हम सभी
आधे-अधूरे लोग हैं
जो सम्पन्न है उसे ख़ौफ़ है
नींद उस से दूर है
बेख़ौफ़ वो जो सो रहा
कमज़ोर है मजबूर है
अपनी-अपनी ज़िंदगी और
अपने-अपने भोग हैं
सच तो ये है हम सभी
आधे-अधूरे लोग हैं
बालक कहे मैं कब बड़ा हो
अपने मन की कर सकूँ
मैं कहूँ बालक बनूँ
जीवन सरल ये कर सकूँ
शांति कोई न पा सका
कैसा लगा ये रोग है
सच तो ये है हम सभी
आधे-अधूरे लोग हैं
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– अजय त्रिपाठी