भूमि

आओ मिल कर आँसू बोएँ
इस बंजर ऊसर भूमि में
कोई पुष्प शांति का खिल जाए
शायद फिर अपनी भूमि में

ये किसने बोई है नफ़रत
कि बंदूक़ों की फसल उगी
गोली पर गोली चलती है
गौतम की अपनी भूमि में

राम और रहीम जो बचपन में
इक आँगन में थे बड़े हुए
कैसे वो ख़ून के प्यासे हैं
जाने अब अपनी भूमि में

मंदिर ढा दो मस्जिद ढा दो
ढा दो हर वो शह यारों
जो मासूमों को मार रही
जाने क्यों अपनी भूमि में

तुम आज जला दो ग्रंथ सभी
जो बाँट रहे हैं मानव को
एक नया ग्रंथ अब रच डालो
इस प्यार की प्यासी भूमि में

तुम उठ जाओ और अथक चलो
हो राह भले लम्बी लेकिन
एक नई क्रांति फिर भड़काओ
अपनी इस प्यारी भूमि में

भाषा को भाषा से जोड़ो
सब हदें सरहदों की तोड़ो
आपस में सब का नाता हो
बस अब तो अपनी भूमि में

लंदन हो न्यूयॉर्क हो
या कश्मीर की घाटी हो
आतंक कहीं ना पनप सके
अपनी इस प्यारी भूमि में

*****

– अजय त्रिपाठी

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