तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो

तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो
है लम्बा पथ तुम चले चलो
है डगर पथिक दुर्गम लेकिन
एक आस लिए तुम चले चलो

कोई मौसम बाँध नहीं पाए
कोई शौक़ नहीं भटका पाए
बस एक निरंतर मंज़िल ही
हो ध्येय चाहे कुछ हो जाए
आँखों में स्वप्न निराले भर
एक गीत सुनाते चले चलो
तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो

बाधाएँ कितनी भी आएँ
ना तेरे मन को सहमाएँ
माया के ये नाग कभी
भी तुझको डसने ना पाएँ
तुम तोड़ के सारे बंधन अब
मंज़िल पर अपनी चले चलो
तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो

है कौन राह अपनी यारों
और किस मंज़िल को पाना है
इस चक्रव्यूह से जीवन में
कोई ना अब तक जाना है
तुम सागर परबत लाँघ-लाँघ
बस अपनी धुन में चले चलो
तुम अथक मुसाफ़िर बढ़े चलो

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– अजय त्रिपाठी

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