
अमेरिका में हिन्दी एवं देवनागरी लिपि
– विनीता तिवारी, वर्जीनिया, अमेरिका
विनीता तिवारी, वर्जीनिया, अमेरिका द यूनाइटेड स्टेट्स आफ़ अमेरिका, देश- दुनिया के सभी लोगों को अपनी और आकर्षित करने वाला एक ऐसा देश है जहाँ पहुँचने के पश्चात कोई भी व्यक्ति मुश्किल ही किसी दूसरे देश में जाकर बसने की इच्छा रखता हो। यहाँ आकर बसने वालों में यूरोप, आस्ट्रेलिया, एशिया, दक्षिण अमरीका एवं अफ़्रीका जैसे सभी महाद्वीपों के लोग शामिल हैं। परिणामस्वरूप इस देश में बहुसांस्कृतिक और बहुभाषिक वातावरण देखने को मिलता है। सभी देशों की फलती फूलती संस्कृतियों के साथ अमेरिका में 350 से अधिक भाषाएँ भी बोली जाती है, जिसमें अंग्रेज़ी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। तक़रीबन अठहत्तर प्रतिशत लोग अंग्रेज़ी भाषी हैं। उसके पश्चात 12-13 प्रतिशत नागरिक स्पेनिश बोलने वाले हैं। तीसरे नम्बर पर चाइनीज़ भाषा और उसके पश्चात यूरोपियन एवं अन्य भाषाओं का नम्बर आता है। पिछले दो तीन दशकों में दक्षिण एशिया से आने वाले लोगों की संख्या अमेरिका में काफ़ी तेज़ी से बढ़ने की वजह से हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को बोलने वालों की संख्या में भी वृद्धि देखने को मिलती है। 2010 से 2017 के बीच हुए सर्वे एवं सूत्रों के अनुसार अमेरिका में सर्वाधिक तेज़ी से बढ़ने वाली भाषाओं में भारतीय भाषा तेलुगु का स्थान सबसे ऊपर है।
2017 से 2021 के दौरान लिए गए यू एस सेंसस रिकॉर्ड के अनुसार अमेरिका में बोली जाने वाली प्रमुख पाँच भाषाओं की सूची इस प्रकार है।
इंग्लिश
स्पैनिश
चाइनीज़
टैगलॉग (फ़िलीपीनो)
वियत्नमीज़
अरेबिक
हिन्दी को इस सूची में ग्यारहवें स्थान पर रखा गया है।
अमेरिका में हिन्दी विद्यालय
1997 में जब अमेरिका आना हुआ तो घर से क़रीब आधे घंटे की दूरी पर एक सप्ताहांत में लगने वाले विद्यालय का पता चला। रविवार को लगने वाले इस विद्यालय में भारतीय भाषाओं और भारतीय संस्कृति से जुड़ी विविध कलाओं की शिक्षा दी जाती थी बचपन से ही मुझे भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने की इच्छा थी इसलिए मैंने अपने आपको न सिर्फ़ विद्यार्थी के रूप में रजिस्टर कराया बल्कि साथ ही हिन्दी शिक्षण हेतु बतौर अध्यापिका भी विद्यालय में योगदान देना शुरू किया। श्रीमती कृष्णा द्वारा संचालित इस विद्यालय में 5 से 22 वर्ष की उम्र तक के बच्चे हिन्दी सीखने आते थे। हिंदी सीखने का मुख्य कारण या तो हाई स्कूल एवं कॉलेज स्तर पर अतिरिक्त भाषा के क्रेडिट लेना होता था या फिर भारत भ्रमण के दौरान अपने रिश्तेदारों एवं अन्य नागरिकों से अपनी भाषा में वार्तालाप करने का सुख प्राप्त करना। पिछले कुछ दशकों में भारत के विभिन्न राज्यों से आकर बसे भारतीयों की संख्या बढ़ने से अमेरिका में हिंदी बोलने वालों की संख्या तो बढ़ी मगर इतनी नहीं कि यहाँ बोली जाने वाली प्रमुख दस भाषाओं के अंदर स्थान बना सके। शायद यही कारण है कि ज़्यादातर सरकारी मिडिल और हाई स्कूलों में हिंदी बतौर सैकेंड लैंग्वेज सिखाई जाने वाली भाषाओं की सूची में दिखाई नहीं पड़ती। फिर भी जिन क्षेत्रों में हिन्दी सीखने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या पर्याप्त होती है उन क्षेत्रों के विद्यालयों में हिंदी शिक्षण के लिए सरकार शिक्षक की व्यवस्था मुहैया कराती है। सरकारी विद्यालयों में हिन्दी के विद्यार्थियों का पर्याप्त संख्या में नामांकन नहीं होने की स्थिति में आप अपने आप या किसी प्राइवेट ट्यूटर के माध्यम से भी हिंदी कक्षाएँ लेकर हिन्दी सीख सकते हैं यदि आप हाई स्कूल के स्तर की हिंदी भाषा सीख कर लिखित परीक्षा को उत्तीर्ण करते हैं तो आपको हाई स्कूल डिप्लोमा के लिए आवश्यक अतिरिक्त भाषा के क्रेडिट्स मिल जाते हैं। घर से बाहर हिन्दी के अध्यापक को ढूंढने की इसी प्रक्रिया में रविवार या सप्ताहांत पर लगने वाले भारतीय विद्यालयों की छवि उभर कर सामने आती है। इस तरह के विद्यालय भारतीय घरों के तहख़ानों से लेकर मंदिरों तक में चलाए जाते हैं इन विद्यालयों को सिर्फ़ सप्ताहांत या रविवार के दिन चलाने के पीछे की मजबूरी यही होती है कि सामान्य दिनों में छात्र एवं शिक्षक दोनों ही अपने सामान्य स्कूल या ऑफ़िस के कार्यों में व्यस्त रहते हैं। हिन्दी या भारत में बोली जाने वाली अन्य प्रादेशिक भाषाएँ अतिरिक्त शैक्षणिक गतिविधि के अंदर आने की वजह से या तो विद्यालय से घर आने के पश्चात शाम को ईवनिंग स्कूलों में या शनिवार रविवार को चलने वाले सप्ताहांत स्कूलों में ही सीखी एवं सिखाई जा सकती है।
अमेरिका के कॉलेज एवं विश्वविद्यालयों में हिन्दी
अमेरिका के बहुत से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा, दक्षिण एशियाई शिक्षा के अंतर्गत पढ़ाई जाती है। ज़्यादातर विश्वविद्यालयों में ये कोर्स विद्यार्थियों के नामांकन और डिमांड पर निर्भर करता है। साउथ एशियन स्टडीज़ के अंतर्गत आने वाले हिंदी शिक्षण प्रोग्राम में देवनागरी के साथ-साथ उर्दू लिपि सीखना भी शामिल होता है। प्रायः इस कोर्स का नाम हिन्दी-उर्दू होता है जिसमें दोनों लिपियों के साथ भाषा को बोलने एवं समझने का अभ्यास कराया जाता है। इस कोर्स में रजिस्टर करने वाले विद्यार्थियों में 80-85 प्रतिशत विद्यार्थी हैरीटेज़ लर्नर्स होते हैं जिनकी जड़ें कहीं न कही साउथ एशिया से जुड़ी होती हैं। हिंदी शिक्षण के इन कोर्सेज़ का कोई निश्चित पाठ्यक्रम नहीं होता। हिन्दी के शिक्षकों को अपने पढ़ाने का तरीक़ा एवं विषयवस्तु अपने हिसाब से तैयार करने की सुविधा रहती हैं।
देवनागरी लिपि
स्पेनिश भाषा अमेरिका में दूसरे नंबर पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। कारण खोजने पर पता चलता है कि अंग्रेज़ी बोलने वाले नागरिकों के लिए स्पेनिश सीखना हिन्दी के बनिस्बत काफ़ी आसान होता है क्योंकि दोनों ही भाषाओं की उत्पत्ति लैटिन भाषा से हुई है जिसकी वजह से दोनों ही भाषाओं में एक जैसी वर्णमाला एवं काफ़ी संख्या में मिलते जुलते शब्दों का उपयोग देखने को मिलता है। इसके विपरीत हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि के अक्षरों की बनावट अंग्रेज़ी भाषा के अक्षरों से पूर्णरूपेण अलग होती है। जिस वजह से अंग्रेज़ी को मातृभाषा की तरह बोलने वाले विद्यार्थियों के लिए देवनागरी लिपि सीखना बहुत आसान नहीं होता। अंग्रेजी के पांच की जगह हिन्दी के 11 स्वर और 21 की जगह 35 व्यंजन अंग्रेज़ी बोलने वाले विदेशियों के लिए बहुत सी नई ध्वनियों और उच्चारणों को सीखने-समझने की प्रतिबद्धता पैदा करते हैं ज़्यादातर विदेशी छात्रों, यहाँ तक कि अमेरिका में पैदा हुए भारतीय बच्चों को भी त, थ या ड, ड़, ढ़ में फ़र्क सिखा पाना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है। अलहदा लिपि के अतिरिक्त भी और बहुत से कारण हैं जिनकी वजह से विदेशियों में हिन्दी सीखने की इच्छा अन्य भाषाओं की बनिस्बत कम रहती है। ज़्यादातर वो भारतीय बच्चे जिनके माता पिता इमिग्रेंट की भाँति दूसरे देशों में जाकर बस गए हैं अपनी पहली पीढ़ी के बच्चों को कुछ मात्रा में देवनागरी लिपि सिखाने में सफल हो पाते हैं। प्रवासी भारतीयों की दूसरी तीसरी पीढ़ी के बाद वाले बच्चों को हिन्दी सिखा पाना क्रमशः मुश्किल होता जाता है इसका एक कारण ये हैं कि स्कूल या कॉलेज के क्रेडिट लेने के पश्चात, भावी जीवन में ये बच्चे देवनागरी लिपि को शायद ही कभी उपयोग कर पाते हैं। दूसरी तीसरी पीढ़ी का भारत भ्रमण भी पहली पीढ़ी के अनुपात में बहुत कम होता जाता है इसलिए स्कूल, कॉलेज में सीखा हुआ भी धीरे धीरे भूलने की स्थिति में आने लगता है मेरे अपने इर्द-गिर्द जितने भी दूसरी-तीसरी पीढ़ी के बच्चे यहाँ अमेरिका में है वो भाषा को समझने और बोलने में तो काफ़ी कुछ ठीक ठाक हैं लेकिन उनके द्वारा देवनागरी लिपि में लिखना पढ़ना ना के बराबर ही देखने को मिलता है।
हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि का भविष्य
यूँ तो ग्लोबलाइजेशन एवं इंटरनेट क्रांति की वजह से हिन्दी भाषा देश-दुनिया के सभी कोनों में पहुँच चुकी है लेकिन उसके भविष्य को लेकर काफ़ी सवाल मस्तिष्क में लगातार उठते हैं। मॉडर्न लैंग्वेज एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के एनरोलमैंट डेटाबेस के अनुसार 2016 में हिन्दी सीखने के लिए नाम रजिस्टर करने वाले विद्यार्थियों की संख्या सिर्फ़ 1,426 थी जबकि 2013 में 1,813 और 2009 में 2,173 बताई गई है(source: vocal.media) ये गिरते हुए आंकड़े बताते हैं कि विश्वविद्यालयों द्वारा कोर्सेज़ शुरू करने पर भी हिन्दी शिक्षण के ये कार्यक्रम विदेशी एवं भारतीय छात्रों को बहुत बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते। पहली बात तो ये कि ज़्यादातर भारतीय लोगों का अंग्रेज़ी भाषा में निपुण होना विदेशियों को हिन्दी सीखने की ज़रूरत से दूर रखता है। साथ ही भारतीय माता-पिता भी हिन्दी सिखाने में अपने बच्चों का व्यवसायिक विकास नहीं देख पाते। इसके अलावा बहुत से भारतीय माता-पिता, हिन्दी की बजाय अपनी प्रादेशिक भाषा को ज़्यादा महत्त्व देते हैं। विश्वविद्यालयों में हिन्दी सिखाने वाले आचार्य भी बहुत बार हिन्दी भाषा में स्नातक या परास्नातक न होकर सिर्फ़ हिन्दी बोलने-समझने और लिखने-पढ़ने की ही योग्यता रखते हैं और हिन्दी सिखाने के नये और दिलचस्प तरीक़ों से परिचित एवं प्रशिक्षित नहीं होते। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, कम्प्यूटर विशेषज्ञ और अन्य अनेक विषयों के विद्यार्थियों के लिए हिन्दी का उपयोग नगण्य के बराबर होता है।
खैर, हिन्दी सीखने में रुचि की कमी का कारण भले ही जो भी हो लेकिन वैश्विक पटल पर हिन्दी का उचित स्थान और उपयोगिता बनाए रखने के लिए भारत के मूल निवासियों और राजनेताओं को हिन्दी से जुड़े बहुत से मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता ज़रूर महसूस होती है।
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आलेख में यथार्थ स्थिति का आकलन है। हिंदी तथा देवनागरी की घटती लोकप्रियता की ओर स्वाभाविक ध्यान आकर्षित करता है।
विचारोत्तेजक!👍👍