डॉ. वरुण कुमार

कविता में दर्द

कविता में तो दर्द बहुत है
कवि में पता नहीं
कितना

अच्छा जीवन-स्तर
धुले वस्त्र
चश्मे का सही नंबर, फ्रेम सुंदर
लेकिन भीतर आँखें नम
उनके लिए जिन्हें
कपड़ा भी नहीं मयस्सर

उनके लिए बहुत बड़ी त्रासदी है
सपनों का मर जाना
भयानक है अधिक
माँ बाप के मरने से
बच्चों का काम पर जाना

स्रष्टा हैं वे
एक प्रतिसंसार रचते हैं
समय में समय के खिलाफ
हस्तक्षेप करते हैं
एक बहुत जटिल समय में
उनकी कविता प्रत्याख्यान है
सरलता का
विद्रोह है दुनियादारी के खिलाफ
भोलेपन का
शहर के फ्लैट के खिलाफ
गाँव के घर का
उनकी कविता जाती है
समय के पार
और वे स्वयं जाते हैं
सरहदों के पार।

आर्थिक सच्चाइयों के विपरीत
उन्हें चिंता है बस मूल्यों की
उनकी पीड़ा है कि
सबकुछ हुआ बाजार है
हालाँकि अपने काम का मूल्य
बाजार से बहुत ज्यादा
सरकार से लेना स्वीकार है।

उत्तर आधुनिक समय में हैं वे
कवि के निजी आशयों,
जीवन संदर्भों से विच्छिन्न
अब सब कुछ कविता का पाठ है
कठिनाई नहीं कहे और जिये के द्वंद्व की
जरूरत नहीं कविता को जिंदगी से
प्रमाणित करने की

अर्थ की इतनी गहरी चोट है उनमें
कि शब्द और कला की चिंताएँ उपेक्षणीय हैं
तात्विक हैं उनके सरोकार
कहते हैं कठिन समय है यह कविता का
मुश्किल हो गए हैं शब्द
हालाँकि जैसे जैसे मुश्किल होते गए हैं शब्द
वैसे वैसे आसान होती गई है उनकी कविता।

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