
– विनीता तिवारी, वर्जीनिया, अमेरिका
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भूल रहे सब भाईचारा
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हर भाषा को
दूसरी भाषा से ख़तरा है
हर इंसान यहाँ
तरकीबों का पिंजरा है
कैसे,
किससे आगे निकले
कैसे, किसको
पीछे छोड़ें
भाषा हो या
राष्ट्र, धर्म सब
खड़े दूसरे से मुख मोड़े
चली आ रही
यही चुनौती
नित नूतन स्पर्धा बोती
कहीं जूझती
भाषा सबसे
कहीं धर्म की
आड़ में फँस के
भूल रहे सब भाईचारा
बात बात पर है बँटवारा।
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