एक बच्चे की भावनाओं और इच्छाओं का उस समय से संकलन जब वह इस दुनिया में आने वाला है, उसकी माँ की गोद से लेकर उस समय तक जब वह अपने आप को व्यवस्थित करना शुरू करता है।

यह छोटा सा काम एक कोशिश है, उस मन में वास्तविक जीवन की जिज्ञासाओं, आँखों में सपनों, अपने आस-पास के लोगों से अपेक्षाओं, समय बीतने के साथ जिज्ञासु सवालों को पकड़ने की।

भाग 1: आगमन/जन्म

शुभ्र अंक के ज्योति भाव को, सागर तल के मोती को,

हृदय कमल में धारण कर हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।

आभा लेकर नवरत्नों की, वरण शीर्ष का करने को,

किरीट तुम्हारे ह्रदय का बनने हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

स्वर्णिम लाली सूरज की जब, शिखर ताल से जा टकराती

वह सुंदर अनुपम छटा मुझे, लाल परी अक्सर दिखलाती।

कलरव कहीं-कहीं पर कलकल, करते मेरे मन में हलचल,

इस वैभव में एक चांद जोड़ने, सतरंगी नगरी से लाया।।

सात सुरों के संगम जैसा, इंद्रधनुष की छटा लिए

वसुंधरा पर प्यार फैलाने, अनंत ब्रह्म से सीख के आया।

मंगलमय शुभ बेला में, उदित सूर्य का भाव लिए,

इस आंगन में खुशियां बरसाने, सात समंदर पार से आया।।

शील तेजबल ज्ञान उदय हो, मन में दृढ़ संकल्प बना हो,

मानदंड एक नया बनाने, आशीष ईश का लेकर आया।

सीच मुझे एक तरु बनाना, गोल धरा पर दिशा दिखाना,

तुमसे यह आशा लेकर, हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

भाग 2: बचपन और कौतूहल

कागज क्यों न टूटे गिरकर, जब टूटे हैं कांच की प्याली,

शेर की गर्जन भारी क्यों, क्यों कोयल की है धुन मतवाली।

परछाई में क्यों न दिखते, नयन नक्श अपने ही मुझको,

है निर्मल मन, जिज्ञासु बन, मैं प्रश्नावली बनाकर लाया।।

पांच बरस की लीला मेरी, अनुभव तो की होगी तुमने,

निज रूप यही मेरा है देखो, प्रदत्त किया है जो ब्रह्मा ने।

सरल हृदय है, प्रफुल्लित मन है, द्वेष नहीं समभाव परम है,

श्रेयस्कर निज रूप बनाने, हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

लाल परी की मधुर कहानी, लगती मुझको सदा सुहानी,

वह ममता मेरी माता की जो, धरा ना लगती अब अनजानी।

जिद पूरी हो सब मन का हो, तब कैसा चंचल मुख मुस्काया,

ममतामयी मां की गोदी में, किलकारी भरने को आया।।

श्वेत वस्त्र की भांति मेरा, अंतर्मन निर्मल निश्चल है,

पर क्या श्याम रंग है, क्या सतरंगी, निर्णय का यह भाव प्रबल है।

जल-थल-अनल, पवन-गगन के, तत्व भाव को समझा देना,

तुमसे यह आशा लेकर, हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

भाग 3: अपनी पहचान बनाना/स्वप्न संजोना

ऊर्जा शक्ति का पार नहीं उत्साहित रहता हूं प्रतिपल,

विषय वस्तु का ज्ञान नहीं स्वप्न संजोता हूं उज्जवल।

क्या केंद्र बिंदु हो, लक्ष्य कहां हो? बढ़े कदम पर समझ ना आया,

समर्थ बनू, यह चाह लेकर, हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

आदर्श ही नहीं, तुम उदाहरण हो, इस जीवन शैली के लेखक हो,

तुलना किसकी किससे करना, उन भाव प्रवाहो के प्रेरक हो।

संदर्श सही, सोपान सफल हो, मधुमय जीवन प्रखर प्रबल हो,

प्रतिबिंब तुम्हारा बनने को, हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

भूल रहा मैं मधुर कहानी, लाल परी की याद सुहानी,

भानु शशि जब चढ़े क्षितिज पर, अब छटा मुझे लगती अनजानी।

इंद्रधनुष की छटा प्रिय थी, लगती मिथ्या कथा पुरानी,

मधुर माला वह फिर से पिरोने, उन पल की तुमसे आशा लाया।।

स्वतंत्र सोच हो, ज्ञान प्रबल हो, उत्साहित हो पथ पर चलना हो,

सुख समृद्धि ज्योतिपुंज हो, तमस भाव का अंत सदा हो।

सक्षमता का पार नहीं हो, रचनात्मक शक्ति अपार हो,

अनुसरण तुम्हारा करने को, हे जन्, मैं मधुमन लेकर आया।।

भाग 4: चुनौतियां और पिता-पुत्र संवाद

हे तात, करो वर्णन उस पल का, खड़ी चुनौती आकर द्वार,

वह कटु वचन, भयभीत नयन ये, मन में उठता हाहाकार।

भुजा फड़कती, लपट सुलगती, क्या चक्रव्यूह, यह समझ ना आया,

इसी प्रयोजन को पाने क्या, जन्, मैं मधुमन लेकर आया?

जीवन अभी आरंभ हुआ है, क्यों रचना ऐसी की ब्रह्मा ने?

कहीं बनावट, कहीं दिखावट, यह स्वप्न नहीं देखा था मैंने।

शायद मैं भी गर्व करूं, कुछ दंभ भरूं, तो अनुचित क्या है?

तात तुम्हें भी सिखलाने को, अनुशंसा यह लेकर आया।।

मधुमन मेरे, यह वचन तुम्हारे, लगते नहीं कठोर कहीं से,

सत्य सरल स्वरूप सदा तेरा, है इनका ना अभाव कहीं से।

मैं नहीं असम्मत तेरे मन से, पर समझ सृजनकार की माया,

विश्वास अटल, तू योग्य प्रबल, होगी तेरी शीतल छाया।।

हिचक हिचक कर राह ना कटती, तीखी लगती धूप सुनहरी,

पथ न सुगम हमेशा होगा, हर बाधा बने प्रेरणा तेरी।

मुक्त हृदय से कर आलिंगन, अपनी निजता को, काया को,

यह आशीष मेरा ही बल तेरा है, सुन, तू मधुमन लेकर आया।।

ऋजु भार्गव

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