पृष्ठभूमि यह है, की बिग बैंग सिद्धांत से ब्रह्मांड का निर्माण प्रारंभ हुआ और किस प्रकार पृथ्वी पर जीवन का प्रादुर्भाव हुआ। कहा ये भी गया है कि ब्रह्मा को सृष्टि निर्माण के लिए  सरस्वती का सरंक्षण और मार्गदर्शन मिला था

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गूंज वो विशाल थी, ध्वनि बड़ी कराल थी

सृष्टि छिन्न भिन्न थी, अव्यवस्था कमाल थी

ब्रह्मदेव सन्न थे, नींद से उठे ही थे

यह स्वप्न है यथार्थ है, बड़े चकित भ्रमित थे

कहाँ से शुरु करुं, कैसे ये बहाल हो

व्योम पर धरा बने, और धरा पे जल भी हो

बनें संगठित अणु, पंचतत्व बिखर चलें

प्रज्वलित अनल रहे, पवन चले लहर चले

सोच रहे प्रजापति, गहन शांति चल उठी

कहां क्या कमी रही, क्यों योग्यता मेरी रुठी

जंभाई ले व्यतिथ हुऐ, और तभी चकित हुऐ

सौदामिनी समक्ष थीं, ज्ञानकोश लिऐ हुए

मात्र सृष्टा कहलाना नहीं उचित, होगा निर्माण करने को

हे हिरण्यगर्भ, सुनो तुम्हारी योग्यता निखारने को

ज्ञान, वचन अनिवार्य रहे तो, कार्य तुम्हारा सुगम रहेगा

सृष्टि के निर्माण चरण से नाम तुम्हारा प्रथम रहेगा

इस छिन्न भिन्न सृष्टि में भी, अलंकार है, अहंकार है

ज्ञान लगा कर ही देखोगे, किसका कैसा क्या आकार है

ज्ञान शक्ति मैं बता रही, तुम सृजन कार्य आरंभ करो

वाणी की तरंगित ऊर्जा से, वेदों का प्रारंभ करो

मै समाहित इस कार्य में, भ्रम तुम्हें तजना होगा

ध्यान दमन एकाग्रचित से, संगठन करना होगा

सृष्टि में आगामी होंगे धन वैभव और अतुलित बल

अधिकारिणी होंगी इनकी, मेरी अनुजा संपन्न सबल

लक्ष्मी होगा नाम, कभी न संसाधन होंगे रीते

नाम भवानी कण कण में जब, सृष्टि रण में हर कण जीते

सृजन संग सुहाता ज्ञान, तेजोमय सृष्टि होगी

रहा यदि अभाव कहीं से, न लक्ष्मी न ही भवानी होगी

सृष्टि हम से पृथक न होगी, शील तेज बल ज्ञान रहेगा

सृजन से संहार काल तक, आशीष हमारा सदा रहेगा

उठो उठो अब सत्य यही, ब्रह्मांड खड़ा उस पार

ज्ञान पुंज की छाया लेकर, प्रारंभ करो संसार

सुन स्वयंभू ने चक्षु मूँदे, ध्यान लगाकर बैठ गए

बिखरे कण जो दौड़ रहे, ग्रह तारे बनकर सिमट गए

आरम्भ हुआ संसार, ऋचायें निकल पड़ीं मुख मंडल से

मुदित खड़ी थी शारदा , विद्या छिटक पड़ी कमंडल से

दूर गगन में बिखर गयी, तारों की चांदी सी चादर

प्रकाशपुंज मंदाकिनी, सजी अंतरिक्ष में आकर

अनल पुंज से बने भास्कर , नवग्रह यों घूम पड़े

ओंकार सरीखे स्वर ले कर, परिक्रमा को निकल पड़े

चक्र व्यूह में बंधकर बैठे, सूरज के सुत शनिदेव

बृहस्पति विशाल निकट आ ,बैठे देवों के गुरुदेव

प्रकट हुई भू देवी अद्भुत, नीलाम्बर को धारण कर

देख रचन को हर्षित थी, मां सरस्वती सिंहासन पर

जलमयी पृथ्वी आधार बनी, ब्रह्मा के सृष्टि स्वप्न की

जीवन की यह कोख बनी, नारायण की लीला की

मत्स्य बने, कच्छप बने, वराह सरीखे प्राणी आए

क्रम विकास प्रगति पर था, मंथन से रत्न अमोल आए

प्रगट हुई लक्ष्मी अनुजा, कथनानुसार भारती के

सृष्टि वैभव पूर्ण हुई, ये सुलभ नहीं बिन ज्ञान के

गठ बंधन में बंधी भवानी, नीलकण्ठ महादेव के

शक्ति रूप में स्थित हुई, हर कण कण में भू देवी के

थीं उद्वेलित सागर लहरें, उठ चले गिरी गहराई से

उपवन रचित किए सृष्टा ने, बड़ी मधुर चतुराई से

संगठित हुई रचना ब्रह्मा की, हंस वाहिनी देख रही

अब न रुकेगा कालक्रम यह, ज्ञान ध्यान की जीत यही।

ऋजु भार्गव

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