डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव, ब्रिटेन

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सर विंस्टन चर्चिल मेरी मां को जानते थे

सर विंस्टन चर्चिल जानते थे कि भारत क्या है।
वे जानते थे
क्योंकि वे मानते थे कि भारत ब्रिटिश-साम्राज्य का
वह कोहिनूर हीरा है—जिसमें कभी सूर्य नहीं डूबता

सर विंस्टन जानते थे उस शहर को भी
जो उनके लोगों द्वारा, उन सब की सुविधा के लिए
हिमालय की गोद को काट कर, तराश कर
बनाया गया था—वह हिमानी शिखर-शिशु—
जिसे मसूरी शहर कहा जाता है

सर विंस्टन जानते थे कि वह कहां और क्यों है
क्योंकि वे, वहां उस उतार-चढाव वाले
लंबे रास्ते पर सैर कर चुके थे
जो उन्हें ब्रिटिश-साम्राज्य के एक और
बेहद सुदंर शहर एडिनबरा के
प्रिंसेस-रोड की याद दिलाता था—कहीं किसी कोने से

और सर विंस्टन यह भी जानते थे कि वहां
उस मसूरी शहर में भी,
ब्रिटेन के साम्राज्य की नीवों को खड़खड़ा देने वाली
कुछ ऐसी लहरें उठने लगी हैं,
जो भारतीय राष्ट्रीय-संग्राम के
सिरफिरे नंगे फ़कीर का पागलपन ही उन्हें लग सकती थी

और सर विंस्टन यह भी जानते थे कि भारत में
उसी नंगे फ़कीर को पिता की तरह पूजने वाली
कुछ औरतों ने मसूरी शहर में भी रास्ते पर—
पंक्तियों में लेट कर एक रोज़,
ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिकों के दस्तों को
आगे जाने से रोक दिया था
और उसमें कुछ थीं—ऐसी नारियां भी,
जिनके पेट फूले हुए थे और जो
किसी भी क्षण अपने बच्चे को जन्म दे सकती थीं

इसीलिए, और बिल्कुल इसी कारण से लदंन पहुंचते ही
मैं हाइड-पार्क गेट गया था
और सर विंस्टन के बंद मकान के सामने खड़ा होकर,
सादर नमस्कार करके, यह जोर से कह पड़ा था—
सर विंस्टन आप मेरी मां को जानते हैं,
वह भी एक सात महीने के बच्चे का पेट फुलाए
मेरे पिता का आशीष लेकर
मसूरी के उसी रास्ते पर लेट गई थी,
जहां से फौजियों के दस्तों को लौटना पड़ा था—

मैं उसी मां के पेट से जन्मा उसका बेटा हूं
और मेरा नाम सत्येंद्र है
और मैं आपसे यह कहने आया हूं
कि मैं अब इंग्लैंड में आ गया हूं।

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(साभार-‘धरती एक पुल’ कविता संग्रह से)

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