
– कीर्ति चौधरी, ब्रिटेन
वक्त
यह कैसा वक्त है
कि किसी को कड़ी बात कहो
तो वह बुरा नहीं मानता।
जैसे घृणा और प्यार के जो नियम हैं
उन्हें कोई नहीं जानता
खूब खिले हुए फूल को देख कर
अचानक खुश हो जाना,
बड़े स्नेही सुहृद की हार पर
मन भर लाना,
झुंझलाना,
अभिव्यक्ति के इन सीधे सादे रूपों को भी
सब भूल गए,
कोई नहीं पहिचानता।
यह कैसी लाचारी है
कि हमने अपनी सहजता ही
एकदम बिसारी है!
इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है
कि फर्क जल्दी समझ में नहीं आता
यह दुर्दिन है या सुदिन है।
जो भी हो संघों की बात तो ठीक है
बढ़ने वाले के लिए
यही तो एक लीक है।
फिर भी दुख सुख से यह कैसी निस्संगता
कि किसी को कड़ी बात कहो
तो भी वह बुरा नहीं मानता
यह कैसा वक्त है।