
– कीर्ति चौधरी, ब्रिटेन
देश मेरा
देश मेरा हो गया है
समृद्ध और वैभवशाली
दैनिक जरूरतों में शामिल है
फ्रिज, टेलिविजन और मोटरगाड़ी
एक दौड़ जिसे निबटा लिया है
बहुतों ने
बाकी बस पहुंचने वाले हैं।
साफ दिखती है
मंजिल उन्हें
न कोई शंका, न ऊहापोह
जोर लगाकर चढ़ा देना है
ठेले को एक बार
बढ़ता ही चला जाएगा
ढलान पर अपने आप
संपन्न हैं बच्चे
और व्यस्त हैं माता-पिता
सबके पास कुछ-न-कुछ
गर्व करने को है
जो चिपका है कंधों पर
गोंद सा
भिनभिना रही हैं
मक्खियां चारों ओर
फेंका नहीं जाता है
कन्धों का बोझ
लोग जिम्मेदार हो गए हैं
छोटे हों या बड़े
और मक्खियों की बन आई है
मेरे देश में।
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