डॉ. गौतम सचदेव, ब्रिटेन

लंदन के फुटपाथ-शायी

शंख औंधे जा पड़े इस-उस किनारे
लहर के छोड़े हुए सूने पिटारे

भूख कुतिया-सी न छोड़े साथ इनका
चुन रहे पत्तल फिंकी से नमकपारे

राज गुजरी पास से अभिसारिका-सी
पर उसे न चाहिए ये चिर-कुंवारे

मूतने तक को मिले न एक कोना
रोशनी बेचैन हो-होकर निहारे

देखता एकाध कोई भीख देकर
कौन है उम्मीद की टोपी पसारे

दर्द शायद जानता असमर्थ खंभा
टूटते बेकार डिब्बों में सितारे

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