“हाय दीदी!” चहकती हुयी निनी लिसा के कन्धों पर झूल गयी।
“बहुत खराब हैं दीदी आप। कितना वेट कराया। नहीं आना था तो पहले ही बता देतीं। सारे लोग आप की वेट कर रहे थे। पूरा आधा घंटा देर से एनी ने केक काटा था। अंकल तो हाथ में कैमरे लिये तैयार होकर कह रहे थे कि पहली फोटो एनी की दीदी लिसा की ही लेनी हैं जो इस फंक्शन की चीफ गेस्ट हैं। सबने कितना मजाक बनाया मेरा। और यह सब हुआ आप की खातिर—आपके न आने से। और हाँ, बाई द वे, एक खबर भी दे दूँ…चलिये बता देती हूँ—आपके रंजन साहब भी वहाँ आये थे, सब तरफ बड़े गौर से देख रहे थे। आखिर में जब नहीं रहा गया तो एनी से पूछा कि क्या लिसा नहीं आयेगी। एनी को तो गुस्सा था ही आप पर, तो पैर पटक कर बोली, ‘और कीजिये फिलॉसिफी में रिसर्च। वह पहले कम फिलॉसफर थी, अब और भी बना दीजिये।’ बेचारे रंजन साहब! उन्होंने तो वहाँ से दूर जाने में ही अपनी खैर समझी।…वैसे दीदी आप आयी क्यों नहीं? भूल गयीं थी क्या? या कहीं ऐसा तो नहीं कि घर से निकली एनी के घर के लिये और पहुँच गयी लायब्रेरी?”
निनी ने अपनी प्रश्नसूचक नज़रें लिसा के चेहरे पर टिका दी।
“थैंक गॉड… तुम्हारा एल.पी. रुका तो सही।…असल में यूनिवर्सिटी से आकर थक गयी थी। किताबें भी ले आयी थी, नोटस् बनाने थे, तो सोचा, आराम कर लूँ। बस और कोई खास बात नहीं। अरे… यूँ घूर घूर कर क्या देख रही है? “
तभी लिसा को याद आया कि कल भी उसने निनी से यही कहा था और अब भी यही।
लिसा के लगा कि मैस का तरफ से आता हुआ धूआँ उसे अपने में घेर लेगा और वह इस में उलझ कर तहस नहस हो जायेगी।
कुछ पलों में ही नार्मल होते हुये बोली, “सुनो निनी, आज डिनर का मूड तो नहीं है। तुम्हें भी भूख नहीं होगी तो बस चाय पिला देना जब तुम अपनी बनाओ।
“तुम कपड़े बदल लो, बाहर लॉन में चलते हैं।”
…
“अरे क्या हुआ? कपड़े नहीं बदलने?” निनी को वहीं खड़ी देख लिसा असहज सी हो गयी। जल्दी से बोली, “अच्छा चलो, बाहर लॉन में चलते हैं।”
“नहीं दीदी। पहले एक बात बताइये, कल भी आप टाल गयी थी। कुछ तो है जो आप छुपा रही हैं। देखिये अगर वही मम्मी वाला चक्कर है तो मुझे समझ नहीं आता कि आप अभी तक उसी दायरे में क्यों सिमटी हुयी हैं। आपको उससे बाहर आना होगा। और फिर यह कुछ नया तो नहीं है न। बताइये क्या बात है?”
निनी की आँखों में तैरते उस प्रश्न से लिसा ने आँख चुराने की कोशिश की।
“अरे कुछ भी नहीं है। मम्मी के लिये तो परेशान नहीं हूँ और अब किसी के लिये भी मैं परेशान नहीं होने वाली। मैं परेशान होती तो क्या यूँ यह रेडियो चल रहा होता?”
“वाह, क्या लॉजिक है।…ठीक है मत बताइये। अभी वार्डन से पूछती हूँ। उन्हें तो आपकी हर आहट का पता रहता है। फोन भी किये होंगे आपने। अभी सब पता लग जायेगा।”
कहते कहते निनी ने कुछ ग़ुस्से से अपना बैग को बिस्तर पर से उठाया और तेज़ी से बाहर की ओर बढ़ चली।
लिसा ने भी जल्दी से निनी का हाथ पकड़ने की कोशिश तो की पर उसकी पहुँच के बाहर निनी पलक झपकते ही कमरे से बाहर जा चुकी थी।
लिसा काफी देर तक निनी के लौटने की इंतज़ार करती रही।
‘शायद नाराज़ हो गयी है।’ मन ही मन बुदबुदाते हुये लिसा की नज़रें सामने रखे फ्रेम पर अटक गयी। मम्मी पापा के साथ उसकी फोटो।
‘सब कुछ कैसे एक पल में बदल गया।’
उसी के बाजु में रखे फ़्रेम में थी चर्च में प्रार्थना की मुद्रा में फादर नोयल की तसवीर।
साथ ही था एक और फ्रेम जिसमें थी वह अपने प्यारे अंकल चैपल के साथ।
सम्बन्धों के इस त्रिभुज का हर कोना समान दूरी पर था।
अंकल चैपल… नहीं नहीं…डैड चैपल…. सम्बन्धों के इस ताने बाने में वह उलझ कर रह गयी। कभी लगता कि यह सब झूठ है और किसी ने बड़ा ही भद्दा सा मजाक किया है पर सामने पड़ा खत, पापा से फोन पर बात—सब चीख चीख कर कह रहे थे कि लिसा तुम आर्थर की नहीं, चैपल की बेटी हो।
लिसा आर्थर के रूप में तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है।
उसे लगा, सारी दुनिया में वह अकेली है, उसका कोई साथी नहीं। जैसे वह शापग्रस्त है, उसकी आत्मा को ईश्वर एक पल में अपने में समा लेंगे।
व्याकुल होकर, लिसा ने खिड़की के पास आकर शाम के धुंधलके में शहर को देखने की कोशिश की। दरिया के बीच डूबते किसी इन्सान के किनारे की ओर देखने की चाहत की तरह, वह कुछ पलों तक खिड़की में लगे काँच के झरोखे से, बाहर लॉन को और लॉन के आगे सड़क को देखती रही।
‘तैरने में कोई फायदा नहीं, डूब जाना ही अच्छा है।’…एक ख्याल कोंधा।
‘सेव मी क्राइस्ट’ तीन शब्दों में अपनी व्यथा कहते हुये वह धीरे धीरे कदम रखते हुये, फादर नोयल की तसवीर के सामने आ खड़ी हुयी। अतीत और वर्तमान के बीच कुहासे की चादर को चीरते हुये बीते कुछ पलों में खो गयी।
निनी चाय लेकर आयी तो देखा कि दरवाजा बंद है पर थोड़ा सा हिलाने पर वह खुल गया। अपनी सफलता पर निनी विजय भरी मुस्कान से भर उठी। पर तभी अनुभव किया कि कमरे में एक अजीब सी घर्र घर्र की आवाज आ रही थी।
पलंग के कोने में पड़ी अलार्म क्लॉक पर चल रहे रेडियो की सुई कहीं हिल गयी थी। शायद अपने ख़्यालों में गुम लिसा का हाथ क्लॉक पर लग गया था।
और लिसा… वह कहीं दूर अपने अतीत में गुम थी।
चर्च में प्यानो पर फादर नोयल के साथ इवनिंग चैपल में गा रही थी—
दिस इज माई फादरस् वर्ड एंड टू माइ लिसनिंग इयरस्
आल नेचर सिंगस् एंड राउंड मी रिंगस् द म्यूजिक ऑफ द स्फेयर
दिस इज माई फादरस् वर्ड व्हाई शुड माई हार्ट बी सैड?
द लॉर्ड इज किंग लैट हैवनस् रिंग, गॉड राइन लैट द अर्थ बी ग्लैड।…
(This is my father’s world
And to my listening ears
All nature sings, and round me rings
The music of the spheres …
…. This is my father’s world
Why should my heart be sad?
The Lord is king, let the heavens ring
God reigns, let the earth be glad …)
प्रार्थना समाप्त होने पर फादर नोयल ने क्रॉस बनाते हुये लिसा को आशीर्वाद दिया, “गॉड ब्लैस यू।”
“फादर क्या मैं हमेशा आपके पास ही रहूँगी? क्या मेरे पापा मुझे अपने घर में नहीं रखेगें? और मम्मी क्या मुझसे यूँ ही नाराज़ रहेगीं? फादर मुझे लगता है मेरे एकाकीपन की शुन्यता अगाध है। सब मुझे बेचारी कहते हैं। आप कहते हैं, जीवन और मरण पर प्रभु का अधिकार है तो मेरे मामा की मृत्यु का मेरे जन्म से क्या सम्बन्ध था? मेरे जन्म के समय क्या प्रभु ने नहीं सोचा था कि इसका मुझसे क्या सम्बन्ध होगा? …शायद कोई स्वार्थ रहा होगा—सभी स्वार्थी हैं—यही न?”
“नहीं, ऐसा नहीं सोचते।”
फादर ने लिसा के प्यार से समझाते हुये कहा, “लिसा प्रभू पर विश्वास करो। आत्मा की शक्ति पर विश्वास करो। जिस लोक को प्रभु ने बनाया और हजारों लोगों ने उसे अच्छा बनाये रखने का अथक संघर्ष किया है, उसके लिये शिकायत करने का अधिकार किसी को नहीं है। मानो कि तुम प्रभु के प्रेम से घिरी हो। यू नो, क्राइस्ट नेवर लाफड। क्राइस्ट!”
“क्राइस्ट-क्राइस्ट … बस और कुछ नहीं है आपके पास कहने को। नहीं हँसा क्राइस्ट तो कोई भी न हँसे। सारी दुनिया रोये…यही कहना चाह रहे हैं न आप ?” लिसा का गुस्सा जैसे सातवें आसमान पर था।
फादर ने प्यार से लिसा के सर पर हाथ रखते हुये उसको वहीं कुर्सी पर बिठाया, “नहीं लिसा, गुस्सा नहीं। मैंने बताया था न कि जब गुस्सा आने लगे तो उसे पोस्टपोन कर दिया करो। अच्छा अब पहले हँस कर दिखाओ।
लिसा के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। यह देखते ही फादर ने कहा, “देखो अब कितनी अच्छी लग रही हो। बस यूँ ही खुश रहा करो। परिस्थिती कैसी है, इस पर कुछ निर्भर नहीं करता बल्कि हम परिस्थिती को कैसे लेते हैं सब कुछ उसी पर होता है। अब धरती से आकाश अधिक चमकदार है इसका कोई अर्थ नहीं जब तक हम धरती की सुन्दरता को पहचान नहीं लेते। तभी हम आकाश में उदय होते सूरज के तेज, उसकी प्रभा, अस्त होते सूरज की लालिमा और तारों की चमक का आनन्द उठाने का अधिकार पा सकते हैं।”
लिसा के चेहरे पर तटस्त भाव देख कर, फादर ने जल्दी से कहा,
“अरे देर हो गयी है… जाओ मैस में सिस्टर नेन्सी डिनर के लिये इंतजार कर रही होगी। अच्छा गुड नाइट। गॉड ब्लैस।”
लिसा फादर को सर झुकाये अन्दर के कमरे की ओर जाता देखती रही।
…
“दीदी चाय” निनी ने चाय का कप उसकी ओर बढ़ाते हुये कहा।
लिसा चौंक गयी।
अतीत से वर्तमान की ओर आते हुये लिसा ने जैसे अजनबी निगाहों से निनी को देखा। सहज होने में कुछ समय लगा।
“अरे बड़ी जल्दी चाय बना ली। और हाँ, तुमने फंक्शन के बारे में बताया ही नहीं। कैसा रहा सब? एनी को कल याद से फोन करके सॉरी बोल दूँगीं।”
तभी निनी की पैनी नजरों से बचते हुये जल्दी से बोली, “ऐसा फिर कभी नहीं होगा। प्रॉमिस।”
“ओ के. दीदी आपने पापा को फोन किया था न? और रंजन जी से क्यों नहीं मिली शाम को? वह शायद आपसे मिलने के लिये ही पार्टी छोड़कर चले गये थे। सब वहाँ उन्हें ढूँढ़ रहे थे। वार्डन दीदी ने बताया कि वह आये थे और आप उनसे नहीं मिलीं। क्या हुआ है? मुझसे छुपाना बेकार है, आप जानती हैं। तो बस सारी बात बता दीजिये।”
तीखी नजरों को लिसा के चेहरे पर गड़ाते हुये निनी ने प्रश्नों की बौछार कर दी।
“कुछ भी नहीं है। तुम्हें तो बस वहम रहता है।”
लिसा ने हँसकर टालने की कोशिश की पर इस बीच मेज पर रखा खुला खत निनी के हाथ में था। वह निनी को उसे पढ़ने से रोक न सकी। यह अपनत्व से भरा अधिकार तो स्वयम् उसने ही निनी को दिया था।
निनी के पास कुछ भी नहीं बचा था पूछने को। कुछ पल के लिये वह भी स्तब्ध सी रह गयी। कोशिश करके सिर्फ इतना ही कह पायी—
“दीदी क्या यह सच है?”
और फिर लिसा को झकझोरते हुये पूछने लगी कि क्या सब सच है।
और लिसा निनी के आगे एक किताब के पन्ने की तरह खुल गयी,
“निनी, अंकल…नहीं, डैड…पता नहीं… बस एक बार जाते समय ही कह दिया होता। हमारे ही शहर से ट्रांसफर हुआ था। उस दिन वह आये थे और चाहते थे कि मैं उनके साथ रहूँ। उन्होंने कहा था—लिसा बेटे, आज अंकल के साथ रह जाओ—न जाने फिर कब मिलेंगे। और पापा से कहा कि दूसरे दिन मैं उन्हीं के साथ स्टेशन पर आ जाऊँगी। मुझे तो उनका साथ बहुत पसंद था तो चहकती हुयी उनके साथ गयी थी।…सारा समय हम अलग अलग गेमस् खेलते रहे। भाग भाग कर उन्हें पैकिंग में मदद कर रही थी। जब सोने जा रही थी तो उन्होंने कस कर मुझे बाहों में समेट लिया था। बार बार कह रहे थे कि अंकल को भूलोगी तो नहीं। आर्थर को कहूँगा कि तुम्हें बहुत अच्छे बोर्डिंग स्कूल में भेजें। अंकल को भुलाना नहीं—उनकी आँखों में तैरता दुख साफ दिखायी दे रहा था और मैं घबराकर रोने लग गयी थी। फिर रोते रोते कब सो गयी थी याद नहीं।…अब लग रहा है कि शायद… मुझे लिसा चैपल के रूप में देखने की या कहने की लालसा रही होगी मन में।… उन्हीं के कहने पर ही पापा ने मुझे यहाँ कॉन्वेन्ट में भेज दिया था फादर नोयल के पास। अंकल हर छुट्टी पर मुझसे मिलने आते रहे। आज लग रहा है कि शायद इसी ब्लड रिलेशन की वजह से मैं भी उनसे मिलने की राह देखती रहती थी। उनके फ़ोन का, उनके खत का इंतजार करती थी। यहाँ यूनिवर्सिटी में मेरे एडमिशन के समय वह ख़ास तौर से मेरे लिये आये थे। और दो साल पहले जब छुट्टियों में घर गयी थी तो वह फोन भी मैंने ही रिसीव किया था—कि मेजर चैपल इज नो मोर। …और… और मुझे अच्छे से याद है कि पापा ने कहा था कि तू तो चैपल की ही बेटी थी। तब मैंने इसे मात्र भावुकता समझा था, पर अब, आज समझ आ रहा है कि उस सब का सार क्या था। जानती हो निनी, आख़िरी बार अंकल …नहीं नहीं.. डैड…जब मिले थे तो जाते समय कुछ कहना चाहते थे… शायद बताना चाहते होंगे कि…”
लिसा की आँखों से पानी बहता जा रहा था।
निनी ने लिसा का हाथ पकड़ते हुये उसे रोकना चाहा।
“दीदी… जो हो गया वह बदल नही सकते। यादों में भटकने से भी क्या होगा। दीदी, पता नहीं कैसे लेकिन प्लीज टेक इट इजीं । फादर नोयल की तरह कहूँगी कि हैव फेथ।”
लेकिन निनी को अपनी ही बात खोखली सी लगी।
आगे का समय उस खामोशी कैसे कटा, वही जानती थी।
लिसा यंत्र संचालित सी दिनचर्या के साथ रोज यूनिवर्सिटी जाती और वापस आकर अपने कमरे में बंद हो जाती। होस्टल की चहकती चिड़िया लिसा जो रात को 10 बजे से पहले कमरे में तब तक नहीं जाती थी जब तक वार्डन आकर न कहे, अब, कब अपने कमरे में आ जाती, किसी को पता भी न चलता। सब यही सोचते कि लिसा शायद परीक्षा की तैयारी में व्यस्त है सिवाय निनी के जो हर पल उसके खाने पीने का ध्यान रखती। हर पल उसके आगे पीछे एक साये की तरह लगी रहती। कभी कभी निनी, लिसा को जबरन होस्टल के बाहर पास के रेस्टोरेन्ट में ले जाती।
ऐसी ही थी वह एक शाम जब लिसा न चाहते हुये निनी के साथ कॉफी पीने के लिये राजी हो गयी। रेस्टोरेन्ट में रंजन पहले से ही मौजूद था। इससे पहले कि निनी कुछ कहती, रंजन उनके पास आकर बोला,
“हैलो! बहुत देर कर दी। आधे घंटे से इंतजार कर रहा था। अब तो मैं बस जाने ही वाला था, लगा नहीं आओगी। क्या युनिवर्सिटी से लेट हो गयी ?”
“आपको निनी ने बुलाया था क्या?”
“हाँ क्यों?” रंजन कुछ समझ नहीं सका।
“नहीं यूँ ही पूछ लिया। आइये उधर बैठते हैं।” एक कार्नर टेबल की ओर बढ़ते हुये लिसा ने कहा।
“सॉरी दीदी।” निनी ने नज़रें चुराते हुये धीरे से लिसा को कहा। तभी अचानक से उसकी नजर दूसरी तरफ बैठे अपने कुछ साथियों पर पड़ गयी। इस अपराध बोध की स्थिती से बचने का इससे बेहतर तरीका और क्या होता, तो बस निनी उस ओर मुड़ी और कहा,
“दीदी मैं जरा अपने दोस्तों के साथ हूँ। आप रंजन जी के साथ बातें करें।”
इससे पहले कि लिसा कुछ कह पाती, निनी मुड़ गयी और वह गयी। और लिसा निनी की इस हरकत पर अपनी हँसी नहीं रोक सकी।
कॉफी ऑर्डर करके उसने रंजन से पूछा, “रिसर्च कैसी जा रही है।”
“ठीक ही है।”
“रंजन, आय एम सॉरी! आप कितनी बार होस्टल आये पर मैं आपसे मिली नहीं। असल में…आई मीन, वैसे मुझे आपको कुछ बताना भी है। मुझे लगता है कि सच्चाई जानने के बाद आप को अपने निर्णय को दोबारा…”
“सोचना पड़ेगा।” लिसा की बात काटते हुये रंजन ने कहा।
“मुझे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। मैं सब जानता हूँ। निनी ने सब बता दिया है ।”
“निनी ने?”
“हाँ…कि तुम आर्थर अंकल की नहीं बल्कि अंकल चैपल की बेटी हो जो अब इस दुनिया में नहीं है। और यह सच्चाई तुम्हें किसी ने खत लिखकर बताई जो सच भी है। और अब तुमने हर एक से नाता तोड़ लेने की ठान ली है। यहाँ तक की मुझसे भी जिसे तुमने अपना जीवन साथी बनाने का निश्चय किया है।”
रंजन किसी रटे हुये पाठ की तरह बोल रहा था। और लिसा एक टक सिर्फ़ देख रही थी।
लिसा को यूँ हैरान सा देख कर उसने आगे कहा,
“लिसा मानता हूँ कि यह सब बहुत अजीब सी बात हुयी है। इटस् ए डिफिकल्ट सिचुवेशन बट… हम मिलकर हेंडल करेगें। और फिर इस सबमें मेरा क्या कसूर है कि मुझसे भी अलग होना चाहती हो।”
“रंजन, ट्राई टू बी रियलिस्टिक। आपके परिवार के लिये यही एक शॉक काफी नहीं कि मैं क्रिस्चियन हूँ, अब ऊपर से यह सच कि मैं अपने पैरेन्टस् की रियल बेटी भी नहीं हूँ।”
“लिसा, अब मेरे घर वालों को इतना कमजोर भी न समझो। होते हैं कोई लोग जिनको इससे फर्क पड़ता होगा। धर्म तो श्रद्धा का फल है। आस्था ही तो वह आशा है जो मानव को ईश्वर की खोज के लिये ले जाती है। और सब धर्मों में आस्था एक ही है।”
“यह कोरा आदर्शवाद है।”
“नहीं लिसा। तुम गलत सोच रही हो। तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मैं ही क्या मेरे परिवार में कोई भी धर्म और जाति के बंधनों में नहीं है। फिर यह बात क्यों? मम्मी पापा से तुम मिल चुकी हो। सब तुम्हें पसंद करते हैं। तुम भी तो मम्मी को कितना पसंद करती हो।”
लिसा को शान्त देख कर रंजन ने पूरी बात जानना चाही।
“अच्छा बताओ हुआ क्या था? पूरी बात क्या है? निनी ने कुछ ठीक से नहीं बताया बस यहाँ बुलाया कि तुमसे मिलूँ। निनी कह रही थी कि तुम ठीक से असाइनमेंट भी नहीं कर रही आजकल।”
“ऐसा कुछ नहीं है। निनी की आदत है कुछ ज्यादा ही बोलने की।”
“अच्छा पूरी बात तो बताओ!”
“क्या बताऊँ कि मैं आर्थर से चैपल कैसे बन गयी? या कहूँ कि जन्म के बाद चैपल से आर्थर कैसे बनी थी। कुछ खास देर नहीं लगी थी। … पता चला है कि मेरे जन्म के समय चैपल अंकल …सॉरी मेरे डैड भी उसी हॉस्पिटल में थे जहाँ पापा आये थे मम्मी के लिये। उन्हें बेटा हुआ लेकिन मरा हुआ और यह जान कर वह बेहोश थी। इधर मैं भी जन्मी थी पर जन्म देते ही मेरी मम्मी यानि मिसेज़ चैपल की डैथ हो गयी। …अब दोस्ती की नींव को पक्का करते हुये मैं एक बिस्तर से उठा कर दूसरे पर रख दी गयी। यानि एक आध घंटे के बीच ही मैं लिसा चैपल से लिसा आर्थर बन गयी। यह बात उस समय सिर्फ उस डाक्टर, नर्स, अंकल, आई मीन डैड और पापा के बीच ही थी। अब शायद उस नर्स की वजह से कहीं लीक हो गयी है और किसी ने मुझे खत लिखकर बताया। पापा को फोन किया तो पता चला कि खत का मैटर ठीक था।”
रंजन के चेहरे पर नज़रें गढ़ाते हुये लिसा ने आगे पूछा,
“बस या कुछ और भी पूछना है?”
“नहीं, अभी के लिये इतना काफी है।” लिसा को इस तरह देख कर रंजन को निनी की बात अब समझ आ ही रही थी। उसे लिसा की फिकर होने लगी।
“लिसा तुम इतनी पैसीमिस्ट हो जाओगी सोचा नहीं था। तुम सोच रही हो कि इतनी प्रतिकूल हवायें तुम्हारे रास्ते में ही क्यों या तुम्हीं एक गरजते सागर का सामने करने के लिये मजबूर क्यों कर दी गयीं। लेकिन लिसा, जो यह नहीं जानता कि यह जीवन की एक महत्वपूर्ण शक्ति है, वह जीवन के सार से वंचित रह जाता है। देखो निराशा से हम कमजोर हो जाते हैं और हम पतन की ओर…
“रंजन! शायद आप भूल रहे हैं कि हम यहाँ कॉफी पीने आये हैं, मैं दर्शन शास्त्र की रिसर्च में आपका सबजेक्ट या आपकी फिलोसफी की क्लास में नहीं हूँ। और बाई द वे, कॉफी आ चुकी है।”
“अरे हाँ… कॉफी… तुम भी…” हँसने की कोशिश करते हुये रंजन ने कहा।
“पर एक बात है लिसा, जानती हो, मैं हर दिन तीन बातों के लिये भगवान का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मुझे अपने कार्यों को जानने का सामर्थ्य दिया है, मेरे मन के अँधियारे में श्रद्धा का दीपक जलाया है और इस बात के लिये कि मैं एक ऐसे जीवन की कल्पना कर सकता हूँ जिसमें दिव्य आनन्द है। देखो हर चीज बदलती है—मौसम बदलते हैं गर्मी, सर्दी…”
“कहना आसान है… यह सब मैं भी कह सकती हूँ—जैसे चाँद घटता-बढ़ता है। रात के बाद दिन आता है, वगैरा वगैरा।” रंजन की बात काटते हुये लिसा ने कहा।
“हाँ कह सकती हो और यही सच है। लेकिन सुनो, सुन्दरता अधूरी होती है। देखो, इन्द्रधनुष भी अधूरा दिखता है। इन्द्रधनुष आधा दिखता है उसी तरह से हमारा जीवन भी हम सब के लिये कहीं न कहीं तो खंडित है। हम रॉबर्ट ब्राइनिंग की बात पृथ्वी पर टूटे हुये बिंब स्वर्ग में एक पूर्ण चन्द्र (‘On the earth the broken arcs; in the heaven a perfect round’) का अर्थ तब तक नहीं समझ सकेंगें जब तक हम अपने खंडित जीवन से अनन्त की ओर कदम नहीं बढ़ा…”
तभी रंजन ने देखा कि लिसा अपने आँसू छिपाने का प्रयास कर रही है।
“अरे सॉरी सॉरी … कॉफी तो ठंडी हो रही है।” रंजन कुछ अपराध बोध से भर गया।
और फिर दोनों ने चुपचाप कॉफी खत्म की। वापसी पर दोनों के बीच बड़ी देर तक एक अजीब सी खामोशी छायी रही। होस्टल पहुँच कर लिसा गेट से अंदर जाने के बजाय वहीं खड़ी हो गयी तो हिम्मत करके रंजन ने कहा,
“लिसा, बहुत कुछ बोल गया मैं। सॉरी डियर। लेकिन प्लीज तुम परेशान मत हो। देखो रिश्ते-नाते यूँ नहीं टूटते। और अंकल की तरफ से तो कोई बात नहीं हुई। यूँ अपने आप को सबसे अलग मत करो। फिर, एग्जाम्स भी करीब हैं तो इस सब के बारे में फिलहाल कुछ मत सोचो।”
लिसा ने खामोशी से अपनी सिर हिला दिया।
रंजन ने कुछ सोच कर आगे कहा, “लिसा तुम जो भी डिसाइड करोगी, मैं कुछ नहीं कहूँगा। तुम्हें जो भी करना है , बस फ़िलहाल अपने एसाइनमेंटस् पर फ़ोकस करने की कोशिश करो। अपना करियर मत खराब करो। और… और तुम अकेली नहीं हो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
लिसा ने एक फीकी सी हँसी के साथ अपना सिर हिलाया।
होस्टल में अन्दर घुसते ही लिसा का सामना वार्डन से हो गया।
“अरे तुम आ भी गयी। निनी तो कह रही थी कि शायद रंजन के साथ इवनिंग शो का प्लान है।”
“हाँ, प्लान चेंज हो गया। निनी आ गयी ना?”
“हाँ”, हँसते हुये वार्डन ने कहा, “नाराज लग रही है। कह रही थी कि मेरी फिलॉसफर दीदी को पता ही नहीं कि मैं भी साथ गयी थी कॉफी पीने। अच्छा, तुम्हरे लैटरस् भी हैं। घर से हैं और दूसरा फादर नोयल का। निनी ले गयी है।”
और वार्डन ऊपर के फ्लोर पर चक्कर लगाने के लिये सीड़ियों की तरफ बढ़ गयी।
लिसा अपने कमरे की तरफ बढ़ी ही थी कि पीछे से निनी की आवाज आयी।
“आ गयी आप! अच्छा तरीका है आपका! ”
“अरे तुम कहाँ गायब हो गयी थी। हम लोग तुम्हारा वेट कर रहे थे।”
“आ हा… क्या वेट की। मैं तो उसी समय वापस आयी लेकिन आप लोग तो धर्म श्रद्धा और कौन हैं वह, यस ब्राउनिंग… उनके बीच टहल रहे थे। किसी ने मुझ पर ध्यान ही नहीं दिया। कॉफी भी दो लोगों की आयी थी तो क्या करती। बस लौट आयी और वार्डन दीदी को कह दिया कि आप देर तक आ सकती हैं। वैसे उन्होंने कुछ कहना तो नहीं था पर सोचा इन्फार्म कर दूँ रूलस् जो हैं।”
“अच्छा… सारा दोष मुझ पर। साथ लेकर कौन गया था?”
“दीदी।” निनी लाड़ करते हुये लिसा को अपने कमरे में ले आयी।
“कुछ असर भी हुआ कि नहीं रंजन जी के साथ का?”
निनी ने देखा कि लिसा उसकी स्टडीटेबल पर रखे कागजों पर इधर उधर देख रही है।
“क्या देख रही है?”
“वार्डन बता रही थी फादर नोयल का लैटर आया है।”
“हाँ और आपके घर से भी।” निनी ने लैटरस देते हुये कहा।
“पापा का? सब फॉरमेलिटी है। क्या मुझसे मिलने नहीं आ सकते थे?”
“दीदी अगर आपका यही रवैया रहा न तो बस… अब क्या कहूँ। …।यानि रंजन जी के कॉफी के पैसे भी बरबाद हो गये। मैं समझी थी कि कुछ असर हुआ होगा।…”
फिर निनी ने कुछ सोच कर आगे कहा, ”अच्छा छोड़िये, बतायें फिर कॉफी के लिये कब चलना है?”
लिसा के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।
“ठीक है। आप पढ़ाई की तरफ ध्यान लगायें। वैसे आप जिन्हें आप अब सौतेला समझने लगी हैं, अपना नहीं मानतीं तो उनके पैसों को बरबाद करने का भी आपको हक नही है।” कुछ गुस्से भरी आवाज में निनी ने कहा।
“समझी, ठीक कहा तुमने। मुझे कोई हक नहीं है। लेकिन उन्हें मेरी खुशियाँ छीनने का हक किसने दिया था। रख देते किसी अनाथालय में। कम से कम यह सब तो नहीं होता। और न ही…” लिसा का गला रुँध गया और अब तक रुके हुये आँसूओं का बाँध टूट गया।
कमरे में छायी उस खामोशी में फफक फफक कर रोते हुये जैसे एक बच्चे की आवाज सुनाई दे रही थी।
कुछ देर बाद संयत होते हुये, लिसा ने फादर नोयल का खत पढ़ा।
“क्या लिखा है?” निनी ने पूछा
“कुछ खास नहीं। वही पुराना… क्राइस्ट पर विश्वास वगैरा। शायद अगले महीने घर जायेगें तो पूछा है कि मेरा क्या प्रोग्राम है। और हाँ तुम्हारे लिये भी पूछा है। प्यार लिखा है।”
कहते कहते लिसा ने निनी को प्यार से गले लगाया और कहा, “दे दिया।”
दोनों ही हँसने लगे। माहैल में कुछ हल्कापन आ गया।
…
किसी तरह से परिस्थितियों से समझौता करके, निनी का स्नेह और रंजन का सहारा बटोरकर, लिसा ने अपनी रिसर्च के एक और चैप्टर को पूरा किया। पापा के खत भी इस दौरान आते रहे। उन्हें इंतज़ार था कि कब लिसा समय निकाले और घर आये।
दो महीने बीते और साल का अंत भी आ गया। होस्टल से सब लोग घर जाने की तैयारियों में लग चुके थे।
लिसा ने निनी से कहा,
“मेरा मन घर जाने को नहीं करता है।”
“तो क्या सड़क पर रहने का इरादा है।” निनी ने हँसते हुये पूछा।
“मैं मजाक नहीं कर रही। सच में। वह मेरा घर कहाँ है वह तो मि. आर्थर का घर है।”
“ऑफ कोर्स वह आपका घर है भी और नहीं भी है। इनफैक्ट आप का अपना घर तो अब बनेगा। वह होगा… कहाँ है रंजन जी के पैरेन्टस्।… आप रंजन जी को मनायें, कहें कि वह यह रिसर्च वगैरा का चक्कर बंद करें और अपना घर बनाये। और तब तक, आप कहाँ रहें? … वैल कहीं भी रहें लेकिन रंजन जी से…”
“मैं सीरीयसली कुछ कह रही हूँ।” , निनी को बीच में रोकते हुये लिसा ने कहा, “हो सकता है मम्मी सब कुछ जानकर नार्मल नहीं रहें। पहले ही मेरे जन्म के समय मामा की डेथ पर मुझे ही बुरा समझती है। मेरा दोष मानती हैं। मुझे पता है कि उन पर इसका असर पड़ा है, कॉन्सिलिंग से बेहतर तो हुआ है, पर अब इस बात को भी जानती होंगी। पता नहीं कैसा होगा सब। बेकार ही टेन्शन बढ़ जायेगा। मुझे और ज्यादा गिल्टी फील होगा। मैं कैसे रहूँगी वहाँ?”
“बस दीदी। तरस आता है आपकी बुद्धि पर । लगता है आपका कोई स्क्रू ढीला हो गया है। और बैठे-बैठे आपको फिट्स आते हैं कि घर नहीं जाऊँगी। मम्मी-पापा कुछ भी नहीं हैं आपके लिये? आपकी हर बात को पूरा करते हैं। कितनी भी बार आपसे मिलने आते रहे।”
“तो फिर अब क्यों नही आये यह सब होने के बाद? और न ही अब कुछ लिखा।”
“इसलिये … इसलिये कि आप सौतेली हैं। और … और अब तक उन्हें इस बात का पता नहीं था बस अभी कुछ दिन पहले, आपने ही तो उन्हें बताया है।… गॉड।” अब तक निनी काफी उत्तेजित हो चुकी थी।
कमरे में काफी देर तक खामोशी छायी रही।
फिर लिसा के संतुलित शब्द उभरे—
“मैं नन बनूँगी।”
“आप पागल हैं।”, गुस्से के साथ निनी एक झटके से उठी। इससे पहले कि लिसा कुछ कह पाती, जोर से दरवाजे को बंद करते हुये अपने कमरे की ओर चली गयी। चाह कर भी लिसा उसे रोक नहीं सकी।
लिसा जानती थी कि दो दिन बाद निनी को घर जाना था।
अगले दो दिनों में निनी ने लिसा से कोई बात नहीं की। यूँ बिना कुछ कहे वह सुबह-सुबह लिसा के लिये चाय ले आती और रखकर चली जाती।
इन दो दिनों में वह कई बार निनी के कमरे तक गयी पर वापस आ गयी।
एक और दिन भी निकल गया। मैस में रात का खाना खाते समय निनी से उसका प्रोग्राम जानना चाहा लेकिन उसका फूला चेहरा देख लिसा उससे बात करने की हिम्मत नहीं कर पायी।
होस्टल भी अब लगभग खाली हो चुका था। सब लोग छुट्टियों के लिये घर चले गये थे। इक्का दुक्का ही सीनियर लड़कियाँ रह गयी थी। उनकी परीक्षा खत्म होने में दिन बाकी थे।
लिसा चुपचाप अपने कमरे में आ गयी। निनी के घर न जाने से वह बहुत आश्वस्त महसूस कर रही थी।
‘थेंक गॉड यह गयी नहीं। लेकिन शायद कल चली जायेगी। तो मैं अकेली!
क्या मैं भी?… नही नहीं मुझे उस घर तो नहीं जाना। तो कहाँ जाऊँ?’
मन के कोने से आवाज आयी।
‘फादर नोयल के पास जाना चाहिये, उन्हें सब कुछ बताकर नन बन जाऊँगी।’
‘क्या मम्मी पापा के लिये कुछ भी ड्यूटी नहीं? 25 साल तक क्या इसी दिन के लिये मुझे बड़ा किया?’ मन ने विरोध किया।
‘तो फिर मैं क्या करूँ? आय एम नॉट कनसर्नड एबाउट इट। उन्होंने मुझे क्यों नही बताया? मुझे धोखे में रक्खा।’ विचारों के एक पक्ष ने सर उठाया।
‘धोखा? भूल गयी तुम्हीं तो कहती हो कि सत्यम् ब्रूयात् प्रियम् ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । तो फिर इसमें उनका क्या दोष। वह तो तुम्हारे भले के लिये कर रहे थे।’ मन ने फिर विरोध किया।
‘कुछ नहीं यह सब बेकार की बातें हैं। मैं सिर्फ यह जानती हूँ कि जिन्दगी मेरे प्रति निर्दयी रही है और मुझे अनेक सुखों से वंचित रखा है।’ मन ने एक और तर्क दिया।
‘यह जगत केवल आइना है और आत्मज्ञान ही हमारी चेतना की पूर्ति और सीमा है। हम अपने अनुभव की छोटी सी परिधि में रहते हैं। जब अन्दर कुछ नहीं मिलता तो निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बाहर भी कुछ नहीं है।’ बचपन में फादर नोयल की दी गयी सीख याद करते ही एक और विचार कोंधा।
…
दरवाजे पर टिक टिक की आवाज से लिसा की नींद टूटी तो जाना कि कल रात विचारों की उस उधेड़बुन में वह कब सो गयी पता ही नहीं चला। दरवाजा खोला तो देखा निनी खड़ी थी हाथ में चाय लिये।
“मॉर्निंग दीदी। कोई आपसे मिलने आये हैं।” सपाट से लहजे में निनी ने कहा।
“इस समय, इतनी सुबह कौन?”
“आप जल्दी से फ्रेश हो जायें और वेटिंगरूम में आ जाइयेगा। अभी वार्डन दीदी के साथ वह प्रेयर रूम में गये हैं।” निसा के प्रश्न के टालते हुये निनी ने कहा।
“लेकिन कौन आया है?” लिसा ने फिर से जानना चाहा।
“पता नहीं। मुझे वार्डन दीदी ने कहा आपको बताने के लिये। आप जल्दी करें।” और निनी बाहर चली गयी।
लिसा ने जल्दी से तैयार होकर वेटिंगरूम में पहुँची तो फादर नोयल और रंजन बैठे हुये देख हैरान रह गयी।
“फादर आप? गुड मॉर्निंग फादर, मॉर्निंग रंजन।”
“मॉर्निंग।” क्रास बनाते हुये फादर नोयल ने लिसा के माथे को चूमा।
“गॉड ब्लैस यू। कैसी हो? क्या रात भर सोयी नहीं. परेशान लग रही हो।
“नहीं… सब ठीक है। रात कुछ देर से सोयी। शायद इसलिये”… लिसा ने बात को टालने की कोशिश की।
“अच्छा… अच्छा। क्या हुआ बहुत समय से तुम्हारा कोई खत नहीं आया? मैं घर गया था। आर्थर ने बताया कि अब तुम आने ही वाली होगी।”
“आप घर गये थे? पापा कैसे हैं?”
“सब ठीक है वहाँ पर। मैंने सोचा चलो इस बार मैं ही लेने आ जाता हूँ।
तो कल चलेंगे। तैयारी तो हो ही गयी होगी?”
“पापा क्यों नहीं आये?”
“अरे यह पापा की रट क्यों। मैं जो आया हूँ।”
‘पापा की रट’ इन शब्दों ने लिसा के मस्तिष्क पर प्रहार बन कर चोट की।
‘ओह, तो खुद न आकर फादर को भेजा है। अब तो घर जाने का सवाल ही नहीं उठता। पापा को अगर ऐसे ही करना था तो मुझे डैड से लिया ही क्यों था।’
“क्या सोच रही हो?” फादर ने उसे यूँ खोया देख पूछा।
“हाँ … कुछ भी नहीं। कुछ भी तो नहीं।” लिसा चौंक गयी। फादर की बात सुन उसे लगा जैसे कोई चोरी करती हुई पकड़ी गयी हो।
“अच्छा… खैर बाद में बात करेगे। सामान तो बाद में पैक हो जायेगा। तुम तैयार होकर आ जाओ, अभी कहीं बाहर चलते हैं।”, फादर ने कहा और बहुत ही धीमी आवाज में रंजन से कुछ कहा।
फिर लिसा को वहीं खड़ा देखकर फादर बोले, “अरे गयी नहीं। माई चाइल्ड, गो एंड कम बैक फास्ट।”
“फादर मुझे कहीं नहीं जाना।” सपाट शब्दों में लिसा ने अपनी बात कही।
“कहीं नहीं जाना? ओ के, नहीं जाते, तो ऐसा करो कि फिर सामान पैक करो, कल की जगह, आज रात की ट्रेन से चलते हैं। रंजन रिजरवेशन तो हो जायेगी न?”
“फादर मैं सीरीयसली कह रही हूँ। मैं घर नहीं जाऊँगी। आप घर गये थे तो आपको सब पता ही होगा। मैं यहीं रहूँगी और नन बनूँगी।” लिसा ने अपनी बात पर जोर डाला।
“नन? हाँ हाँ , क्यों नहीं। वह भी सम्भव है अगर तुम्हारी यह इच्छा है। लेकिन फिलहाल अभी, या तो हमारे साथ बाहर चलो जो हमारा ओरिजनल प्लान है नहीं तो सामान पैक करो, आज ही रात की ट्रेन से घर जाने के लिये। अब और कोई बात नहीं।” फादर की बात में आदेश का पुट था।
“लिसा हमारे साथ चलो। घर कल जाना।” इतनी देर बाद पहली बार रंजन ने कहा।
अब लिसा चाह कर भी मना नहीं कर सकी। सर हिलाकर अंदर जाने के लिये उठी तो फादर ने कहा,
“निनी को भी साथ चलने के लिये कहना।”
बाहर निकलते समय लिसा को सुनाई दिया कि फादर रंजन से कह रहे थे,
“ठीक ही कहा था निनी ने, लिसा इज नॉट थिंकिंग स्ट्रेट।”
‘निनी, … तो निनी ने इन्हें बुलाया है। तभी कल नहीं गयी। और बन ऐसे रही थी जैसे कोई मतलब ही न हो।’ मन ही मन लिसा सोच रही थी।
कुछ घंटे वह सब इधर उधर घूमते रहे। इस पूरे समय लिसा अनमनी-सी रही। आखिर में वह सब एक पार्क में बैठ गये।
“क्या बात है लिसा! क्या परेशानी है?” फादर ने बड़े ही प्यार से पूछा।
“अब मैं इतनी परायी हो गयी कि पापा लेने भी नहीं आये” लिसा की बात में गुस्सा झलक रहा था।
“अरे, ऐसा नहीं है। पापा अभी पूरी तरह से ठीक नहीं है।”
“क्या हुआ उन्हें?” लिसा घबड़ा गयी और उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें थी।
“तुम्हारे पापा को हार्ट अटैक हुआ था। कुछ समय की बात थी तुम्हारे यूनिवर्सिटी ब्रेक में, तो तुम्हें नहीं बताया ताकि कोई डिस्टर्ब न हो।”
लिसा की आँखों में तैरते आँसू साफ दिख रहे थे। फादर ने सान्त्वना देते हुये कहा, “मैं वहीं था। चिन्ता की अब कोई बात नहीं है।”
थोड़ी देर बात फादर ने कहा, “मैं इधर तुम्हारे साथ हुई घटना को भी जानता हूँ। वे सारी बातें जानता हूँ।”
लिसा ने कुछ नहीं कहा। उसकी परेशानी को समझ कर फादर बोले,
“लिसा अक्सर पीड़ा से आहत होकर हम यों भटक जाते हैं मानों दुर्गम जंगल में पथ भूले यात्री हों। हम घबरा जाते हैं, दिशा ज्ञान खो बैठते हैं और फिर किसी रास्ते की खोज में पेड़ों और पत्थरों से टकराते फिरते हैं। इस सारे समय एक राह होती है—विश्वास और श्रद्धा की राह। यही हमें उस जंगल से बाहर निकलने का रास्ता दिखाती है।”
शाम को वापस होस्टल में वापस आकर, चुपचाप किसी भावना से वशीभूत होकर, लिसा अपना सामान पैक कर रही थी। निनी कमरे में आयी तो उसे देखते ही बोल पड़ी,
“हार गयी मैं तुम सबसे।”
“नहीं दीदी। आप हारी कहाँ आप तो जीत गयी। पराजय तो प्रवेशद्वार है उस हलचल का जिससे घिसे पिटे विचारों में रंगीनी आ जाती है।”
“यह क्या बात है। हलचल, रंगीनी, पराजय? इसका मतलब तो कुछ भी समझ नहीं आया।”
“तो मुझे ही कौन सा पता है कि मैंने क्या बोला है। सोचा कुछ बड़ी बात करूँ, तो जो भी मुँह में आया बोल दिया। ” निनी खिलखिला कर हँस पड़ी।
“वैसे दीदी एक बात है, अगर यह आपकी हार है तो वाल्ट विटमैन का गीत आपके लिये बिल्कुल फिट है।”
लिसा को अपनी ओर हैरानी से देखते निनी ने स्पष्ट किया, “वही कि यद्यपि विजय महान है परन्तु यदि आवश्यकता हो तो पराजय महानतर है।”
“ओहो, क्या बात है, बहुत बोलने लगी हो।” लिसा भी अब हँस रही थी।
“सब आपने ही तो सिखाया है।”
और एक लम्बे समय के बाद लिसा के कमरे में उन दोनों की हँसी गूँज रही थी।
दूसरे दिन, निनी से गले मिलकर लिसा घर के लिये चली तो उसके आँसू थम ही नहीं रहे थे।
ट्रेन के सफर में फादर नोयल लिसा के समझा रहे थे, “लिसा प्रसन्न रहो। और प्रसन्नता की ही बातें करो। तुम्हारे आनन्द से दूसरों में आनन्द की भावना जाग्रत होगी। सोचो, संसार में तुमसे भी ज्यादा दुखी होंगें। जानती हो, तुम्हारी उपयोगिता, संसार में लूथर या लिंकन से कम नहीं है। बस प्रसन्न रहना तय कर लो।”
घर आकर लिसा को लगा कि जैसे स्वर्ग में पहुँच गयी है। मन ही मन निनी और रंजन को धन्यवाद दिया। अगर वह न होते तो शायद कहीं भटक जाती।
फिर दिन कैसे कटने लगे कुछ पता नहीं चला। घर में उसकी हँसी गूँजती रहती।
समय बीता। वह रंजन के जीवन में बहार बन कर आ गयी।
अब कदाचित ही वह सालों पहले अपने अतीत के उन कड़वाहट भरे पलों के बारे में सोचती थी। कभी वह दिन याद भी आ जाये तो मन ही मन हँसती है और अपने आसपास बिखरे सपनों को समेट लेती है।
कोई परिभाषाओं को लेकर नहीं उलझता अगर सार हाथ में आ जाये। और लिसा को जीवन का सार मिल गया है, उसका अपना एक अस्तित्व है।
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-अनिता बरार