आप कौन हैं?

– डॉ. सच्चिदानंद जोशी

दिवाकर जी के आमंत्रण पर लिटरेचर फेस्टिवल के एक सत्र में ‘सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता’ विषय वक्ता के तौर पर जाना था। उस पंच तारांकित होटल के आहते में घुसते ही दरबानों ने रोका, “आप कौन! पास कहां है?”
“पास” चौंक कर मैंने कहा।
“अरे मैं स्पीकर हूं।” मैंने अपनी स्थिति बताने की कोशिश की।
“सुबह से सब स्पीकर ही आ रहे हैं, सुनने वाला कोई है भी या नहीं” दरबान ने अपने साथी से व्यंग्य करते हुए कहा।
दूसरे दरबान को संवाद बढ़ाने में रुचि न थी, बोला, “स्पीकर है तो वो कार्ड होगा न गले में लटकने वाला वो कहां है।”
मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि अब कैसे उसे यकीन दिलाऊं कि मैं स्पीकर ही हूं।
तभी पीछे से आ रहे लड़के ने दरबान से कहा “अरे छोड़ो इन्हें, ये तो हमारे स्पीकर हैं।” काले शर्ट और काली पतलून में सजे उस युवक की बात सुनकर दरबान ने मुझे अंदर जाने दिया।
“आप मुझे पहचानते हैं?”, मैंने उत्साह से उस युवक से पूछा। उसने बड़ी मासूमियत से उत्तर दिया, “पहचानता तो नहीं लेकिन मैंने इस पोस्टर पर आपका चेहरा देखा तो लगा कि आप इस लिटरेचर फेस्टिवल के स्पीकर ही होंगे।”
उसने सामने लगे एक बड़े से पोस्टर की तरफ इशारा किया। उस पोस्टर पर छोटे-छोटे कई सारे चेहरे लगे थे। इनमें एक चेहरा मेरा भी था। फिर उसने कहा, “सर आप उधर आगे चले जाइए , वहां हमारी कंपनी का दूसरा लड़का बैठा है जो स्पीकर्स को कोऑर्डिनेट कर रहा है। वो आपको स्पीकर वाला बैज दे देगा और बता भी देगा कि आपका सेशन कहां है।”
मुझे समझ में आ गया कि वो युवक इवेंट कंपनी का कोई बंदा था। उसने वाकी टाकी पर अपने साथी को बता दिया कि मैं आ रहा हूं। बताते हुए उसने मेरा नाम मुझसे पूछ कर साबित कर दिया कि वो मुझे सचमुच जानता नहीं था।
काउंटर पर बैठे उसके साथी ने मेरा बैज भी दे दिया और बता भी दिया कि मेरा सत्र लॉन की दूसरी ओर बने योगा हाल में है। साथ ही यह भी जता दिया कि फेस्टिवल के सारे वेन्यू में यही एक एयर कंडीशंड हॉल है।
मैं लॉन से होकर योगा हाल की तरफ जाने लगा। साथ ही लिटरेचर फेस्टिवल की रंगत भी देखता जा रहा था। चारों तरफ कई सारे लड़के लड़कियां झुंड बना कर इधर से उधर जा रहे थे। लॉन में कुछ मंच भी बने थे जिन पर वक्ता चर्चा में व्यस्त थे। वक्ता गर्मजोशी से चर्चा कर रहे थे लेकिन श्रोताओं की संख्या नरम ही थी।फिर कहीं कोई गेम दिखा रहा था तो कोई गाना सुना रहा था।मेले जैसा माहौल था जिसमें लिटरेचर कम और किसी स्कूल कॉलेज के फेस्ट जैसा माहौल ज्यादा था। एक आध मदारी या रस्सी पर चल कर करतब दिखाने वाला और होता तो हमारे छतरपुर के मेला जलविहार जैसा माहौल हो जाता।
मैं योगा हॉल की ओर बढ़ ही रहा था कि लड़के लड़कियों के एक झुंड ने घेर लिया” सर आपके साथ एक सेल्फी ले लें।” मैं मन ही मन खुश हुआ कि चलो कम से कम इन बच्चों ने तो मेरा साहित्य पढ़ा है। उन बच्चों ने अलग अलग एंगल से मेरे साथ सेल्फी ली। मैं उनसे पूछने ही वाला था कि इनमें से किस किस ने मेरा ताजा उपन्यास पढ़ा है । तभी एक लड़का बोला” सर आप कौन है?”
दूसरे ने उसे झिड़का, “पागल देखता नहीं इस बैज पर इनका नाम लिखा है।”
उनमें से कुछ ने अपने अपने मोबाइल में मेरा नाम दर्ज कर लिया तो कुछ ने मेरे बैज का फोटो ही ले लिया।
मुझसे न रहा गया, मैंने उन बच्चों से पूछ ही लिया, “अगर तुम्हे ये भी नहीं पता कि मैं कौन हूं तो मेरे साथ सेल्फी लेने का क्या मतलब है।”
उनमें से एक लड़की मासूमियत से बोली “सर हमारा असाइनमेंट है। हर एक को कम से कम पांच स्पीकर के साथ सेल्फी लेकर इंस्टा पर अपलोड करनी है।”
दूसरी ने पूरक जानकारी दी, ”हमारी यूनिवर्सिटी कोस्पॉन्सर है न इस लिट फेस्ट की।”
“लेकिन तुम्हे कैसे पता कि मैं स्पीकर हूं।” मेरी जिज्ञासा अभी भी शांत नहीं हुई थी।
“आपके बैज से। स्पीकर के बैज पर लाल स्ट्रिप है।”
आगे संभाषण बढ़ता इतने में उनका लीडर दिखने वाला लड़का बोला”चलो अभी मेन हॉल में पहुंचना है जल्दी।”
और वो बच्चों का झुंड जिस तेजी से आया था उस तेजी से गायब भी हो गया।
योगा हॉल पहुंचा तो सत्र का समय लगभग हो चुका था। बाहर ही एक स्वयंसेवक नुमा व्यक्ति ने स्वागत किया, “अरे सर आप आ गए। बस अब इस सत्र के एंकर भी आते ही होंगे। उनके आते ही हम सत्र शुरू करेंगे।”
“लेकिन दिवाकर जी कहां हैं। मैं तो उनके ही आमंत्रण पर आया हूं।”
“आते ही होंगे। क्या हैं न कि तीन चार सत्र पैरेलल चल रहे हैं न।” उस व्यक्ति ने कहा। फिर दिलासा देते हुए बोला, “चिंता मत कीजिए, हम हैं न! इस सत्र की जिम्मेदारी दिवाकर जी हमें ही दिए हैं। लीजिए आपके एंकर आरजे रोहित भी आ गए हैं। बहुत मशहूर एंकर है। गजब की फॉलोइंग है उनकी।” उस व्यक्ति ने एक ओर इशारा करते हुए कहा।
देखा भीषण गर्मी में टाय सूट में एक युवक चला आ रहा है। उसके चेहरे से साफ झलक रहा था कि वो बहुत परेशान है और बहुत जल्दी अपना गुस्सा उतारने वाला है किसी पर।
“क्या गुलशन जी आप गेट पर नहीं आ सकते थे लेने। कितनी परेशानी हुई ढूंढने में।”
“अरे रोहित जी हम आने ही वाले थे। लेकिन हमको दिवाकर जी स्पीकर की जिम्मेदारी भी सौंप दिए हैं न तो उधर आ नहीं पाए।” गुलशन ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा।
फिर रोहित ने मुझे यूं देखा मानो मैं अजायबघर से छूटा कोई प्राणी हूँ।
” आप ..” उसने पहचानने की कोशिश की।
“अरे इन्हें नहीं जानते। ये स्पीकर है आज के। बड़े साहित्यकार हैं।” गुलशन ने मेरा नाम मेरे बैज से पढ़ते हुए कहा। रोहित के चेहरे पर अब भी पहचान के भाव नहीं थे। जाहिर है उसे मेरा नाम भी नहीं मालूम था।
“ये दिवाकर जी भी न। न जाने कहां कहां फंसा देते है हमे।” रोहित ने प्रतिक्रिया दी। नाम तो मैंने भी रोहित का पहली बार ही सुना था। लेकिन उसकी झांकी और रौब दाब देखकर लग रहा था कि उसका नाम मालूम न होना भी मेरा ही कसूर है।
“और दो स्पीकर आ गए?” रोहित ने एक और प्रश्न आयोजक प्रतिनिधि गुलशन की ओर दागा।
“आ गए! अरे आए और खाना वाना खाकर एक नींद भी ले लिए। एसी हाल है न। दोनों के खर्राटों की जुगलबंदी चल रही है अंदर हॉल में।”
“अरे तो हम बाहर क्यों खड़े हैं, सत्र शुरू कीजिए न।” मैंने अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते हुए कहा।
“और कोई अंदर हो तब न शुरू करेंगे सत्र।” गुलशन बोला। “अंदर इकौ आदमी नहीं है। कॉलेज के बच्चे भी ससुरे भाग गए उस मेन हॉल में। वहां वो जालिम बाबा आया है न।”
” जालिम बाबा? ये कौन है ?” मैंने अपना अज्ञान प्रकट करते हुए कहा।
“अरे जालिम बाबा को आप नहीं पहचानते? ओटीटी नहीं देखते क्या? ‘गुंडे गढ़ी के’ सीरियल में सबसे ज्यादा गाली देने का रिकॉर्ड है जालिम बाबा के नाम। उनका असली नाम तो है धीरज पांडे, लेकिन आजकल बच्चों में वो जालिम बाबा के नाम से ही फेमस है। सारे दर्शक श्रोता उधर ही टूट पड़े हैं। दिवाकर जी भी वहीं व्यवस्था में लगे हैं।”
“बताओ जब जालिम बाबा का सेशन रख दिए हो वहां मेन हॉल में तो यहां कोई बेवकूफ क्यों आयेगा झांकने। ये दिवाकर जी भी गजबे करते हैं।” रोहित एक बार फिर झुंझलाकर बोला। फिर गुलशन से बोला, “ जाइए अंदर जाकर सेशन चालू करने की जुगाड़ लगाइए। हमें भी सेशन निबटा कर जल्दी निकलना है।”
गुलशन जी सेशन चालू करने की जुगाड़ में अंदर गए और बाहर तपती धूप में हम दोनों दर्शक जुटाने की मुहिम में लग गए। अति उत्साह में हमने एसी हाल का प्रलोभन तक दे डाला। दो चार पकी उम्र के लोग ठंडक के लालच में अंदर आ गए यही उपलब्धि रही। रह रह कर मुझे भोपाल के छोला रोड बस स्टैंड का वो दृश्य याद आ रहा था जब बस के कंडक्टर और क्लीनर मिलकर सवारी को बुलाते थे “आ जाओ खाली में खाली में। एयर कूल्ड बस है।”
नियत समय से आधा घंटा देरी से हमारा सत्र शुरू हुआ। उस एसी योगा हाल में मंच के चार और आयोजक गुलशन जी को छोड़ कर हॉल में कुल तीन श्रोता थे। मैं ‘सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता’ पर अपना तैयार किया भाषण पूरे जोश ओ खरोश से सुना रहा था और ‘गुंडे गढ़ी के’ में गाली देने का कीर्तिमान बनाने वाले जालिम बाबा से मात खा रहा था।

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