विमला आठ भाई बहनों में सबसे छोटी थी। माता पिता के पास धन का अभाव होने के कारण चाहते हुए भी विमला को बारह कक्षा पूरी होने के बाद पढाई करने का कोई साधन नहीं मिल पाया। वह घर के काम-काज में ही लग गयी। चाहते हुए भी विमला को वह सब नहीं मिल सका जो हर युवती अपनी अठारह वर्ष की उम्र में पहनना ओढ़ना चाहती है। एक डेढ़ वर्ष निकल गया। विमला के पिता, स्वरूप को अपनी बेटी की शादी की चिंता होने लगी। पैसा पास नहीं था इसलिए अच्छे घर वालों की माँगें पूरी नहीं कर सकते थे।
माँ, पारो को एक दिन कोई पड़ोसिन मिली और उसने पारो से उसकी बेटी विमला के लिए एक रिश्ता बताया। लड़का अच्छे घर का था, अमरीका में था। उम्र ज़्यादा थी। वह चालीस वर्ष का था। पारो ने अपने पति से बात की। पिता ने भी सोचा, यहाँ तो उसे ठीक से रोटी भी नसीब नहीं होती है, चलो कम से कम उसे खाने पहनने को तो मिलेगा – बेटी का जीवन सुधर जायेगा। बहुत सोच-विचार के बाद दोनों ने अपनी बेटी विमला का विवाह उस लड़के से कर दिया। विमला की अपने माता पिता की इच्छा के सामने एक न चली। वह पति, सुरेन्द्र की पत्नी के रूप में नए घर में आ गई। सुरेन्द्र अमरीका से केवल दस दिन की छुट्टी ले कर आया था। पहली रात उसने विमला से कहा कि मैं तुम्हें अमरीका नहीं ले जा सकता हूँ क्योंकि पहले तुम अँग्रेज़ी में बात करना सीख लो फिर आ जाना। पत्नी थी, क्या करती, किसी से भी कुछ न कह सकी। दस दिन बाद सुरेन्द्र अमरीका वापस चला गया। वहाँ जाकर भी उसने कोई पत्र-व्यवहार नहीं किया। कभी-कभी अपने माता-पिता से बात करता था लेकिन कभी भी विमला के बारे में नहीं पूछता था। एक बार पिता ने कहा— बेटा, विमला को बुला लो तब उसने कहा था – “पहले उसे पढ़ाओ”।
छह माह बीत गए। एक दिन कोई दूर के रिश्ते में चाची लगती थीं वह आ गईं। तब रात को विमला की सास उनसे सुरेन्द्र की पहली पत्नी जिससे उसका संबंध-विच्छेद हो चुका था, के बारे में बात कर रही थीं। अचानक विमला दूध का गिलास ले कर आ गई। दोनों एकाएक चुप हो गयीं, विमला को शक हुआ, वह झट से बाहर चली गई और चुपचाप उनकी बातें सुनाने लगी। तब उसे पता लगा कि वह अपने पति की दूसरी पत्नी है। उस रात वह सो न सकी, अपने भविष्य को लेकर वह चिंतित थी। अपने माता-पिता से भी वह क्या कहती। वे तो पहले ही ग़रीबी से तंग थे। बेटी का बोझ कैसे उठाते।
एक दिन उसने हिम्मत करके अपने ससुर द्वारका नाथ जी से कहा, “ मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ”। ससुर को भी अब तक पता लग चुका था कि उनका बेटा उसे बुलाना नहीं चाहता है। सो उन्होंने विमला को पढ़ने के लिए भेज दिया। एक साल बाद छोटा सा कोर्स करके विमला को एक दफ़्तर में क्लर्क की नौकरी मिल गई। नौकरी के साथ-साथ विमला ने पूरे घर का काम-काज भी सँभाल लिया।
पिता के बहुत बार पत्र लिखने पर कि विमला अब अँग्रेज़ी बोलना सीख गई है और नौकरी भी करने लगी है, सुरेन्द्र ने कोई जवाब नहीं दिया। तब द्वारका नाथ जी ने किसी के द्वारा, जो अमरीका में ही रहते थे, सुरेंद्र के बारे में पता कराया तो पता लगा कि उसने एक और लड़की से शादी कर रखी है और उसके साथ रह रहा है। द्वारका नाथ के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई। सोचा था, विमला से बेटे का ब्याह करके उसका घर बसा देंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ। एक दिन अपने दोनों भाइयों को बुला कर द्वारका नाथ जी ने बात की। सलाह हुई कि अब विमला का दूसरा विवाह किया जाए। उसे इस जवान उम्र में घर पर तो नहीं बैठा सकते हैं।
विमला ने अपने अच्छे व्यवहार से सास–ससुर का मन जीत रखा था। दोनों ही विमला से पूछे बिना कोई काम नहीं करते थे। विमला धीरे-धीरे उनकी आँख का तारा बन गई थी। जब कभी द्वारका नाथ जी विमला के घर से चले जाने की बात सोचते तो बहुत दुखी हो जाते थे।
एक दिन सूरत से द्वारका नाथ जी की बेटी आ गई। उससे भी विमला को ले कर सभी बातें हुईं। उसकी भी यही सलाह थी कि अपने पापों का प्रायश्चित करने का यही सबसे अच्छा तरीक़ा है कि विमला का विवाह कर दिया जाए। अब विमला के लिए लड़के की तलाश शुरू हुई। ज़्यादा समय न लगा और विमला के दफ़्तर में ही एक अच्छा लड़का मिल गया। द्वारकानाथ जी ने सम्बन्ध विच्छेद के सभी पेपर्स तैयार करके अपने बेटे सुरेन्द्र को भेज दिए। उसमें भी समय न लगा और सब कुछ साफ़ हो गया। जैसे ही पेपर्स आये, द्वारकानाथ जी ने विमला का विवाह योगेश से कर दिया। विवाह का पूरा ख़र्च और इंतज़ाम द्वारकानाथ जी ने ही किया और अपनी बेटी की ही तरह उसकी विदाई की। कभी-कभी विमला अपने भाग्य के बारे में सोचती है कि यह कैसी विदाई थी जो ससुराल से बेटी के रूप में हुई थी।
–सविता अग्रवाल ‘सवि’