धर्मपाल महेंद्र जैन

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राजा

राजा युद्ध की बात करते हैं
युद्ध लड़ते नहीं अब, भेजते हैं
फ़ौजी, टैंकें, मिसाइलें और आयुध
वे मोर्चे पर जाते नहीं अब।
राजा युद्ध में मरते नहीं अब।

राष्ट्रवाद पढ़ाते हैं राजा
भरते हैं जोश प्रजा में।
ताश के पत्तों की तरह
ढह जाते हैं फ़ौजी खंदकों में
ध्वस्त टैंकों में सुलग जाते हैं सैनिक
सड़कों पर लाशें बिछती हैं प्रजा की
राजा शहीद नहीं होता अब।

राजा को नहीं लगती भूख-प्यास
कभी कम नहीं होती रसद महल में
बंकरों में छुपी जनता
सायरन की हर आवाज़ के साथ
आकाश में तलाशती है
ईश्वर, फ़ूड पैकेट और पानी की बोतलें।

अलग-अलग ठिकानों के राजा
कोसते हैं पागल राजा को
कोई नहीं रुकवाता युद्ध
तबाह हो जाते हैं शहर
खंडहरों में बदलते-बदलते।
अपने लोगों के साथ धरती
ख़ून के घूँट पीकर सुलगती रहती है
राजा नहीं होता द्रवित।
राजा, राजा रहता है बस।

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