धर्मपाल महेंद्र जैन

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टोटम पोल

जो छोड़कर चले गए स्मृतियाँ
वे वापस आयेंगे कभी तो
यहाँ नहीं तो कहीं दूर
दक्षिण के समंदर तट पर
या पूरब की पहाड़ी के बीहड़ में
या कहीं काली रेशमी मिट्टी के मैदान में।
कौन पहचानेगा उन्हें तब!
इस बूढ़े पेड़ का कटना तय है
और उस सूखती नदी का मरना भी।

पतली-सी किरण बनकर सूरज
पहचानने आये शायद
या बरसता बावला बादल आ जाए कभी।
चाँद को वैसे भी फुर्सत नहीं है
रोज़ अपने तेवर बदलने से
और भला मंगल को आदमी की क्या पड़ी है।
इस हवा से कोई उम्मीद ही नहीं करना चाहिए
इसे ख़ुद ही नहीं मालूम कब-किधर बहना है।
शायद कोई नहीं पहचान पाएगा उन्हें
जब वे आएँगे।

क़बीलों के बीच खड़े
टोटम पोल की लकड़ी पर कुरेदे,
रंगों से भरे इन स्मृति चिन्हों का
अर्थ बताने वाला कोई नहीं होगा
जब वे लौट कर आएँगे।

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