6 जून 1799 को पूश्किन का जन्म हुआ, उन्हें उम्र 37 साल की मिली। यह उम्र अंकों में छोटी लगती है लेकिन किए गए काम कहते हैं कि वह सार्थक थी, अनमोल थी।
इस साल पूश्किन की 225 वीं जयंती है। कवि को रुख़सत हुए भी 188 साल गुज़र गए हैं। लेकिन रूसी आज भी अक्सर बातचीत में उनकी पंक्तियाँ, कथन, उद्धरण दोहराते रहते हैं; अपनी बात को मज़बूत आधार प्रदान करने के लिए उन्हें कुछ न कुछ पूश्किन के यहाँ मिल ही जाता है। पूश्किन के वक़्त से अब तक जैसे सड़कों का परिदृश्य त्रोइका-तीन घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली बग्घियों और स्लेजों-से सरपट दौड़ती कारों और दूसरे यातायात के साधनों में बदला है, वैसे ही रूसी मानस और जीवन पर भी आधुनिकता धीरे-धीरे चढ़ी है, चढ़ रही है। दुनिया के मशहूर अदीबों की फ़हरिस्त में रूसी कवि और लेखक बड़ी दृढ़ता से अपनी जगह बनाए हुए हैं। ऐसे परिवेश में जब आप बातचीत के दौरान किसी को यह कहते सुनते हैं कि “पूश्किन हमारा सब कुछ हैं” तो ज़ाहिर है कि आप सोचने लग जाते हैं कि आख़िर ऐसा क्यों है।
‘पूश्किन हमारा सब कुछ हैं’ इस वाक्यांश के रचयिता रूसी कवि, साहित्यकार आलोचक अपालोन ग्रिगोर्येव थे। उन्होंने साल 1859 में पूश्किन कि मृत्यु के लगभग 32 साल बाद इन शब्दों का उनके सन्दर्भ में पहली बार उपयोग किया था। उनका यह कथ्य इस तथ्य पर आधारित था-कवि जीवन के गूढ़ सत्यों और रहस्यों के अग्रदूत होते हैं। पूश्किन के यहाँ रूसी जन हमेशा कुछ आत्मीय तलाश ही लेता है; उसका बचपन गुज़रता है उनकी परी कथाएँ पढ़ने-सुनने में, जवानी गुज़रती है उनकी कविताओं के संग और वयस्कता में उनके उपन्यासों, कहानियों और नाटकों से लोग अपने जीवन को साहित्यिक रूप से समृद्ध करते हैं। रूस में कहते हैं कि हर पीढ़ी और हर युग पूश्किन के बारे में अपनी राय ख़ुद बनाते हैं, समय और परिवेश के अनुसार उनमें अपना कुछ ढूँढ़ लेते हैं। पूश्किन के बारे में रूसी साहित्यकारों की भी अपनी राय रही है। प्रस्तुत हैं कुछ के विचार अलिक्सान्दर सिर्गेयविच पूश्किन के बारे में :
अलिक्सान्दर अलिक्संद्रविच ब्लोक (1880-1921)
बचपन से ही हमारी याददाश्त में जो एक ख़ुशनाम घर कर जाता है वह है पूश्किन। यह नाम, यह ध्वनि हमारे जीवन के अनगिन दिनों को सम्पूर्ण करती है। राजा-महाराजाओं, सेनापतियों, हथियार की ईजाद और कारोबार करने वालों, शोषकों और शोषितों के निराशाजनक नामों के समक्ष यह सरल सा नाम- पूश्किन। इस तथ्य के बावजूद कि कवि की भूमिका आसान नहीं होती, वह एक सुखद नहीं बल्कि त्रासदीपूर्ण राह होती है, पूश्किन आनंदपूर्वक और बड़ी सरलता से अपने रचनात्मक बोध और दायित्व को निभाने में सफल रहे। एक माहिर की तरह अपनी भूमिका पूश्किन ने पूरे आत्मविश्वास और स्वच्छंद चित्त से निभाई। हालाँकि हमारे दिल अक्सर पूश्किन के ख़याल से काँप उठते हैं: कवि जो सामान्यतः बाह्य हस्तक्षेप नहीं करता है, नहीं कर सकता है, उसका काम आतंरिक होता है, संस्कृति से जुड़ा। पूश्किन की सकारात्मकता और उल्लास पूर्ण रचनात्मक यात्रा को बाधित करने के प्रयत्न अक्सर किए गए। ये वे लोग थे जिनके लिए चूल्हे का बर्तन भगवान से भी अधिक प्यारा होता है।
…हम पूश्किन को एक व्यक्ति के रूप में जानते हैं, राजशाही के एक मित्र के रूप में, दिसंबर क्रांतिकारियों के एक दोस्त के रूप में भी जानते हैं। लेकिन ये सभी रूप पूश्किन के कवि रूप के सामने फीके पड़ जाते हैं।
…पूश्किन की मृत्यु दांतेस की गोली से नहीं हुई थी। हवा की कमी, समाज की घुटन ने उन्हें मार डाला। उनके साथ उनकी संस्कृति भी मर गई। (पुश्किन की मृत्यु की 84वीं वर्षगांठ पर साल 1921 में राइटर्स हाउस में आयोजित एक औपचारिक बैठक में दिए गए भाषण ‘कवि के प्रयोजन के बारे में’ के अंश।)
वलेरी याकवलेविच ब्र्यूसव (1873-1924)
पूश्किन को मानो यह एहसास था कि ज़िन्दगी उन्हें लम्बी नहीं मिलेगी, इसीलिए वह हमेशा इस जल्दी में रहे कि वे उन सभी राहों का अन्वेषण कर लें जिन पर उनके बाद साहित्य को आगे बढ़ना होगा। उनके पास इन सभी राहों के गंतव्य पर पहुँचने का समय भी नहीं था: वे कुछ रेखाचित्र, नोट्स, संक्षिप्त निर्देश लिखते रहे; उन्होंने बहुत मुश्किल सवालों को भी अपनी बहुत छोटी कविताओं या मात्र उसकी रूपरेखा में जैसे-तैसे समय की कमी की वजह से लिखा और जिनकी सर्वपक्षीय विवेचना के लिए बाद में बहु-खंडीय उपन्यासों की ज़रूरत पड़ी। और आज तक हमारा साहित्य पूश्किन से आगे नहीं बढ़ पाया है; आज भी वह जिस भी दिशा में आगे बढ़ता है उसे वहाँ पूश्किन द्वारा रखे मील के पत्थर यह कहते हुए मिल जाते हैं कि वह इस पथ को जानते थे, उन्होंने उसे देख लिया था। (लेख ‘पूश्किन की बहुमुखी प्रतिभा’ से,1922)
इवान अलिक्सेयविच बूनिन (1870-1953)
डेढ़ सदी पहले भगवान रूस पर बहुत मेहरबान हुआ था। लेकिन रूस के लिए उस नेमत को बचा कर रख पाना मुमकिन न हुआ। एक ख़ौफ़नाक दौर में, उसकी (रूस की) मौन सहमति पर एक ऐसी अनमोल ज़िन्दगी परवान चढ़ गयी जो सभी सर्वोच्च सिद्धियों की प्रतिमूर्ति थी। और पूश्किन के उस रूस का क्या हुआ, उसकी उस मौन सहमति के बारे में सारी दुनिया जानती है। हम शायद झूठे और पाखंडी कहलाते, या हमें उस अमर नाम को पुकारने का कोई अधिकार न रह जाता अगर हमारे दिलों में अपनी मातृभूमि के लिए उस बात को लेकर रंज न होता … सिर्फ़ एक बात जो अब तक अडिग है, वह है हमारा यह दृढ़ विश्वास कि जिस रूस ने पूश्किन को जन्म दिया वह कभी नष्ट नहीं हो सकता है, उसकी शाश्वत नींव डिग नहीं सकती है, और यह भी हक़ीक़त है कि नरक की ताक़तें इस पर कभी विजयी नहीं हो पाएँगी। (पूश्किन की सालगिरह पर, 21 जून, 1949)
अलिक्सेई मक्सीमविच गोरिकी (मक्सीम गोरिकी)
नेपोलियन के आक्रमण के फ़ौरन बाद, रूसी जब अफ़सरों और सैनिकों की वर्दियों में पेरिस का दौरा करके लौट आए थे, रूस की ज़मीन पर चमत्कारिक रूप से एक ऐसा प्रतिभाशाली व्यक्ति जन्मा जिसने अपने छोटे से जीवन में रूसी कला के क्षेत्र में हर उस चीज़ की अटल नींव रखी जो उसके बाद सामने आई। अगर पूश्किन न होते तो रूस को गोगल का लम्बे समय तक इंतज़ार करना पड़ता, जिनके नाटक ‘रेविज़्योर’ (इंस्पेक्टर) की विषय-वस्तु पूश्किन की दी हुई थी। लेव तलस्तोय, तुर्गेन्येव, दस्तायेवस्की-रूस के ये सभी महान व्यक्ति पूश्किन को अपना आध्यात्मिक पूर्वज मानते थे।
पूश्किन का रचना-संसार कविता और गद्य की एक विस्तृत और चमकदार धारा है। पूश्किन ने मानो ठंडे और खिन्न देश पर एक नया सूरज उगा दिया था और उस सूरज की किरणों ने तुरंत उसे उर्वर बना दिया था। यह कहा जा सकता है कि पूश्किन से पहले रूस का साहित्य ऐसा नहीं था कि यूरोप उस पर ध्यान दे या वह गहराई और विविधता में यूरोपीय रचनात्मकता की अद्भुत उपलब्धियों की बराबरी कर सके।
पूश्किन की रचनाशीलता से ज्वालामुखी-सी अनुभूति होती है-उसमें जुनून और दानिशमंदी का एक लाजवाब मेल दीखता है, ज़िन्दगी के लिए एक ख़ूबसूरत प्यार और ओछेपन के लिए कड़ी निंदा। उनकी मार्मिक कोमलता किसी कटाक्ष भरी मुस्कान से डरती नहीं थी, और वे स्वयं एक चमत्कार थे।(अंग्रेजी में पूश्किन की कृतियों की पुस्तक की प्रस्तावना से, 1925)
रूसी साहित्य के लिए पूश्किन का वही महत्त्व है जो यूरोपीय कला के लिए लियोनार्दो का है” (रूसी साहित्य के इतिहास पर व्याख्यान से, 1909)
फ़ियोदर मिख़ाइलविच दस्तायेव्स्की:
…अगर पूश्किन नहीं होते तो उनके बाद आए प्रतिभावान भी न होते।
…सभी लोगों के बीच तथा सार्वभौमिक भाईचारे और एकता के लिए रूसी हृदय शायद अन्य सभी क़ौमों से अधिक नियत है, मैं इसके चिह्न अपने इतिहास, अपने प्रतिभासंपन्न लोगों तथा पूश्किन की कलात्मक शक्ति में देखता हूँ।
अगर वे अधिक समय तक जीवित रहे होते तो शायद उन्होंने रूसी आत्मा के शाश्वत और महान पहलुओं को उजागर कर दिया होता, और हमारे यूरोपीय भाई हमें थोड़ा समझ गए होते; वे हमारे प्रति आज की तुलना में कहीं अधिक समीपता और घनिष्ठता महसूस करते। अगर उन्हें वक़्त मिला होता तो वे हमारी आकांक्षाओं का आधार और उनकी सच्चाई उन्हें समझा पाए होते, जिससे वे हमें बेहतर जानते, हमारी धारणाओं को समझते और हमारी तरफ़ अविश्वास और अहंकार से देखना बंद कर देते जैसा कि वे अब भी करते हैं। अगर पूश्किन थोड़ा और रहे होते तो शायद हमारे बीच आज की तुलना में ग़लतफहमियाँ और विवाद कम होते। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था। पूश्किन की मृत्यु एक ऐसे समय में हुई जब वे और उनकी प्रतिभा अपने पूरे उरूज पर थे। इसमें कोई शक नहीं कि वे अपने साथ क़ब्र में कुछ महान रहस्य भी ले कर चले गए। और हम अब उन के बिना उन रहस्यों का सुराग़ पाने में लगे हैं। (पूश्किन पर दिए वक्तव्य के अंश, 1880)
रूस के महान साहित्यकारों के विचारों के बाद प्रस्तुत हैं अलिक्सांद्र सिर्गेयविच पूश्किन (1799-1837) के अपने बारे में विचार जो उनकी कविता ‘स्मारक मैंने बनाया है’ के माध्यम से प्रस्तुत हैं।
स्मारक मैंने बनाया है (1836)-अलिक्सांदर सिर्गेयविच पूश्किन
मैंने स्मारक अपना बनाया है, वह हस्तनिर्मित नहीं
उस की पगडण्डी न बदलेगी जंगल में कभी
उठ गया है वह ऊँचा
अलिक्सांद्र लाट के अजेय शिखर से भी ऊपर।
नहीं, न मरूँगा मैं कभी भी पूरा – मेरे पावन काव्य की आत्मा
मेरे नश्वर शरीर के बाद भी रहेगी जीवित –
चन्द्रमा तले इस धरती पर रहेगा मेरा नाम
रहेगा जीवित जब तक एक भी कवि।
चर्चाएँ मेरी रहेंगी पूरे रूस महान में
उसकी सभी भाषाओं में लोग लेंगे मेरा नाम
गर्वीले स्लाव के अग्रज भी, फिनलैंड वासी भी,
अब तक निरक्षर तुंगूस भी, मैदानवासी कल्मीक भी।
लोग सदियों करेंगे मेरी वाहवाही –
कि नेक भाव मैंने छंदों से जगाए
अपने निर्मम युग में स्वतंत्रता का गाया गान
और पतितों के लिए उठाई करुणा की तान।
हे प्रेरणा मेरी, ईश्वर का कहा तुम सदा मानना,
न डरना कभी अपमान से, न माँगना तुम ताज
स्तुति और निंदा से न होना कभी विचलित
और न करना मूर्ख से विवाद।
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-प्रगति टिपणीस