पड़ोसी धर्म

-डॉ. सुभाषिनी लता कुमार

                   सुबह से रीमा का माथा ठनका हुआ था। रात उसने डेढ़ बजे तक पढ़ाई की थी और कुछ दिनों से परीक्षा के टेंशन में अच्छी तरह सो भी नहीं पा रही थी। खुद को तसल्ली देते हुए उसने सोचा था कि “कल तो रविवार है। सुबह जल्द थोड़े ही जागना है। आराम से नौ-दस बजे तक सोकर उठूँगी।” लेकिन उसकी योजनाओं पर पानी फिर गया जब सुबह-सुबह ज़ीना की भौं-भौं की कर्कश ध्वनि उसके कानों के परदे को चीरती अंदर घुसे जा रही थी। इस चुभन भरी आवाज़ से बचने के लिए रीमा ने करवट लेकर तकिये से कसकर अपने कानों को ढक लिया मगर ज़ीना की कर्कश ध्वनि और गेट के चैंन की खट-खट अभी भी रीमा के कानों में आ रही थी।

                   इसके साथ ही किसी के पुकारने की आवाज़ भी आने लगी। “सुमन बहिनी, ओ सुमन बहिनी! कहाँ है सब? बहिनी! ओ बहिनी।” फिर ज़ीना के दौड़ने और भौं-भौं की आवाज़ भी बढ़ने लगी।

                  पड़ोस की गीता और उसके साथ एक औरत गेट के सामने खड़ी थी। अनजान लोगों को गेट के नजदीक आते देख ज़ीना बेचैन हो गई। गीता के लाख पुचकारने पर भी वह बार-बार भौंकती रही। इंसान अपनी जिम्मेदारी से चूक सकते हैं लेकिन पालतू कुत्‍ते तो वफादारी के कायल होते हैं। ज़ीना भी पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज निभा रही थी।  वह बार-बार गेट की तरफ दौड़कर जाती और दोनों महिलाओं पर भौंक कर वापस आ जाती।

                  ज़ीना की आवाज़ सुनकर रीमा की माँ सुमन बाहर निकली तो गेट पर अपनी पड़ोसन गीता को पाया। उसने जल्दी से ज़ीना को नज़दीक बुलाकर चैंन में बाँधा और चाबी लेकर गेट खोलने के लिए आगे बढ़ी। सुमन ने दोनों महिलाओं को विनम्रतापूर्वक अंदर आने का निमंत्रण दिया।

                 अंदर आते हुए गीता ने मुस्कुराकर कहा, “राम-राम बहिनी! सवेरे-सवेरे तुम्हें हैरान कर दिया। आज ज़ीना तो ऐसे भौंके जनाए हमे पहचाने  नहीं.. अभी भी शायद अपने पड़ोसियों के महक से अनजान है।”  “अरे नहीं। कोई हैरानी नहीं बहिनी।” फिर चेहरे पर बनावटी मुस्कान के साथ सुमन आगे कहने लगी, “राम-राम! आओ आओ…, अंदर चलो! ज़ीना के तो रोज के यही काम है। वह मेरी भी बात कहाँ मानती है। लेकिन हाँ, रवीन और लड़कियों की बात झट मान लेती है।”

            इधर-उधर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें घुमाते हुए गीता ने पूछा, “रीमा और रिया नहीं दिख रही?”

“वो कल रात काफी देर तक रीमा पढ़ रही थी तो सोई है और रिया यहीं कही …”

बीच में ही गीता बोल पड़ी, “रीमा से कहे ज्यादा टेंशन न लें। वो तो बहुत होशियार लड़की है।”

“अच्छा यह सब बाते छोड़ो बहिनी। बताओ, आज रात की तैयारी कैसे चल रही है?”

“यह मेरी बड़ी ननद है। हमें आशीर्वाद देने सूवा से कल रात ही आई हैं।”

सुमन ने गीता की ननद की ओर देखकर मुस्काराते हुए कहा, “वाह, बहुत बढ़िया! परिवार वाले साथ हो तो उत्सव की खुशी दुगनी हो जाती है।”  

“हाँ, हाँ… बिलकुल ठीक कहा। मेरी दोनों भाभियाँ और गोपी के कुछ दोस्त भी घर पर हैं। बस अभी नाश्ता करके काम में जुट गए हैं। तिमोदी भी लोवो (Lovo) की तैयारी करने पहुँचने ही वाला है।”

“अरे गीता बहिनी, क्या बात है! आज खाने की मेन्यू में लोवो भी शामिल है!

“हाँ लोवो और पालोसामी भी है। गोपी को तुम जानती ही हो। वो खाने पीने के मामले में मेरी कहाँ सुनते हैं। लोवो और पॉलोसामी का आइडिया भी उसी का है। इसलिए लोवो की जिम्मेदारी गोपी और उसके दोस्तों को सौप दी है।” सुमन ने अपने पड़ोसी होने का फर्ज ध्यान में रखकर कहा, “मेरे लिए कुछ काम हो तो बताओ। बस घर का काम-काज निपटा कर मैं भी तुम्हारे यहाँ आने वाली थी।”

“एक जरूरी काम से तो आई हूँ तुम्हारे पास। आज न पार्टी में पहनने के लिए दीदी मेरे लिए सूवा से डिज़ानर सलवार सूट लाई है।” अपनी ननद की ओर इशारा करते हुए गीता ने बड़े गर्व के साथ लाए थैले का सुमन के आगे किया।

“अच्छा! बहुत खूब। तुम तो बड़ी नसीब वाली हो बहिनी, जो इतना ध्यान रखने वाली ननद है तुम्हारी।”

“हमारे भाभी-भइया भी किसे से कम थोड़े हैं”, गीता की ननद ने जल्दी से अपनी बात जोड़ दी।

“अपने भइया के लिए भी मेचिंग रंग का कुर्ता लाई है।” फिर कुछ हिचकिचाहट के साथ गीता ने आगे बात बढ़ाई, “लेकिन क्या है न…मुझे यह सलवार सूट थोड़ा-थोड़ा पेट और बाजू के पास कस रहा है। वो इन दिनों मैं थोड़ी फिट हो गई हूँ न। इसलिए पिंकी ने कहा कि सुमन आंटी से जाकर ठीक करा लूँ ताकि अच्छे से बॉडी में फिट बैठे। अब तुम ही कुछ उपाय करो बहिनी।”

                        सुमन ने सलवार सूट खोलकर देखा। हलके खूबसूरत ऑलिव ग्रीन कलर के कुर्ते में गहरे गुलाबी कलर के थ्रेड वर्क वाले फूल पूरे गले, पल्ले और सलवार को कवर कर रहे थे।  सच में इस सलवार सूट का एक अलग ही मनमोहक लुक था। मगर सुमन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस डिज़ानर सूट को किस तरह से गीता की बॉडी में फिट करने लायक बनाया जाए। बहुत विचार करने पर सुमन ने गीता को समझाया कि सूट के पेजामे में से थोड़ा सा कपड़ा निकाल कर बाजू के पीछे वाले हिस्से में जोड़ सकते है और कमर के पास की सिलाई को खोलने से पेट के पास थोड़ी जगह बन सकती है।

                   यह सुन गीता का मुरझाया चेहरा एक बार फिर हॉयबिस्कस फ्लावर की तरह खिल उठा। वह सुमन को सलवार सूट को ठीक करने की जिम्मेदारी सौंपकर, निश्चिन्त हो शाम की तैयारियों में जुट गई।

                     अब तक रीमा भी पूरी तरह जाग चुकी थी। अपने दैनिक कार्यों के बाद वह पढ़ने बैठ गई। सुमन और रवीन को नतंबुआ, लौटोका आए लगभग सात साल होने को थे। तब से गीता और उसके पति गोपाल, जिसे सभी गोपी के नाम से जानते हैं ने सुमन और रवीन के साथ एक अच्छे पड़ोसी की भूमिका निभाई। इन दोनों परिवारों का यह मानना था कि प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम है।

                    रवीन फीजी नेशनल युनिवर्सिटी में असिस्टन लेक्चरर है। उसकी पत्नी सुमन घर संभालती है और साथ-साथ अपने खाली समय में कुछ सिलाई का काम भी कर लेती है। रवीन की दो बेटियाँ हैं, रीमा और रिया। दोनों सेकेंड्री स्कूल में पढ़ती हैं। इस वर्ष बड़ी बेटी रीमा तेरहवीं कक्षा में है और राष्ट्रीय परीक्षा में अच्छे अंक पाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही है। परिवार वालों की रीमा से बड़ी उम्मीदे हैं कि उसे एम.बी.बी.एस में दाखिला जरूर मिल जाएगा।

                  इधर पड़ोस में गीता के यहाँ चहल-पहल का उत्सवी माहौल फैला हुआ है। कोई आँगन की साफ-सफाई कर रहा है, तो कुछ आदमी टेंट लगा रहे हैं, बच्चे अपनी टोली बनाकर इधर-उधर घूमने में मस्त हैं, वहीं घर के अंदर से औरतों की नोक-झोक व बरतनों की टकराहट भरी आवाजें सुनाई पड़ जाती है। इन सब के बीच रीमा पढ़ने की कोशिश करती है पर उसका ध्यान गीता आंटी के शोर-गुल भरे माहौल की ओर खिंचा चला जाता है। उसे बार-बार अपने चंचल मन को वापस लाना पड़ता है। फिर कोई न कोई गीता आंटी के यहाँ से कभी किचन का सामान, औजार व सजावट के लिए फूल-पत्तियाँ माँगने आ धमकता है जिससे रीमा को एक अलग चिड़चिड़ाहट होती है।

                  रीमा की समझ में आज तक यह बात नहीं आई कि गीता आंटी को यह सब झंझट मोल लेने की क्या जरूरत पड़ जाती है। कभी किसी के जन्मदिन की पार्टी, पूजा-भोज या सालगिरह आदि कुछ न कुछ झमेला तो लगा ही रहता है। अभी तीन-चार महीने पहले ही गीता की बेटी पिंकी की जन्मदिन पार्टी थी। लेकिन आज का विशेष आयोजन गीता और गोपी की शादी की 25वीं सालगिरह की खुशी में किया जा रहा है। इस साल दोनों ने अपनी शादी की सालगिरह अनोखे रूप से मनाने का निश्चय किया।

                      मगर रीमा को इस तरह की पार्टियाँ और भीड़-भाड़ पसन्द न था। उसने अपने घर पर ऐसी चहल-पहल और फिजूल की पार्टियाँ देखी ना थी। हालांकि बचपन में रिया और उसकी जन्मदिन पार्टियाँ मनाई गईं पर उसमें भी कवेल करीबी रिश्तेदार ही शामिल होते थे। अभी कुछ साल पहले रवीन के बड़े भाई की बेटी, काजल का इक्कीसवां जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर रीमा ने अपने चचरे भाई-बहनों के साथ में खूब मस्ती की थी। उन पलों को याद कर रीमा का चेहरा खिल उठा। उस वक्त रवीन ने घर आकर रीमा और रिया से कहा था कि तुम लोगों का इक्कीसवां जन्मदिन भी हम ऐसे ही धूमधाम से मनाएंगे।

                     “अभी तो उसके लिए चार साल बाकी है। बस भगवान से यही विनती है कि किसी तरह परीक्षा में अच्छे अंक आ जाए और डॉक्टरी में मेरा एडमीशन हो जाए…”, रीमा ने खुद को बहलाने के लिए कहा। कुछ दिनों से परीक्षा की चिंता उसे अंदर ही अंदर खाए जाए रही थी। जहाँ थोड़ा परीक्षा तनाव हमें सक्रिय, प्रेरित और हमारा ध्यान केंद्रित रखता है वहीं बहुत ज्यादा तनाव मन में नकारात्मक सोच को भी पैदा करता है। इन सब के बीच आज रीमा को अपनी हिंदी टीचर, श्रीमती बली की बातें याद आई।  वह क्लास में हमेशा कहती थी कि चिंता और चिता एक समान है, इसमें मात्र एक बिंदु का अंतर आता है। चिता मानव को मृत होने के बाद जलाती हैं किंतु चिंता मनुष्य को जीवित रहने तक जलाती रहती है।

                 अंधेरा होते-होते गीता का घर-आँगन फिलिकर लॉइट से जगमगा उठा। ऐसा लग रहा था कि आज दिवाली की रात है। इसी बहाने फिलिकर लॉइट का कोई उपयोग तो हुआ वरना साल भर ऐसे ही बक्से में पड़ी रहती हैं। डीजे वाले भी आ गए थे। धीरे-धीरे ड्रायववाय और रास्तों पर मोटर की कतारे लगने लगी। पार्टी का एलान करने के लिए लाउडस्पीकर पर हिंदी और अंग्रेजी गाने ज़ोर-शोर से बजने लगे। इस बार भी पार्टी के लिए गोपी ने दिल खोल कर खर्च किया था।

                   आठ बजते-बजते टेंट खचाखच रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों से भर गया। आखिर जहाँ गोस-माँस और दारू की व्यवस्था हो वहाँ मेहमानों को आने में देर नहीं लगती है। इधर औपचारिक कार्यक्रम और केंक कटा उधर डीजे ने अपनी कला दिखाई। डीजे ने गीता और गोपी को सालगिरह की शुभकामनाएं देते हुए कार्यक्रम का आगाज़ किया, “ईश्वर करे खुशियों के ये पल सदा आपके संग रहें। आप दोनों को शादी की 25वीं सालगिरह पर बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। आने वाला प्रत्येक नया दिन, आपके जीवन में अनेकानेक सफलताएँ एवं अपार खुशियाँ लेकर आये! इस अवसर पर ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह, वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, आदर्श, स्वास्थ्य, और समृद्धि के साथ आजीवन आपको जीवन पथ पर गतिमान रखे !” इसके बाद डीजे ने बाग़बान का लोकप्रिय गीत ‘मेरी मखना मेरी सोनिये चन बलिये’ बजाया और टेंट में बैठे सब ने गीता और गोपी के लिए जोरदार तालिया बजाई। शर्माते हुए गीता और गोपी अपने मेचिंग सूट में बाग़बान के अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी जी से कम नहीं लग रहे थे।

                    रवीन भी अपने पूरे परिवार सहित पार्टी में अपना पड़ोसी धर्म निभा रहा था। उसने मेहमानों के सत्कार में गोपी का हाथ बटाया। सभी मेहमानों के लिए बैठने, खाने-पीने, गीत-संगीत की बढ़िया व्यवस्था की गई थी। जैसे-जैसे रात गहरी होने लगी वैसे-वैसे मेहमान भी खा-पीकर अपने घर वापस जाने लगे। लेकिन कुछ खास मेहमान अभी भी पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे और उन्हें खुश करने के लिए डीजे ने अपना असली रंग जमाया।

                  रीमा खाना खा कर अपनी बहन रिया के साथ सवा दस बजे तक घर वापस आ गई। हालांकि रिया को आने का मन नहीं था पर बड़ी बहन के लिए उसे अपनी खुशियों का बलिदान कर दिया। पिंकी, दीपों, राज ने अपने मम्मी-पापा के लिए एक डेन्स प्रस्तुति तैयार की थी जिसे रिया देखना चाहती थी मगर इस प्रस्तुति में अभी काफी समय था। लगभग साढ़े दस बजे के करीब रवीन और सुमन भी ‘बेटियाँ घर पर अकेली हैं,’ ऐसा बहाना बनाकर पार्टी से निकल आए। गीता और गोपी ने उन दोनों को रोकने की बहुत कोशिश की मगर रवीन बहाना बनाकर गोपी के चंगुल से बच निकला।

                       पार्टी से आने के बाद रीमा ने घर पर पढ़ने की कोशिश की मगर लाउडस्पीकर के शोर के कारण ध्यानपूर्वक पढ़ना नामुमकिन था। इसलिए वह सोने चली गई। उसने सोचा कि नींद आ जाए तो वह सुबह पाँच बजे जागकर नॉट्स पढ़ लेगी। उसने सोने का बहुत प्रयास किया मगर डीजे के कान फोड शोर के कारण सोने का प्रयास भी असफल रहा।

                    वैसे तो रात दस बजे के बाद सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकर बजाने पर प्रतिबंध है, लेकिन इस कानून को लोग मान्यता नहीं देते। पड़ोस वाले भी शिष्टाचार के नाम पर विरोध कार्यवाही नहीं करते क्योंकि पुलिस में शिकायत करने से पड़ोसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते। इस वजह से तब तक लाउडस्पीकर बजना नहीं थमेगा जब तक कि कोई अत्याधिक परेशान होकर इसकी शिकायत नहीं कर देता। लेकिन सवाल तो यह है कि पड़ोसियों से पंगा ले कौन? आजकल दूसरों को सही रास्ता दिखाने का रिस्क कोई लेना नहीं चाहता क्योंकि यह एक बड़ी दुश्मनी को मोल लेने वाली बात हो सकती है।

                    नींद न आने के कारण कभी रीमा करवट बदलती तो कभी हाथ-पाँव इधर-उधर फेंकती। खाट के पास वाले मेज़ से उसने मोबाइल उठाकर समय देखा तो अभी साढे ग्यारह बज रहे थे। “याने इस डीजे को खत्म होने में अभी कम-से-कम एक आध घण्टा बाकी है। पता नहीं यह भोपू कब बंद होगा और हमें चैन की नींद कब मिलेगी।”

रीमा की भांति, रवीन और सुमन भी अपने कमरे में सोने की पूरी कोशिश कर रहे थे मगर उनकी भी नींद उचट थी। “अरे! अब तो थम जाए। कुछ लोगों को चैन की नींद तो सोने दें। यह सब तो लाउडस्पीकर के बगैर भी किया जा सकता है।” चिड़चिड़े भाव से रवीन ने कहा।

“आप भी हद करते हैं। लाउडस्पीकर नहीं होगा तो लोगों को कैसे पता चलेगा कि यहाँ पार्टी है।”

                जब डीजे की बंद होने की उम्मीद ही टूट गई तब रवीन ने सुमन से निराशापूर्वक कहा, “चलो फिर, सोने की कोशिश करते हैं। यह धमाधम जब बंद होगा, तब होगा।” रवीन ने करवट बदली और सिर से पैर तक एक कवच की तरह चादर ओढ़ ली जैसे लाउडस्पीकर की आवाज़ इसके अंदर नहीं घुस पाएगी। लेकिन थोड़ी देर बाद, जो पहले भी कई बार बज चुका था “दिलबर, दिलबर…” के बोल कानों में पड़े ही थे कि अचानक गाना बीच में ही रुक गया और एक अजीब शांति छा गई।

                    अगले सुबह गीता की बेटी पिंकी मिठाई और पुलाव देने सुमन के यहाँ आई। सुमन और पिंकी पार्टी की चर्चा करने लगे। अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए सुमन ने पिंकी से पूछा, कल कितनी रात तक पार्टी चली? तुम लोगों ने तो खूब डेन्स किया होगा?

“कहाँ आंटी? आपको नहीं मालूम?”

“क्या?” आश्चार्य से सुमन ने पिंकी से पूछा।

“अरे आंटी! किसी ने पुलिस को फोन कर के लाउडस्पीकर की शिकायत कर दी। हमारे रंग में भंग पड़ गया। रात को पुलिस ने आकर डीजे बंद करा दिया। पापा तो बहुत गुस्से में थे।”

“ओह…कौन ऐसा करेगा? किसने किया, कुछ पता चला।”

“बहुत लोग हैं न आंटी जो हमसे जलते हैं। पापा पता कर रहे हैं कि किसने फोन किया था।”

                    पिंकी के जाने के बाद, सुमन ने नाश्ते के समय रवीन को डीजे के अचानक बंद होने का असली कारण बताया। रवीन ने सुमन की ओर आश्चर्य भरी दृष्टि डाली और कहा, “ओ रीयली! कौन ऐसा करेगा?” फिर थोड़ी देर सोचकर खुद जवाब देने लगा, “अच्छा कोई तो था जो हमसे ज्यादा परेशान रहा हो। आखिर कायदा कानून भी कोई चीज़ है।”  

“पर रवीन हमारे आस-पड़ोस में से ऐसा कौन करेगा? सबकी तो गीता और गोपी से अच्छी बनती है।”

“अरे सुमन! कोई होगा। हमें इससे क्या? रात सोने के लिए होती है, हुड़दंग मचाने के लिए नहीं।हम भी तो रात को परेशान हो रहे थे?”

“मगर एक रात में किसका क्या बिगड़ जाता? ”

“एक रात की बात नहीं, अनुशासन की बात है। खैर छोड़ो इन बातों को। सब ये समझ जाते तो देश का भला नहीं हो जाता।”

                  रीमा चुपचाप बैठी अपने मम्मी-पापा की बाते सुन रही थी। सुमन और रवीन की इस तरह की बहस उसके लिए कोई नई बात नहीं थी। मौका देखकर उसने धीरे से कहा, “रात को 911 मैंने डायल किया था।” यह सुन एक अजीब सा संनाटा टेबल पर छा गया। सुमन के ऊपर तो जैसे बिजली ही गिर गई हो और रवीन का निवाल हवा में ही टंगा रह गया।

                 अपने आप को संभालते हुए, सुमन ने रीमा को आँखे दिखाते हुए तीखे स्वर में कहा, “ हे भगवान !… यह क्या कर दिया इस लड़की ने। लगता है पड़ोस में झगड़ा करा कर छोड़ेगी। रीमा, तुम्हें ऐसा करने की क्या जरूरत थी?”

                    रीमा ने कोई जवाब नहीं दिया। सिर झुकाए अपने चाय के कप को घूरे जा रही थी और अपने पापा की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही थी।

इधर सुमन फिर बड़बड़ाने लगी, अरे! वे लोग क्या कहेगे? …तुझे क्या भूत सवार हो गया था? एक बार हम से आकर पूछ लेती तो…। 

                   रवीन ने सुमन के गुस्से को शांत करने और बात को दबाने के लिए कहा, देखो! अब जो हो गया सो हो गया। रीमा जो हुआ वह ठीक नहीं था। अब आगे ध्यान रखना कि ऐसा नहीं होना चाहिए। …और हाँ इस बात का पता किसी को न चले कि फोन इस घर से गया था। रवीन ने पत्नी समेत रीमा और रिया को चेतावनी दी।

                “आप ने ही इस लड़की को सर पर चढ़ा रखा है। समझौता नाम की भी कोई चीज़ होती है। हमे पड़ोसियों से मिलजुल कर रहना है न की…।”

                “क्या बेमतलब की बातों को बढ़ा रही हो। अब समझा दिया है तो आगे से ऐसा काम नहीं करेगी।” रवीन ने गम्भीरतापूर्वक सुमन से कहा।

                 “मम्मी, मैंने जो किया सब के भले के लिए किया। उसके लिए आई एम सॉरी…” इतना कहकर रोती हुई रीमा अपने कमरे में चली गई।

                 रीमा और रिया के जाने के बाद,  रवीन ने सुमन को प्यार से समझाते हुए कहा, “वैसे एक बात तो है अगर रात को रीमा ने 911 फोन न किया होता तो पता नहीं डीजे और कितनी रात तक चिंघाड़ता रहता। शोर के मारे मेरा भी सिर फटा जा रहा था।” इस बार सुमन ने रवीन की बातों से सहमती दर्शाते हुए कहा, “आपका ही नहीं मेरा भी।”

                 ऐसी बातें आग की धुएं की तरह होती है जिसे फैलने में देर नहीं लगती। गोपी और गीता के अलावा आस-पड़ोस वाले भी पार्टी का रंग भंग करने वाले पुलिस खबरी की खोज में लग गए। 

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