ऑस्ट्रेलिया में हिंदी साहित्य

-रेखा राजवंशी

कहा जाता है साहित्य समाज का दर्पण है। 

ऑस्ट्रेलिया में हिंदी साहित्य का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। लगभग चालीस वर्ष पहले हिंदी भाषी भारतीय यहाँ आए और अगली पीढ़ी को हिंदी सिखाने के लिए भारतियों ने मंदिरों में हिंदी भाषा की कक्षाएं लगानी शुरू कीं।  उसी के साथ मनोरंजन के लिए कविताओं, कहानियों का वाचन भी शुरू हुआ।  ऑस्ट्रेलिया में २०१६ की जनगणना के अनुसार भारतियों की संख्या बढ़ रही है, और साथ ही हिंदी बोलने वालों की संख्या भी बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया एक बहु- सांस्कृतिक देश है और पूरे विश्व के लोग यहाँ रहते हैं। भारतियों की संख्या बढ़ने के साथ साथ यहाँ भारतीय संस्कृति, भाषा, भोजन और उत्सवों को भी मान्यता प्राप्त हुई है। यहाँ बोले जाने वाली करीब तीन सौ भाषाओँ में विविध भारतीय भाषाएं भी हैं। हिंदी के अतिरिक्त पंजाबी, तमिल, पंजाबी, गुजराती आदि हैं।

ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय जनगणना 2016 के आंकड़ों अनुसार ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासी, यहाँ आने वाले मुख्य पांच प्रवासियों में से एक है, आज, भारत में पैदा हुए लोग ऑस्ट्रेलियाई आबादी का 1.9% हैं।

सिडनी

लगभग 3 दशक पूर्व हिन्दी समाज की स्थापना हुई, हालांकि भारतीय 1860 के दशक से ऑस्ट्रेलिया आ रहे थे।

सन 1970 के दशक में ऑस्ट्रेलिया द्वारा श्वेत नीति को हटाए जाने के बाद भारतियों का तीव्र गति से यहाँ आगमन हुआ। यहाँ की सरकार को योग्य मेहनती कर्मचारियों की जरूरत थी। ऑस्ट्रेलिया को अपना घर बनाने के लिए भारतियों को न केवल अपने शरीर के लिए बल्कि अपने दिमाग के लिए भी भोजन की आवश्यकता थी। उसी के फलस्वरूप इंडिया लीग (यूआईए), श्री मंदिर, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय संगठनों का गठन हुआ।

इसी बीच में हिंदी साहित्य और कविता आदि पर जोर देने वाले इच्छुक लोगों की अनौपचारिक साहित्यिक बैठकें हुईं।

1979 में तत्कालीन प्रबंधन समिति मुख्य रूप से श्री विजय सिंघल और डॉ प्रभात सिन्हा की पहल से ऑबर्न मंदिर में हिंदी कक्षाएं शुरू हुईं। लखनऊ विश्वविद्यालय के एक अकादमिक दंत चिकित्सक प्रोफेसर चंद्र मोहन श्रीवास्तव के नेतृत्व में जनवरी 1991 में हिंदी समाज के जन्म के साथ हमारी शाब्दिक बैठकों को औपचारिक रूप दिया गया।  हिंदी समाज द्वारा प्रकाशित पत्रिका चेतना 1992 से 2002 तक चली जिसका संपादन हिन्दी समाज की अध्यक्ष डॉ शैलजा चतुर्वेदी ने किया था। 

श्री हरि प्रसाद चौरसिया ने हमारे पहले हिंदी दिवस के लिए अपनी बंसुरी से खचाखच भरे एन एस डब्ल्यू साइंस थिएटर को मंत्रमुग्ध कर दिया । हिंदी समाज ने पद्मश्री गोपाल दास नीरज, प्रो सरोज कुमार, प्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन, पद्म श्री अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबादी आदि को भी सिडनी में आमंत्रित किया। 

इंडिया डाउन अंडर जैसे समाचर पत्र भी उन्हीं दिनों आए जिसकी संपादक नीना बधवार ने बाद में एक पृष्ठ हिंदी में भी निकलना शुरू किया। कुछ स्थानीय रेडियो जैसे मोनिका गीत माला, महक, एस बी एस हिंदी का भी प्रसारण होने लगा, जिसमें साहित्य को भी स्थान मिला। 

सन 2000 के बाद लेखिका, कवियित्री रेखा राजवंशी भारतीय ऑस्ट्रेलियाई साहित्य और कला संस्था (इलासा) स्थापित की। संस्था ने हिंदी के कई कार्यक्रम आयोजित किये। डा. कुंवर बेचैन, अशोक चक्रधर, खुशबीर सिंह शाद के काव्य पाठ के अलावा सिडनी यूनिवर्सिटी में ऑस्ट्रेलिया हिंदी सम्मलेन का आयोजन भी सम्मिलित है। इसी संस्था ने सिडनी के संसद भवन में युवा लोगों को प्रोत्साहन के लिए कविता प्रतियोगिता का आयोजन भी किया।  भारतीय विद्या भवन ने भी हिंदी के प्रसार के लिए कुछ कार्यक्रम आयोजित किये। 

अब तक चार साझा काव्य संकलन आ चुके हैं।  रेखा राजवंशी के संपादन में ऑस्ट्रेलिया के कवियों के दो काव्य संकलन प्रकाशित हुए। पहला काव्य संग्रह ‘बूमरैंग – ऑस्ट्रेलिया से कविताएं’ 2010 में रेखा राजवंशी के संपादन और मेलबोर्न के सुभाष शर्मा और पर्थ के प्रेम माथुर के के सह संपादन में किताबघर से प्रकाशित हुआ।  इसके बाद हिंदी और उर्दू के कवियों का दूसरा द्विभाषी काव्य संकलन ‘गुलदस्ता’ भारतीय विद्या भवन के सौजन्य से प्रकाशित हुआ जिसका संपादन कवि अब्बास रज़ा अल्वी और भारतीय विद्या भवन के अध्यक्ष गंभीर वत्स ने किया। रेखा राजवंशी द्वारा संपादित ‘बूमरैंग 2- ऑस्ट्रेलिया से कविताएं’ संकलन में छह शहरों के चालीस कवियों की कविताएं संकलित हैं। 2021 में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा प्रकाशित कहानी की पुस्तक में ऑस्ट्रेलिया के बीस लेखकों की कहानियाँ सम्मिलित हैं जिनका संपादन रेखा राजवंशी ने किया है।

सिडनी के अन्य कवियों की पुस्तकें प्रकाशित हैं। रेखा राजवंशी – कविता, कहानी, नज़्म, ग़ज़ल संग्रह, अनुवाद अनिल वर्मा – कविता संग्रह,  विजय कुमार सिंह – उपन्यास, कविता संग्रह, डा शैलजा चतुर्वेदी कविता संग्रह, डॉ निहाल अगर कविता संग्रह, श्रीमती विमला लूथरा कविता संग्रह, डॉ भावना कुंवर –  दोहा, हाइकु, चौका, कविता संग्रह, प्रगीत कुंवर – दोहा संग्रह, संजय अग्निहोत्री – उपन्यास मुख्य हैं।  कुछ युवा कवि भी अच्छा लेखन कर रहे हैं, जिनमें मृणाल शर्मा, विराट नेहरू आदि मुख्य हैं। 

रेखा राजवंशी समय-समय पर अपनी संस्था के माध्यम से कवि सम्मेलनों का और हिंदी दिवस का आयोजन करती रही है। यहाँ के साहित्यकार उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता, लेख और व्यंग्य आदि की पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं। अनेको पुस्तकों का विमोचन भी संस्था इलासा के मंच से हुआ। कोविड काल में ज़ूम कार्यक्रमों के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया के साहित्यकार विश्व के अन्य साहित्यकारों से जुड़ रहे हैं। ‘विश्वरंग ऑस्ट्रेलिया’ वर्चुअल फेस्टिवल आयोजन  में  रेखा राजवंशी के निर्देशन में ऑस्ट्रेलिया के अनेक साहित्यकार सामने आए। 

सबसे पुराना हिंदी अखबार ‘हिंदी समाचार पत्रिका; फिजी के परशुराम महाराज ने प्रकाशित किया।  जो कई वर्षों तक छापता रहा।  उसके बाद २०१० के दौरान एक और हिंदी समाचार पत्र  ‘हिंदी गौरव’ प्रकाशित होना शुरू हुआ। अब यह समाचारपत्र ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके अलावा 2011 जुगनदीप सिंह के संपादन में कुछ वर्ष पहले यहां हिंद एक्सप्रेस नाम से एक अखबार निकला परंतु हिंदी पाठकों की रुचि और वित्तीय सहायता के अभाव में अखबार बंद करना पड़ा। सिडनी के समाचारपत्र ‘इंडियन डाउन अंडर’ और ‘फिजी टाइम्स’ भी हिंदी का एक पन्ना प्रकाशित करते हैं। 

सिडनी में बच्चों के लिए हिंदी शिक्षण मंदिरों में प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे अन्य स्थानों पर हिंदी की शिक्षा दी जाने लगी।  माला मेहता ने इंडो-ऑस्ट बाल भारती  हिंदी विद्यालय खोला जो रविवार को हिंदी की कक्षाएं लगाने लगा।  फिजी के हिंदी विद्यालय भी कई साल  हैं।  उसके बाद अन्य सामुदायिक विद्यालय भी खुले जैसे साउथ एशियन हिंदी स्कूल जो पैरामैटा और कोगरा में कक्षाएं लगता है। आजकल यहां हिंदी विद्यालयी पाठ्यक्रम का हिस्सा है और कुछ प्राइमरी स्कूलों में  हिंदी की शिक्षा उपलब्ध है।  यहाँ सिडनी यूनिवर्सिटी में  भी हिंदी शिक्षण होता था पर करीब दस साल पहले बंद हो गया और उसके बाद यूनिवर्सिटी के प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में हिंदी उपलब्ध थी जो पिछले 3 साल से बंद हो गई। चूँकि भारतीय अंग्रेजी बोल लेते हैं तो ऑस्ट्रेलिया के लोगों को हिंदी सीखने की आवश्यकता नहीं लगती।  फिर भी बॉलीवुड और भारत में पर्यटन के इच्छुक ऑस्ट्रेलियन्स को हिंदी सीखने में रूचि है। 

मेलबर्न 

मेलबर्न  में साहित्य संध्या की पौध राधेश्याम जी और रतन जी ने लगाई, जिसे बाद में डॉ सुभाष शर्मा, हरिहर झा, डॉ नलिन शारदा आदि कवियों ने संभाला। औपचारिक रूप से साहित्य संध्या का आयोजन पिछले बीस वर्षों से हो रहा है।  2005 में हिंदी दिवस पर बड़ा प्रोग्राम किया गया था । इस प्रोग्राम के लिए बैनर भारत से बनवा कर पोस्ट से मंगाए थे। जिसका अमिताभ सिंह ने संचालन किया था डाक्टर अग्रवाल अध्यक्ष तथा सुभाष जी ने मंच तथा प्रोग्राम किया था 100 से अधिक लोग आए थे । 2017 से वेस्टर्न सबर्ब में साहित्य संध्या शुरू होने से लोगों में अधिक रूचि पैदा हुई। इसी कारण ‘वेरिबी’ में सात साल से हर साल एक शायराना शाम कवि सम्मेलन सम्भव हुआ । प्रतीक कालिया ने साहित्य संध्या की तर्क पर पंजाबी साहित्यिक शाम शुरू की।

साहित्य संध्या के सहयोग से तन्वी मोर ने राहत इंदोरी का प्रोग्राम कराया। माहिब खन्ना ने भी एक अच्छा कवि सम्मेलन साहित्य संध्या के सहयोग से आयोजित करा। साथ ही भारतीय कौंसुलावास, मेलबोर्न में काउंसल जनरल मनिका जैन जी के सहयोग से हिंदी दिवस मनाना प्रारम्भ हुआ। जाने-माने कवि अशोक चक्रधर तथा कुमार विश्वास के कार्यक्रम भी साहित्य संध्या के सहयोग से सम्पन्न हुए। अनेको कवियों की पुस्तकों का विमोचन भी साहित्य संध्या के मंच से हुआ। सभी कवियों का सहयोग रहा मेलबोर्न के हिंदी पुरोधा स्वर्गीय दिनेश श्रीवास्तव जी का सहयोग सदा रहा तथा वे नियमित रूप से आते रहे। यद्यपि साहित्य संगीत या नाट्य के जितना रुचिकर नही है फिर भी लोगों में साहित्यिक भूख है और लोग जुड़े रहेंगे और साहित्य संध्या ऐसे ही चलती रहेगी यद्यपि यह रजिस्टर्ड आज भी नही है ।

इसी तरह मेलबोर्न विक्टोरिया में भी विक्टोरियन स्कूल ऑफ़ लैंग्वेजेज के अंतर्गत कई वर्षों से हिंदी शिक्षण कराया जा रहा है। हिंदी के विकास में डा. दिनेश श्रीवास्तव ने बहुत योगदान दिया। वहां भी सप्ताहांत में स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।  अब रेंजबैंक पब्लिक स्कूल के अतिरिक्त अन्य स्कूलों में भी हिंदी मुख्यधारा से जुडी है।  इसके अतिरिक्त मेलबोर्न के कवि सुभाष शर्मा और हरिहर झा कई वर्षों से साहित्य संध्या का आयोजन करते रहे हैं। 

ऑस्ट्रेलिया के दो विश्वविद्यालय हिंदी पढ़ाते हैं। पहला मेलबोर्न का ला ट्रोब विश्वविद्यालय, जहाँ डा. इयान वुल्फोर्ड हिंदी शिक्षण करते हैं। डा. इयान वुल्फोर्ड ने अक्टूबर 2017 में ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में हिंदी सम्मलेन आयोजित किया, जिसमे ऑस्ट्रेलिया के हिंदी विद्वानों और साहित्यकारों के अतिरिक्त भारत से भी मृणाल पांडे और अदिति माहेश्वरी आमंत्रित थे। 

इसके अतिरिक्त अनेकों कवियों और लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ। मेलबर्न के अंग्रेजी समाचार पत्र साउथ ईस्ट एशिया टाइम्स में मृदुला कक्कड़ के संपादन में दो पृष्ठ का ‘हिंदी पुष्प’ बराबर प्रकाशित हो रहा है।  मेलबोर्न में हरिहर झा की रचनाएं अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित हैं।  काव्य संग्रह – अंग अंग में अनंग,  मृत्युंजय के अलावा संकलनों -देशान्तर, गुलदस्ता, बूमरैंग 1 और 2 में भी उनका कार्य प्रकाशित है। डॉ कौशल श्रीवास्तव हिंदी पत्रिकाओं एवं हिंदी पुष्प (मेलबोर्न) में कविताएँ, लेख आदि नियमित रूप से प्रकाशित। ‘कविता दर्पण’ (मिश्रित संस्कृत के स्वर) नामक पुस्तक प्रकाशित, प्रथम संस्करण – 2013, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली । डॉ सुभाष शर्मा ने बूमरैंग 1 और 2 में सह सम्पादन किया है।  अनुभूति और अन्य पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएं प्रकाशित हैं। नए कवियों में संध्या नायर, पूजा व्रत गुप्ता,  सुयश जैसे युवा कवि भी कविताएं रच रहे हैं।  अब अंतर्जाल का ज़माना है तो बहुत से लोग सोशल मीडिया के द्वारा अपना साहित्यिक कार्य प्रकशित करते हैं। 

पर्थ

कवि, लेखक कुशल कुशलेन्द्र जी द्वारा प्रदत्त सूचना के अनुसार पर्थ में ‘हिंदी समाज ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया’ हिंदी साहित्य की दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रहा है।  

हिंदी समाज ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया पिछले 25 वर्षों से हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिये सतत रूप में प्रयासरत है। हिंदी समाज ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया का मूल कार्य हिंदी भाषा को पढ़ने, लिखने और बात करने या संवाद के उपयोग हेतु बढ़ावा देना है। इस संदर्भ में हिंदी भाषा से जुड़े विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे साहित्य संध्या, इंद्रधनुष, कलम दवात इत्यादि के अलावा बच्चों और वयस्कों दोनों ही के लिए हिंदी की कक्षाएं चलाई जा रही है। हिंदी समाज ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया, काउंसलेट जनरल आफ इंडिया और अन्य भारतीय एवं ऑस्ट्रेलियाई सरकारी मंत्रालयों के साथ कार्य करते हुए हिंदी भाषा को स्कूली पाठयक्रम में शामिल करने का भी कार्य कर रहा है। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में हिंदी भाषा 2023 से कक्षा एक से कक्षा बारह तक के पाठयक्रम में शामिल हो जाएगी।

हिंदी समाज पिछले पच्चीस वर्षों से, भारत-भारती के नाम से वार्षिक पत्रिका भी छापता आ रहा है जिसमें मुख्यतः स्थानीय लेखकों को बढ़ावा दिया जाता है। हिंदी समाज के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में स्थानीय १४ कवियों का एक कविता संग्रह “स्वान नदी के तट से” प्रकाशित हुआ।

पर्थ के स्थानीय लेखक और उनकी पुस्तकों की सूची इस प्रकार है।

श्रीमती सावित्री गोस्वामी नया दौर (कहानी संग्रह), श्रीमती लक्ष्मी तिवारी पड़ाव (उपन्यास), श्रीमती रीता कौशल रजकुसुम (कहानी संग्रह)  और चद्राकांक्षा (काव्य संग्रह)

पर्थ से ही प्रेम माथुर जी बूमरैंग -1 और 2 के सह-संपादक रह चुके हैं. बूमरैंग-२ में संगीता बंसल और कुशल कुशलेंद्र की कवितायों ने भी स्थान प्राप्त किया है। नए कवियों में संगीता बंसल, ज्योति माथुर आदि अनेक लोग बराबर प्रयासरत है और हिंदी समाज एक प्लेटफार्म प्रदान करता रहा है।

कैनबरा

कैनबरा में साहित्यकार किशोर नंगरानी के प्रयासों के फलस्वरूप कुछ कवि सम्मलेन आयोजित हुए, जिनमें सिडनी और मेलबोर्न के कवियों ने भाग लिया।

कैनबरा के साहित्यकारों में किशोर नंगरानी, डॉ अवधेश प्रसाद मुख्य हैं। किशोर नंगरानी का कार्य अनुभूति और बूमरैंग 1-2 में प्रकाशित है। डॉ अवधेश प्रसाद के तीन कविता संग्रह कलावती प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित हुए हैं – खामोशियां, तन्हाइयां एवं चिरागों की कतार । कई कविताएं, उपन्यास एवं कहानियां अभी अप्रकाशित हैं।

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के सीनियर लेक्चरर डॉ पीटर फ्रीडलैण्डर ने राष्ट्रीय स्तर की दो वर्कशॉप भी आयोजित की हैं। पिछले अनेकों वर्षों से विश्वविद्यालय में हिंदी का शिक्षण उपलब्ध है।

वहां सेमिनार एवं हिंदी गोष्ठियों का आयोजन होता रहता है। मनीष गुप्ता अपने रेडियो के माध्यम से हिंदी का प्रसार करते हैं। कैनबरा में संतोष गुप्ता हिंदी विद्यालय चला रहे हैं। 

ऐडलेड

ऐडलेड शहर में कवि डॉ राय कूकणा साहित्य सृजन कर रहे हैं। डॉ राय कूकणा का कार्य अनुभूति और बूमरैंग 1-2 में प्रकाशित है।

इसके अतिरिक्त प्रशांत श्रीवास्तव भी हिंदी साहित्य में योगदान दे रहे हैं।

ब्रिस्बेन

ब्रिस्बेन में पांच साल पहले कवयित्री सोमा नायर ने सनी बैंक हॉल में पहला प्रवासी कवि सम्मेलन किया था।  आजकल वे ‘मेरी हिंदी’ के नाम से हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए काम कर रही हैं।  अगर बच्चे हिंदी नहीं बोलेंगे तो हिंदी आगे नहीं बढ़ पाएगी।  आजकल उन्होंने बाल प्रतिभा प्रतियोगिता का आयोजन शुरू किया है। कवयित्री सोमा नायर की दो पुस्तकें प्रकाशित हैं – ऑफ़ गोड्स एंड ऑड्स (अंग्रेजी) में, पंखडियाँ (ग़ज़ल और कविता)।  इससे पहले वे हरियाणा की पत्रिका जनसाहित्य में भी उनका काम प्रकाशित है। मधु खन्ना की कवितायेँ बूमरैंग २ में प्रकाशित हैं। सरबजीत सिंह की पंजाबी पुस्तक का हिंदी अनुवाद डॉ सुरेश नीरव के निर्देशन में हुआ। इलासा की ब्रिस्बेन कोऑर्डिनेटर मंजू जेहु ने डॉ अशोक चक्रधर कवि सम्मेलन का आयोजन किया।

ब्रिस्बेन के अन्य कवियों में रुपिंदर सोज़, कविता खुल्लर, नेत्रपाल सिंह आदि हैं। 

ऑस्ट्रेलिया के लगभग सभी शहरों में हिंदी रेडियो स्टेशन चल रहे हैं- ब्रिस्बेन से मधु खन्ना बातें मधु के साथ कार्यक्रम में कई साहित्यकारों का साक्षात्कार करती है,  सिडनी में दर्पण रेडियो हिंदी के साहित्य को काफी प्रसारित करता है इसी तरह कैनबरा में मनीष गुप्ता और किशोर नंगरानी हिंदी रेडियो के माध्यम से हिंदी संबंधित अनेक बातों का उल्लेख करते हैं। और हिंदी फिल्मो का भी निर्माण हो रहा है। हिंदी के नाटकों का भी मंचन किया जा रहा है। 

वर्तमान में साहित्य यहाँ पनप रहा है। माइग्रेशन की इस लहर में भारत से आने वाले युवा अप्रवासी भी अपने साथ हिंदी भाषा और साहित्य ला रहे हैं। पर चिंता इस बात की हैं कि हिंदी साहित्य का भविष्य क्या होगा? न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित लेख के अनुसार इस सदी के अंत तक विश्व में बोली जाने वाली आधी भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी। तो हिंदी का भविष्य विदेशों में क्या होगा?  क्या बॉलीवुड के गाने और संगीत कविता लिखने की प्रेरणा देगा या हिंदी फ़िल्में कहानी लिखने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित करेंगी? जब भारतीय अप्रवासियों की भावी पीढ़ी हिंदी लिख, पढ़ ही नहीं पाएगी तो क्या ‘स्पीच टू टेक्स्ट’ जैसी तकनीक उन्हें हिंदी में लिखना  सिखा पाएगी? या हिंदी रोजगार के ऐसे अवसर पैदा करेगी जो युवा पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति रुझान पैदा करेंगे? जो भी हो यह आवश्यक है कि इस बारे में विचार विमर्श किया जाए और अपनी अगली पीढ़ी को हिंदी से जोड़ा जाए।

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