बाला की अभिलाषा
(युग परिवर्तन की नारी)
ग्रामीण कुटिया में बैठी बाला ध्यानमग्न है पुस्तक में
संवाद सुनती रेडियो पर ‘मोदी’ की चर्चा चालू है
कभी किताब, कभी रेडियो, दोनों के प्रति समर्पित है
तीक्ष्ण बुद्धि की सौम्य कामिनी, मन ही मन उद्वेलित है l
अभिलाषा की लहरें आयीं, लिख डाला एक पन्ने पर
संकल्प सार्थक ‘मोदी’ का बन जाऊँगी एक साधक
मंडित होगी माता की ममता, जब बन जाऊँगी शिक्षक !
धीरे-धीरे जलेगा मुझमें ज्ञान यज्ञ का दीपक
कर्मशील, उद्दात ह्रदय, स्वयं मिलेगा प्रेमी श्रीधर
छद्म दहेज की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी परिजन को
भेजूँगी मैं नम्र निमंत्रण सामाजिक ठेकेदारों को !
लेखनी बन गयी आज सरस्वती, उसको ऐसा आभास हुआ
अन्तर्मन से वाणी निकली, लिख डाला दूसरे पन्ने पर
फैल रही है मूक क्रांति, नारी शक्ति हुई प्रखर
गाँव-गाँव और शहर-शहर में फैल रही है एक लहर
युगों-युगों से रही बंदिनी, खुली हवा में जीने दो
मधुबाला की उपमा से अब तो मुक्ति पाने दो !
तभी हवा का झोका आया जिसमें थी आवाज भरी
आबादी का आधा हिस्सा, भारत माता की बेटी हो
मातृत्व की शक्ति तुझमें, मानवता की जननी हो !
प्रेम, प्रणय, और भावुकता का लोप नहीं होने देना
दया धर्म की अनुपोषक हो, यह याद न मिटने देना !
नमन किया ग्रामीण बाला ने धरती और अम्बर को
नतमस्तक हूँ तेरे आगे, हे अदृश्य विधाता
सौपा है तुमने जो भार मुझे, वह है सिर-आँखों पर !
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–कौशल किशोर श्रीवास्तव
