प्रेम-दिवस का जश्न
(श्रृंगार रस)
प्रेम-दिवस की मधुशाला में तेरी आज प्रतीक्षा है
तेरे ओंठो की मदिरा से प्यास बुझाना बाकी है l
तेरे नयनों के आकर्षण में मदहोशी का आलम है
तेरे यौवन की मादकता का अर्थ समझाना बाकी है l
तेरी जुल्फ़ों के झुरमुट में रात बिताना वाजिब है
तेरे मधुमय आलिंगन का रोमांच परखना बाकी है l
तेरी सुषमा के आगे फूलों की कलियाँ शर्माती हैं
जैसे चन्द्रकिरण के आगे तारे मुँह छिपाते हैं l
तुम्हें कहूँ मैं ‘वैलेंटाइन’ या खुशियों की रानी
भाव-भंगिमा से लगती हो चंचल और स्वाभिमानी l
शिल्पकार की मूर्ति हो या कविवर की कल्पना
तेरी सुन्दर काया में शामिल है उर्वशी की रचना l
सोचा था तुमको भेंट करूँ पुष्पों का सुरभित गुच्छा
किन्तु बाज़ारों का यह उपहार लगा नहीं कुछ अच्छा l
आओ मिलकर सैर करें सागर की लहरों पर
‘सर्फिंग’ का आनन्द उठाएँ नीले जल के ऊपर l
प्रेम-दिवस का खेल रचाएँ बालू की चादर पर
यौवन का त्योहार मनाएँ बाहुपाश में खोकर l
प्रथम प्यार का यह उपहार याद रहेगा जीवन भर
प्रेम-दिवस का जश्न मनाएँ ऑस्ट्रेलिया की धरती पर l
-कौशल किशोर श्रीवास्तव
(वैलेंटाइन दिवस / प्रेम-दिवस १४ फ़रवरी को समर्पित)