कृष्ण पूरे नहीं राधिका के बिना
(गंगोदक सवैया)
बात ऐसी भला आज क्या हो गयी,
रूठ से क्यों गए हो बताओ पिया।
भूल क्या हो गयी? चूक कैसी हुई?
मौन क्यों बोल दो, ना सताओ पिया।
रूठते यों नहीं हाथ मैं जोड़ती,
मान लो प्यार थोड़ा जताओ पिया।
प्रीत सच्ची हमारी रही है सदा,
नेह से दूरियाँ ये मिटाओ पिया।
देखते यों हमें वो सितारे सभी,
सोचते आज वो भी कि क्या हो गया?
चांदनी चांद की भी करे प्रश्न है,
गूंजता साज था वो कहां खो गया?
शरबती रंग के नैन बेरंग हैं,
कौन ऐसी उदासी यहां बो गया?
झांझरों सी कभी बोलती थी हँसी,
हाय उल्लास आँखें चुरा सो गया?
रूप मेरा खिला-संदली था कभी,
आज फीका पड़ा रंग वीरान है।
तान-सी छेड़तीं चूड़ियां मौन हैं,
आज श्रृंगार सारे परेशान हैं।
ओढ़नी यों रुदाली सरीखी हुई,
कोर गीली पड़ी रंग हैरान हैं।
तान तू छेड़ दे मोहना प्रेम की,
राधिका की बसे कृष्ण में जान है।
सांवली सांझ में कृष्ण की बाट यों,
जोहती है किनारे खड़ी राधिका
विस्मयी नैन देखें,जड़ीं राधिका ।
खेल ही खेल में भूल कैसी भई,
ये ठिठोली हुई है बड़ी राधिका।
मांग माफी रहे,शर्म से क्या कहें?
देख यों श्याम को रो पड़ी राधिका।
सामने आ गए हाथ बंसी लिए,
सिंधु के अंक में ज्यों समाए नदी,
यूं बसी केशवी कृष्ण की तान है।
प्रेम की धार चारों दिशा में बहे,
और आनंद-आनंद का गान है।
सावनी-राग-सी यूं किशोरी खिली,
श्याम प्यारी खरे प्रेम की खान है।
कृष्ण पूरे नहीं राधिका के बिना,
माधवी में बसे कृष्ण के प्राण हैं।
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-अनु बाफना