करे है क्यों गोरी श्रृंगार

(श्रृंगार छन्द)

करे है क्यों गोरी श्रृंगार।
तुझे क्या गहनों की दरकार।
रूप तेरा है रस की धार।
ओस में ज्यों भीगा कचनार।

लुभाते हैं कजरारे नैन।
लगाऊँ अंक तो आए चैन।
मगर तू काजल भी मत डार।
कि घुल के बह जाती है धार।

लबों पर लाली का क्या काम?
सुर्ख रहते हैं आठों याम।
लाज से यों ही रहते लाल।
गुलों से भी नाज़ुक ये गाल।

पायल गोरी देना उतार।
सुनाई पड़ती है झनकार।
घुंघरू खूब मचाते शोर।
कि करते चुगली, चुगलीखोर।

कंगना चूड़ी नथ बेकार।
गले में क्यों पहने तू हार।
नहीं है तुझको कुछ भी भान।
रूप तेरा सोने की खान।

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-अनु बाफना

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