हम-आप से परे


सत्य तो बस है, उसका बोध ही संभव;
प्रकृति उसकी, गंध, गुण-माप से परे।

कुदरत में सतत गति सनातन है;
ये ऋतु आवागमन, शीत-ताप से परे।

जीवन में चलना नियति है सबकी;
चलने की क्रिया सदा पदचाप से परे।

करने योग्य कर्म ही वश में है सबके;
इसका अनुपालन पुण्य-पाप से परे।

फल बहु-कारकों का जटिल परिणाम;
घटित, सरल वरदान-शाप से परे।

जो धारण करने योग्य, वही तो धर्म है;
ईशास्था, नमन-पूजा, मंत्र-जाप से परे।

मन की सघन चोटी से प्रस्रावित प्रेम,
भावना प्रवाह, विरह-मिलाप से परे।

सतत आगे बढ़ते रहता है जीवन,
घटना-विशेष के हास-विलाप से परे

सदा गतिमान संसार निरपेक्ष है,
राजा-रंक सबके सुख-संताप से परे।

क्षणिक अस्तित्वों की श्रृंखला हैं हम सब;
सृष्टि का क्रम नियत है, हम-आप से परे।

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-अवधेश प्रसाद

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