खलती बहुत कमी है
नीतियों में नीयत नेक की;
तथ्यों में सूचना एक की;
सूचनाओं में ज्ञान की;
ज्ञान में विवेक की,
खलती बहुत कमी है।
बेशुमार हासिल पैगामों में;
अपनेपन के संवादों की;
सब शहर,कस्बे, गॉवों में;
गुम होते सीधे-सादों की,
खलती बहुत कमी है।
नित बढ़ते वैभव के बीच,
सुख-शान्ति आभास की;
अति व्यस्तता से उपजी,
जीवन में रंग-रास की,
खलती बहुत कमी है।
पठन-पाठन होते भी,
विचारों में विस्तार की;
विद्याध्ययन होते भी,
स्वभाव में संस्कार की,
खलती बहुत कमी है।
अमूर्त, अगोचर संबंधों के,
अनवरत फैलते जालों में;
करीबी रिश्तों के गुम होते,
गर्मजोशी के ख्यालों में,
खलती बहुत कमी है।
गैर-कुदरती होती रोज,
सुबह-शाम, दिन-रातों में;
भाव भरे स्वरों के बदले,
दोस्तों की इबारती[5] बातों में,
खलती बहुत कमी है।
मज़हब-सियासत के विवादों में;
सही-गलत फैसले के अपराधों में;
बचने की कोशिश के वादों में;
अपने कमज़ोर नाकाम इरादों में.
खलती बहुत कमी है।
दृश्यों में दर्शन की;
चिंता में चिंतन की;
पूजा में पूजन की;
सोच में सृजन की,
खलती बहुत कमी है।
भूत, भविष्य की फिक्र में,
उपेक्षित हुए वर्तमान की;
अहंकार के अंध-मद में,
तिरस्कृत सर्व-सम्मान की,
खलती बहुत कमी है।
मन के अनंत भावों में,
परहित सद्भावना की;
सुखी-संपन्न होकर भी,
सर्व मंगल-कामना की,
खलती बहुत कमी है।
लोगों की गलती-भूलों की,
दिल में हरदम चुभते शूलों की,
ज़द[1] से निकल करनी थी जो,
कोशिश देने की, उन फूलों की,
खलती बहुत कमी है।
धारण योग्य जो धर्म, की;
करने योग्य जो कर्म, की;
बतलाए जो सरल मार्ग,
उस सनातन सत्मर्म की,
खलती बहुत कमी है।
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-अवधेश प्रसाद
[1] लक्ष्य; निशाना
