ग़ज़ल -1
मेरे ग़मों का बोझ ना खुद पर लिया करें
यूँ ग़म-ज़दा न आप हमेशा रहा करें
तन्हाइयों में ख़ुद ना अकेले घुटा करें
कुछ अपने दिल का हाल भी हमसे कहा करें
होगी क़ुबूल हमको यक़ीं है वो एक दिन
मेरी दुआ में आप भी शामिल हुआ करें
क्यूँ छोड़ते हो फ़ैसले औरों के हाथ में
अच्छा हो अपने फ़ैसले ख़ुद भी किया करें
जीते हैं आप किसलिए औरों के वास्ते
ख़ुद अपने वास्ते भी ज़रा सा जिया करें
हमको जो उनसे प्रेम का ये रोग लग गया
ये रोग ला-इलाज है कैसे दवा करें
अपना जिन्हें कहा था वही हो गए ख़फ़ा
अब तुम ही ‘भावना’ कहो, किससे गिला करें
ग़ज़ल -2.
ग़लती हमारी क्या है बता क्यों नहीं देते
ख़ामोश हो गए हो सज़ा क्यों नहीं देते
ज़ख़्मी हो कितना हमको दिखा क्यों नहीं देते
जिसने किया है उसका पता क्यों नहीं देते
कड़वाहटों को दिल से भुला क्यों नहीं देते
जो दूरियाँ हैं उनको मिटा क्यों नहीं देते
तुमको ख़ुदा जो सबने यहाँ मान लिया है
बिछड़े जो हमसे उनसे मिला क्यों नहीं देते
नफ़रत की आँधियों ने बहुत दूर किया है
उल्फ़त का हाथ अपना बढ़ा क्यों नहीं देते
कहते थे तुम कि सब मेरे अपने ही यहाँ हैं
अब इनकी बद्दुआ पे दुआ क्यों नहीं देते
औरों पे बार-बार जो इल्जाम लगाए
इक आईना उसे भी दिखा क्यों नहीं देते
ग़ज़ल -3.
जान जाएगी क्या तब आओगे
आके अश्कों को फिर बहाओगे
आप रूठे हो क्यूँ, बताओगे
और हमें कितना आज़माओगे
हमसे कुछ भी अगर छुपाओगे
बोझ दिल का ही तुम बढ़ाओगे
हो गया ख़ाक दिल का गुलशन ही
कैसे गुलशन को फिर खिलाओगे
मैं ग़ज़ल हूँ खुली किताब नहीं
सरसरी आँखों पढ़ ना पाओगे
मैं तो दर्पण हूँ सच दिखाता हूँ
मुझसे क्या राज़ तुम छुपाओगे
छत पे उतरा है चाँद पूनम का
चाँदनी में उतर नहाओगे
है मेरा दिल तो प्यार का सागर
जितना डूबोगे उतना पाओगे
ग़ज़ल -4.
कहते हैं लोग प्यार का उपहार हैं आँसू
कहने को दिल की बात मददगार हैं आँसू
हैं बर्फ़ कभी तो कभी अंगार हैं आँसू
आँखों को मगर हर तरह स्वीकार हैं आँसू
बहते हैं कभी ग़म में कभी बहते ख़ुशी में
आँखों के लिए उसका तो संसार हैं आँसू
ऐसा तो नहीं मानती औरत के लिए मैं
कहते हैं सभी उनका तो हथियार हैं आँसू
अपनों से मिलें तो कभी रुक ही नहीं पाते
अपनों की मुहब्बत का ही अवतार हैं आँसू
ऐसे ना बहाओ इन्हें तुम सस्ता समझकर
हैं क़ीमती मोती, नहीं बेकार हैं आसूँ
क्यूँ ‘भावना’ दिल पे है बढ़ा बोझ हमारे
आँखों से हुए बहने को लाचार हैं आँसू
ग़ज़ल -5.
उसे तो झूठ सदा बोलने की आदत है
मगर हमें वो कहाँ झेलने की आदत है
मुझे मनाना नहीं है अब ऐसे लोगों को
यूँ बे वजह ही जिन्हें रूठने की आदत है
मिरी उम्मीद सदा सोचती है रह रह कर
तुम्हारे ख़्वाब को क्यों टूटने की आदत है
हमारे दिल में हैं महफ़ूज़ यादें सब उसकी
उसे ही यादें मेरी भूलने की आदत है
हमारे दिल में कभी नफ़रतें नही रहतीं
हमें तो प्यार फ़क़त बाँटने की आदत है
सुकून-ए-दिल उन्हें हरगिज़ नहीं मिलेगा कभी
हमारे घर को जिन्हें लूटने की आदत है
ख़्याल-ओ-ख़्वाब से मैं किस तरह निकल जाऊँ
मैं “भावना” हूँ मुझे सोचने की आदत है
ग़ज़ल -6.
तकलीफ़ सभी को दें जो चेहरे ये दुःखी से
कुछ बात कहो ऐसी कि सब झूमें ख़ुशी से
इज़्ज़त है मेरी नाम है औ शान भी अपनी
बिन बात के मैं बात नहीं करती किसी से
निकली हूँ लिए जोश उजालों के सफ़र पर
रोकेगा मुझे कौन भला पूछो सभी से
लोगों को गिला ये ही रहा मुझसे तो हरदम
मे’आर से मेरे है बनी दूरी सभी से
माना कि मिली हूँ नहीं उससे मैं अभी तक
लेकिन है मिरे दिल में लगी लौ तो उसी से
है ‘भावना’ रातों में भी अब चैन न आराम
भीगा रहे तकिया मेरी आँखों की नदी से
ग़ज़ल -7.
रोशनी के बाद हर सू जब अँधेरा छा गया
जाने क्यूँ फिर दिल को मेरे हर अँधेरा भा गया
ओढ़ कर तन्हाई की चादर उदासी बैठी थी
हौले-हौले पाँव रखकर कौन मन में आ गया
बारिशें इतनी बढ़ीं कि धूप उतरी ही नहीं
मन मेरा भीगा हुआ ये देख कर घबरा गया
क़द में ऊँचे हों सभी से ज़िद ये अपनी थी सदा
छोड़ दो इस ज़िद को अपनी आसमाँ समझा गया
ये नज़ारा देखकर पूरा चमन हैरान है
फूल खिलने से ही पहले किसलिए मुरझा गया
सच दबाया जा रहा था झूठ के कदमों तले
देखकर सच की ये हालत हर कोई घबरा गया
था शहर ख़ुशियों भरा अपना कभी ये ‘भावना’
हादसा कैसा हुआ जो सबको ही दहला गया
ग़ज़ल -8.
तुम्हारी धड़कन को मेरा दिल ये जो सुन रहा है वो शायरी है
तुम्हारी नज़रों ने मुझसे आकर जो कह दिया है वो शायरी है
मिरी मोहब्बत के आसमाँ पर उमड़ रहा है दुःखों का बादल
जो चश्म-ए-गिर्या से चुपके चुपके बरस गया है वो शायरी है
कहाँ से आयी हूँ तुझसे मिलने कहाँ पे मुझको है लौट जाना
लहर ने साहिल पे सर पटक कर जो कह दिया है वो शायरी है
बहुत सी बातें हैं मन में मेरे जो मुझको कहनी हैं आप सबसे
जो लिखना था वो मैं लिख चुकी जो नहीं लिखा है वो शायरी है
तमाम तारे जो थे फ़लक पर कहीं वो जाकर दुबक गए हैं
जो एक तारा अभी फ़लक पर चमक रहा है वो शायरी है
लड़ा अँधेरे से रात भर जो किया उजाला जला के ख़ुद को
सुबह के होते ही एक दीपक जो बुझ चुका है वो शायरी है
सजा न पाए जिन्हें कभी हम उन्हें सजाना था दिल में अपने
जो है हक़ीक़त वो सामने है जो ख़्वाब सा है वो शायरी है
ग़ज़ल -9.
जो गया था छोड़ के बे-सबब उसे दर्द-ए-दिल का पता नहीं
कि चराग़ याद का बाम पर जो जला था अब भी बुझा नहीं
कहीं आँसुओं की हैं बारिशें कहीं तिश्नगी की नवाज़िशें
यहाँ कैसा साक़ी निज़ाम है यहाँ जाम सबको मिला नहीं
मुझे ऐसा किसने बना दिया मिरी हर समझ को मिटा दिया
कोई लफ़्ज़ याद नहीं रहे कोई शेर उस पे हुआ नहीं
चलो ख़ामुशी के दयार में किसी गुलिस्ताँ के कनार में
वही आँखों आँखों में ज़िक्र हो जो कभी किसी से कहा नहीं
यहाँ दिल में दिल का क़याम है यहाँ नफ़रतें तो हराम हैं
ये मोहब्बतों का जहान है यहाँ इश्क़ करना ख़ता नहीं
मिरी आँखों को ज़रा देख ले वही नूर है वही आस है
अभी अक्स तेरा है हू-ब-हू अभी रंग कोई उड़ा नहीं
ये अजब नसीब है “भावना” तेरा झूठा झूठा है आईना
मुझे देखकर वो हंसा मगर मिरा चेहरा उसने पढ़ा नहीं
ग़ज़ल -10.
अज़ल से पी रही हूँ ग़म का प्याला
ख़ुदा ने भी नहीं मुझको सँभाला
शब-ए-ग़म में अँधेरा हर तरफ़ है
मगर यादों का है दिल में उजाला
बहुत बेचैन सी राहें हैं इसकी
सफ़र है इश्क़ का कितना निराला
मुझे तूफ़ाँ से शिकवा किसलिए हो
मिरी कश्ती को साहिल ने उछाला
सँभल कर तीर मारें सब शिकारी
कि जंगल में है तन्हा इक ग़ज़ाला
डराते क्यों हो रस्ते से हमें तुम
ये रस्ता तो है मेरा देखा भाला
बदल सकते नहीं क़िस्मत अगर तुम
न छीनो कम से कम इनका निवाला
बहुत सी दास्तानें हैं ग़ज़ल में
यही है “भावना” मेरा रिसाला
-भावना कुँअर
