मैं एक नारी हूँ

नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा
दिया हुआ झूठा ‘स्त्रीधन’
ना ही चाहिए मुझे तुम्हारा
झूठा दिखावा ‘देवी’ पूजा का।
और ना ही लगाव है मुझे
तुम्हारे जीवनभर साथ निभाने
के झूठे वादों से।

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता’ कह कर
इतना ऊंचा भी ना चढ़ाओ मुझे
कि तुम्हारे कारनामों की मार से गिर कर
मेरी गर्दन ही टूट जाए।

अगर कुछ करना ही है मेरे लिए
तो बस एक अरदास है मेरी।
अपने पौरुष के असली अर्थ को
समझ लो।

दिखा दो मुझे
कि हर स्त्री का
हर बच्ची का
हर माँ और बहन का
हर पत्नी का
आदर-सम्मान करना
उन्हें बराबरी का दर्जा देना
तुम्हारी जिम्मेदारी ही नहीं
तुम्हारा धर्म भी है।

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-पुष्पा भारद्वाज-वुड

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