प्रश्नोत्तरी

तेरे प्रश्नों की पंक्ति की तू धूनी समान जल रहा वहाँ
क्यों व्यस्त यहाँ मेरा जीवन था फाग और मल्हारों में

मर गए तरस कर गीत तेरे जब कफन बिना
क्यों साड़ी मेरी उलझी रही बहारों में

मेरी साड़ी में चाँद सितारे जड़ें हुए और
जूड़े में है किसी फूल की कमी नहीं है
साहस इतना है पर्वत तक थम जाते हैं
फिर धुंध अकेलेपन की क्यों कर छठी नहीं
मैं खड़ी हुई तब से अब तक चौरस्ते पर
तेरे आने की आशा कुछ कम हुई नहीं

किस ओर बढ़ाऊँ पग अपने भय लगता है
तू आ कर लौट न जाए भ्रम में पड़ी रही
फिर तेरा यह आरोप कि मैं दुल्हन बनकर
इस रंग महल की मादकता से जुड़ी रही
तेरी पूजा के फूल संजोए हैं मैंने
और दिया आरती का था बुझने नहीं दिया
तू हो जाये साकार एक दिन इसीलिए
इस घर की हर खिड़की दरवाज़ा खोल दिया
फिर तेरा यह आरोप कि मैं दुल्हन बनकर
इस रंग महल की मादकता से जुड़ी रही

ये कैसी थी यात्रा जिसका आरम्भ किया उस दिन तूने
यह सिर्फ़ कल्पना थी मेरी या दिया भुलावा था तूने
तेरे प्रकाश से मेरे जीवन का हर तम मिट जाएगा
और तेरे मार्गप्रदर्शन से भटका राही घर आयेगा
फिर कब क्यों कैसे ईष्टदेव तेरा प्रकाश में खो बैठी
यात्रा का क्या वर्णन करती जब ज्योति नयन की खो बैठी
यात्रा के थे कुछ नियम वहाँ ठहरावों पर प्रतिबंध लगा
क्षणभर रुकने की आज्ञा थी चलते रहना ही लक्ष्य रहा
मन प्यासा सुंदर प्याऊ थे आकर्षण रुकने का भी था
दूषित कैसे करती उसको जो प्यार अभी तक क्वारा था

अब यात्रा का है अंत शिथिल तन छाई रात अमावस की
अंतिम विनती आराध्य देव जीवन में तुझको पाने की
कल तेरा द्वार खुलेगा जब स्मृतियाँ ही रह जाएँगी
खिलते गुलाब की रंगहीन पंखुड़ियां ही रह जाएंगी
तूने जो फाग मल्हार सुने वह सत्य नहीं है मिथ्या है
मैं कफन ओढ़कर गीतों का तेरी तलाश में भटक रही
फिर तेरा यह आरोप कि मैं दुल्हन बनकर
इस रंग महल की मादकता से जुड़ी रही है

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-शैलजा चतुर्वेदी

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