वह क्यूँ..?

अजीब कशमकश
ज़िंदगी की..
थी, मंजिल की तलाश
में, मैं कहीं..!

तुम क्या मिले
खुद में कहीं खुद
तुमको ढूंढते ढूंढते..
खुद मे जैसे खुदा ढूंढना हो ऐसे
इबादत बन गया…!

यूं तो तलाश मेरी थी
पर मंजिल पाने को
भटक रहा था
वह क्यों…!

दिल मेरा धड़क रहा था
पर अनकहे जज्बातोँ
से धड़कन थमी सी थी
उसकी क्यों…!

यूँ तो प्यास मेरी थी
पर सिसक-सिसक कर
रूह में उतर रहा था
वह क्यों…!

धूप सी खिलखिला
रही थी मैं
बर्फ सा पिघल रहा था
वह क्यों..!

ऐसे खामोश-जज्बाती
चुपचाप-सी-मुलाकात
शब्दों के पीछे छुपे मौन
को सुन रहा था
वह क्यूं..!

तलब यही थी
कि ठहर जाए
कहीं दोनों एक दूसरे में
पर मुझ में ही बिखर रहा था
वह क्यों…!

यूं तो हर चीज हद में
पर ना जाने क्यों
यह प्यार बेहद…
इसीलिए शायद
अधूरे से ही रह गये …
हम दोनों ही क्यूँ …!!!

*****

-सुनीता शर्मा

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