मर्यादा पुरुषोत्तम
राम!
बड़े मौलिक शिल्पी हो,
बड़े कलाकार भी
शील, शक्ति और सौन्दर्य
के अधिष्ठाता
मर्यादा पुरुषोत्तम भी।
आदर्श की धुरी हो
या धुरी के आदर्श, पता नहीं!
पर सब तुम्हारे चरित की छाप है-
अनवरत, काल दर काल।
तुमने सबको प्रभावित किया है और
प्रेरित भी।
तुम्हारे जीवनादर्श से
कितने कवि बन गए,
कितने कला और भाव के शिल्पी भी।
कितनों ने तुम्हारे नाम की
खरीद-फरोख़्त कर
आश्रम खड़े किए,
अट्टालिकाएँ खड़ी कीं,
राजनीति की,
रामराज्य का राग अलापा
और अमर हो गए
साहित्य, इतिहास और राजनीति में।
राम! तुम्हीं से सीखकर
हर भारतीय तुमसे
बड़ा शिल्पी बन गया है।
सबके अपने आदर्श हैं;
साथ ही सबने अपना हाजमा
मज़बूत कर लिया है।
तुलसी, गाँधी का रामराज्य,
नेहरू का समाजवाद,
इन्दिरा की इमरजेंसी,
संस्कृति के सभी अध्याय,
सारे वाद और सिद्धांत,
ये कब के पचा गए हैं;
अब तुम्हारी बारी है।
वर्तमान ही इनका इतिहास है और
भविष्य इनका वर्तमान।
इनके हाजमे की क्षमता-
तीनों कालों को पचा डालने की है।
अब तक तुम्हें पचाया,
अब तुम्हारे द्वारा बंधित
सेतु-समुद्रम् की बारी है।
अब करुणानिधि आप ही नहीं –
आपके तेजोमय चरित ने
इन सबको करुणानिधि बना दिया है।
अब तक जीवन के मरुस्थल में
तुम्हारे नाम के सागर से-
अमरत्व का जल भरते रहे;
अब इनके द्वारा संचित जल में-
तुम्हारा नाम डूबता नजर आ रहा है।
राम!
तुम्हारे नाम का लोकतांत्रिक स्वरूप-
विश्वायन, निजीकरण-
और उदारता के त्रिआयामी जंगले में
नजरबंद हो गया है।
तुम्हारे अस्तित्व पर
अब प्रश्नचिह्न उठने लगे हैं।
ये प्रश्न-
चर्चा में बने रहने की
कवायद हैं?
सड़क से संसद तक पहुँचने का मार्ग?
सोंची समझी राजनीति-
या कि कुछ और…!
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-ऋषिकेश मिश्र