मैं जनतंत्र हूँ !

मैं जनतंत्र हूँ !
लोग मुझे-
लोकतंत्र,
गणतंत्र
संघतंत्र, और
अंग्रेज़ी में
डेमोक्रेसी भी कहते हैं।
मैंने स्वयं को कभी नहीं देखा,
मेरा मुख,
मेरे कर-कमल,
मेरे चरण, और
मेरा उरु प्रदेश
सभी
वास्तु पुरुष की भाँति अदृश्य हैं।

पुरुष-सूक्त की भाँति
मैं भी केवल-
संविधान की पुस्तक में रहता हूँ,
जिसे –
एक अधिनायक
हमेशा मुट्ठी में
जकड़े रहता है।

मेरी अदृश्य सत्ता को
तथाकथित सत्तासीनों,
प्रशासन
और
मेरे ही चार पुत्रों द्वारा –
बार-बार रौंदा जाता है।
मेरे अगम्यागमन की
रही-सही कसर
सार्थवाही बैल
पूरा कर देते हैं।

मेरी दशा
चारे के उस
पैरे जैसी है,
जिस पर
मेरे ही द्वारा पोषित
मेरे ही स्तंभों ने
गोबर-मूत कर दिया है।

*****

-ऋषिकेश मिश्र

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