आयाम

आधुनिकता की दौड़ में
सारे आयाम सरेआम बदलते जा रहे हैं-
व्यक्ति का चारित्रिक मूल्य,
पीढ़ियों का अन्तर्द्वंद्व,
जातीयता का समीकरण,
प्रांतीय विखंडित व्यवहार
या राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय बाज़ारूपन।

कौन ज़िम्मेदार है इनका?
अतीत का पिछड़ापन,
वर्त्तमान की तेज़ रफ़्तार
या आनेवाले कल की आबोहवा?

किसी भविष्य के महल की ख़्याली नींव
ऐसी जगह भी रखी जा सकती है
जहाँ वर्त्तमान की ऊबड़-खाबड़ ज़मीन न हो।
धाराप्रवाह ज़िंदगी में
अटकलबाज़ी का अर्द्धविराम
और समसामयिकता का पूर्णविराम मत लगाओ।

अगर ज़िंदगी को उद्देश्यपूर्ण बनाना है तो
अतीत से सीखो,
वर्त्तमान में जीओ
और
भविष्य की सार्थकता को
ज़रूर सोचो!

*****

-कृष्ण कन्हैया

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