ज़िंदगी का गणित

ज़िंदगी के गणित में
नियमित लगे रहना
कितना परिणामदायक है-
यह कहना, निस्संदेह मुश्किल है।
इन ‘पहाड़ों’ का दैनिक जीवन में इस्तेमाल
तभी वाजिब है जब-
दिल को जोड़ सके
दुश्मनी घटा सके
सुख को कई गुणा कर
दुःख विभाजित कर सके

यह खुले आईने का सच है
जिसे देखनेवाला तभी समझ सकता है
जब उसके सीने में आर्यभट्ट की निगाहें हों-
जिसमें लंबित ज़िंदगी के अंक के बाद
ज़्यादा शून्य बिठाकर
मान बढाने का जज़्बा हो
या
बिखराव के दशमलव वाले अंक को
हाशिए पर डालने का हुनर

ताकि
इल्म की गुणवत्ता बढ़े
और साथ-साथ
ज़िंदगी जीने के
मायने-मतलब भी।

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-कृष्ण कन्हैया

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