शर्म की बात है!

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ,
नारा तुम लगाते हो।
आती है जब बात न्याय की,
चुप्पी साध क्यों जाते हो?
आठ साल की बच्ची थी वो,
थी वो दुनियाँ से अनजान।
बनाया उसको हवस का शिकार,
वाह रे मेरे भारत महान।।
नन्ही सी चिड़िया थी वो,
उड़ना भी न सीखी थी।
कतरे पर, उसको मरवाया,
कह दो गलती उसी की थी।।
हिन्दू कहो, मुसलमाँ कहो,
बाँटो देश को ये कहकर।
झाँको कभी अपना गिरेबाँ,
बद से पाओगे बदतर।।
थोड़ी सी भी शर्म शेष हो,
बचा हुआ हो गर पानी।
फाँसी दे दो इन सुअरों को,
दे दो इनकी क़ुर्बानी।।
कर न सके गर इतना काम,
शर्म भी तुमसे लजाएगी।
घर में तुम्हारे भी है बेटी,
वो भी मारी जाएगी।।

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-सूर्य प्रताप सिंह

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