मैं और गणित

प्रसन्नता में मैंने स्वयं को जोड़ा,
अवसाद में स्वयं को घटाया,
मद में स्वयं को गुणित किया,
घोर निराशा में स्वयं को विभाजित किया,

और आश्चर्य से पाया कि
इन सारे प्रयासों के उपरान्त भी,
मैं इकाई का इकाई ही रहा ।
न बढ़ा, न घटा, न गुणित हुआ
और न ही विभाजित ।

पर ऐसा सदा नहीं रहेगा।
एकदिन ऐसा भी आयेगा,
जबकि मेरा सारा अपनापन
एक अनन्त सत्ता में समा जायेगा।

और तब मैं, अनायास ही,
एक से अनेक,
ससीम से असीम,
और आकार से निराकार हो,
अनन्त हो जाऊँगा ।

*****

-आशा बर्मन

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