जीवन की साँझ
जीवन की साँझ का प्रहर,
ढल चली है दोपहर।
बयार मंद-मंद है,
धूप भी नहीं प्रखर॥
यह समय भला-भला,
नये से रंग में ढला।
जीवन का नया मोड़ है,
न कोई भाग दौड़ है॥
काम का न बोझ है,
जाना न कहीं रोज़ है।
जब जो ख़ुशी वही करो.
न मन का हो नहीं करो॥
चाहे जहाँ चले गये,
दायि त्व पूरे हो गये।
न सर पे मेरे ताज है,
फिर भी अपना राज है॥
तन थका, न क्लान्त है,
मन बड़ा शान्त है।
दिन-रात तेरा साथ है,
बड़ी मधुर सी बात है॥
जो मिल गया प्रसाद है,
न अब कोई विषाद है।
बगिया की हर कली खिली,
उसे सभी ख़ुशी मिली॥
आज तुम जी भर जियो,
ख़ुशी के घूँट तुम पियो।
कल की कल पे छोड़ दो,
कल जो होना हो सो हो॥
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-आशा बर्मन