पर्व वेला
पर्व वेला में मधुर इक गीत जो मैं गुनगुनाता,
प्राण मेरे साथ गाओ।
समय की उज्जवल शिला पर
जो लिखे हैं भाव मेरे,
गीत के तुम स्वर बनाओ।
पहर बीते, दिन ढले,
बरस कितने ही गये
किन्तु मेरे प्रणय के
उद्गार अब भी हैं नये।
आज भी चंचल तेरे दृग,
आज भी कंपित अधर
आज भी महकी हैं साँसें,
आज भी मधुमय है स्वर।
आज प्रिय तुम माँग भर लो
आज तुम मेंहदी रचाओ
गीत जो मैं गुनगुनाता प्राण मेरे साथ गाओ।
आज पक्षी युगल वन में
हैं प्रणय का गान गाते
आज भी मादित भ्रमर
हैं मधुर गुंजन सुनाते।
आज निर्झर नाद करते,
सरसराती हैं हवायें
फूल मिल सब मुस्कराते,
गा रही हैं कोकिलायें।
महकने दो तुम हवा को
फूल आँगन में सजाओ
गीत जो मैं गुनगुनाता प्राण मेरे साथ गाओ।
मूक थे वे भाव मेरे,
मौन मेरे शब्द थे
लेखनी चुप थी अकारण,
कुछ मेरे प्रतिबन्ध थे।
भाव घट जो छलछलाया
आज मैंने बोल गाये
आज मै स्वच्छंद हूँ,
आज मैंने स्वर सजाये।
आज का दिन मिलन का दिन,
आज तुम उत्सव मनाओ।
गीत जो मैं गुनगुनाता प्राण मेरे साथ गाओ।
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-जगमोहन हूमर