गीत ये निष्प्राण है
गीत ये निष्प्राण है, शब्द का केवल चयन।
इस उमड़ती भीड़ में अस्तित्व मेरा क्या हुआ
हैं अनेकों पर अकेला मैं भटकता ही रहा।
आज कोई घर न मेरा
ना कोई मेरा वतन। गीत ये…
इस पराये देस में एक ढूँढता हूँ मीत मैं
हृदय सारे शुष्क हैं उनमें कहाँ पर प्रीत है।
फूल माँगे शूल की मुझको
मिली केवल चुभन। गीत ये…
जितना मिले मैं जोड़ लूँ इसका मुझे आभास है
ठहर कर दुख बाँट लूँ इतना कहाँ अवकाश है।
प्रीत के आँसू थे माँगे,
रिक्त हैं मेरे नयन। गीत ये…
मैने खोजा था प्रभु को, क्यों मिली तृष्णा मगर
एक स्पर्धा, एक हवस, एक लालसा थी हर प्रहर।
एक मेरी वंदना थी,
दूसरा मेरा नमन। गीत ये…
स्वर नहीं कैसे लिखूँ मैं गीत पूजा के लिये
संर्घष की इन आँधियों में बुझ गये सारे दिये।
क्या तुम्हें अर्पण करूँ,
मुरझा गये मेरे सुमन। गीत ये…
मैने सोचा फ़स्ल होगी अन्न होगा साल भर
भूख से व्याकुल बि लखते क्यों अनेकों बाल पर।
एक मेरी कल्पना थी
दूसरा सच्चा कथन। गीत ये…
ज़िन्दगी के बोझ को क्यों ढो रहे व्याकुल चरण
बाहर तड़कती धूप है, भीतर अँधेरा है सघन।
छाँह माँगी थी कभी
उनको मिली केवल तपन। गीत ये…
रक्त से सिन्चित धरा पर क्यों सुलगती आग ये
द्वंद्व का उठता धुआँ और क्रोधका उन्माद ये।
मैने माँगी थी बहारें
वीरान है मेरा चमन। गीत ये…
मैंने देखी अनगिनत उजड़ी हुई सी रिक्त आँखें
मैंने देखे सैंकड़ों उद्विग्न मन संतप्त साँसें।
आस के फिर गीत का
कह दो करूँ कैसे सृजन। गीत ये…
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-जगमोहन हूमर