वसीयतनामा

क्यों न हम
खुले आकाश तले
बहती हवा, बहता पानी
परिंदों के गीत, जीवन के संगीत,
इन सबकी मौजूदगी मे आज
एक दूजे के दिल पर
अपना-अपना वसीयतनामा लिख दें,
जीवन तो एक दूजे के साथ जिया हमने
पर इस जीवन के बाद का जीवन
कैसे है जीना
आओ, आज ये भी निश्चित कर दें,
बाद मेरे तुम
जीवन अपना खुल के जीना
दुनिया चाहे कुछ भी समझे
तुम अपनी शर्तों पर ही चलना,
हां, मेरी याद में अक्सर तुम
बस इक काम किया करना
याद मेरी जब आये तुमको
ख़ुशबू वाली एक शमा
अपने हाथों जला लिया करना,
जिसकी ख़ुशबू मे बस तुम
मुझको महसूस किया करना,
जिसकी चमक मे तुम मुझको
कुछ पल देख लिया करना,
जब-जब तुमको मैं
देखा करूं वहां से
तुम बस देख के मुझको
मुस्कुरा दिया करना,
दूर किसी कोने से जब
ताड़ा करूं मै तुमको
तुम केवल आते-जाते मुझको
हाय-बाय कर दिया करना,
जिन चोटों के संग जियें हम
जिन ख़ुशियों के साथ चलें हम
मन से अपने उन सबको
देना बिसार तब तुम,
समेट कर वो सारी यादें
देना कहीं बहा तुम,
या, संग परिंदों के किसी ओर भी
देना उड़ा हवा मे तुम,
चाहा गर कुदरत ने तो
कभी मिल जायेंगे हम फिर से,
किसी बाग़ मे संग फूलों के
कहीं खिल जायेंगे फिर से,
कहीं खिल जायेंगे फिर से
कहीं……………….

*****

-निर्मल सिद्धू

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »